वराह जयंती 2021: जानिए भगवान वराह से जुड़ी पौराणिक कथाएं
punjabkesari.in Tuesday, Sep 07, 2021 - 03:42 PM (IST)
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9 सितंबर यानि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह की जयंती मनाई जाती है। मान्यताओं के अनुसार इस मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को वराह भगवान ने जन्म लिया था। शास्त्रों में नील, आदि व श्वेव वराह के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों में इन तीनों वराह से जुड़ी विभिन्न कथाएं हैं। तो आइए जानते हैं कौसे भगवान वराह ने किया था कौन सा कार्य-
धार्मिक कथाओं के अनुसार नील वराह ने जल में डूबी धरती को बाहर निकाला था तथा मधु और कैटभ का वध किया था। कथाओं के अनुसार उन्होंने कठिन परिश्रम किया था इसीलिए उन्हें यज्ञ वराह के नाम से भी जाना जाता है। इसके उपरांत आदि वराह ने कश्यप-दिति के पुत्र और हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का वध करके धरती को उनके अत्याचार से मुक्त करवाया था। श्वेत वराह की बात करें तो इन्होंने राजा विमति से युद्ध किया था।
कथाएं प्रचलति हैं कि सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने नील वराह का अवतार लिया फिर आदि वराह बनकर हिरण्याक्ष का वध किया। कहा जाता है इन्होंने श्वेत वराह का अवतार नृसिंह अवतार के बाद लिया था। कथाओं के अनुसार हिरण्याक्ष को मारने के बाद ही स्वायंभूव मनु को धरती का साम्राज्य मिला था।
आदि वराह की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार दक्ष पुत्री दिति ने कामातुर होकर अपने पति मरीचिनंदन कश्यप जी से प्रणय निवेदन किया। तब कश्यप ऋषि संध्यावंदन की तैयारी कर रहे थे, इसलिए उन्होंने कहा कि यह समय उचित नहीं इसलिए एख प्रहर ठहर जाओ। परंतु उनके समझाने पर भी दिति नहीं मानी। कश्यप जी ने उन्हें फिर समझाया, 'तुमने अमंगल समय में कामना की इसलिए तुम्हारी कोख से दो बड़े ही अधर्मी पुत्र जन्म लेंगे। तब उनका वध करने के लिए स्वयं जगदीश्वर को अवतार लेना होगा। कथाओं के अनुसार सृष्टि में भयानक उत्पात और अंधकार के बाद दिति के गर्भ से सर्वप्रथम 2 जुड़वां पुत्र जन्मे हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष। जन्म लेते ही दोनों पर्वत के समान दृढ़ तथा विशाल हो गए। ये दोनों ही आदि दैत्य कहलाए। बाद में सिंहिका नामक एक पुत्री का जन्म हुआ।
धार्मिक कथाओं के अनुसार हिरण्याक्ष भयंकर दैत्य था, जो तीनों लोकों पर अपना अधिकार चाहता था। कहा जाता है दक्षिण भारत पर हिरण्याक्ष का राज था। ब्रह्मा जी से अजेय और अमरता का वर मिलने के कारण उसका धरती पर आतंक हो चला था। इसके उपरांत हिरण्याक्ष भगवान वराहरूपी विष्णु के पीछे लग गया था और वह उनके धरती निर्माण के कार्य की खिल्ली उड़ाकर उनको युद्ध के लिए ललकारता था। जब विष्णु जी वराह अवतार में रसातल से बाहर निकलकर धरती को समुद्र के ऊपर स्थापित कर रहे थे, तब उनका ध्यान हिरण्याक्ष पर गया। ऐसी मान्यता है आदि वराह के साथ भी महाप्रबल वराह सेना थी। अपनी सेना को लेकर हिरण्याक्ष के क्षेत्र पर उन्होंने चढ़ाई कर दी और विंध्यगिरि के पाद प्रसूत जल समुद्र को पार कर उन्होंने हिरण्याक्ष के नगर को घेर लिया। माना जाता है संगमनेर में महासंग्राम हुआ और अंतत: हिरण्याक्ष का अंत हुआ।