Kundli Tv- महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिन पर जानें रामायण से जुड़ी कुछ खास बातें

punjabkesari.in Wednesday, Oct 24, 2018 - 10:41 AM (IST)

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श्री रामायण के रचियता भगवान वाल्मीकि जी को महाज्ञानी, परम बुद्धिमान, सर्वशक्तिमान, भारतीय संस्कृति के नाविक, आदि कवि, संस्कृत कविता के पितामह, महर्षि, दयावान एवं महाकाव्य रामायण के रचयिता के रूप में जाना और माना जाता है। महाकाव्य रामायण में इन्होंने चौबीस हजार श्लोक, एक सौ आख्यान, पांच सौ सर्ग और उत्तर कांड सहित सात कांडों का प्रतिपादन किया। इस महाकाव्य में महापराक्रम, लोकप्रियता, क्षमा, सौम्य भाव तथा सत्यशीलता का वर्णन है जो भारतीय संस्कृति, सभ्यता, साहित्य और समाज की अमूल्य निधि है।
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दयावान भगवान वाल्मीकि जी ने सर्वप्रथम पूरी दुनिया को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और शांति का संदेश दिया। वह किसी को भी दुखी नहीं देख सकते थे। एक दिन जब वह तमसा नदी के घाट पर नित्य की तरह स्नान के लिए गए तो पास ही, क्रौंच पक्षियों का जोड़ा जो कभी भी एक-दूसरे से अलग नहीं रहता था, विचरण कर रहा था। उसी समय एक निषाद ने उस जोड़े में नर पक्षी को बाण से मार डाला। यह देखकर महर्षि का हृदय बहुत दुखी हुआ और निषाद से कहा कि यह अधर्म हुआ है निषाद। तुझे नित्य निरंतर कभी शांति न मिले क्योंकि तूने बिना किसी अपराध के इसकी हत्या कर दी है। ऐसा कह कर जब महर्षि ने अपने कथन पर विचार किया तब उनके मन में बड़ी चिंता हुई कि पक्षी के शोक से पीड़ित होकर मैंने क्या कह डाला। अत: उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि ऐसे ही श्लोक में रामायण काव्य की रचना करूं।
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सीता जी को आश्रम में ले आना 
कुछ मुनि कुमारों ने महर्षि जी के पास जाकर आश्रम के समीप किसी स्त्री के रोने का समाचार सुनाया। उनकी बात सुन कर महर्षि उस ओर चल दिए। वहां पहुंच कर उन्होंने रघुनाथ जी की प्रिय पत्नी सीता को अनाथों की-सी दशा में देखा। शोक से पीड़ित सीता जी को वह अपनी मधुर वाणी में बोले, ‘‘पुत्री, तुम राजा दशरथ की पुत्रवधू महाराजा राम की प्यारी पटरानी और मिथिला के राजा जनक की पुत्री हो। मैं जानता हूं कि तुम निष्पाप हो अत: विदेहनंदिनी अब तुम निश्चिंत हो जाओ। इस समय तुम मेरी शरण में हो।’’
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कुश और लव का जन्म व शिक्षा
भगवान वाल्मीकि जी के आश्रम में ही सीता जी को दो पुत्र रत्न प्राप्त हुए। वेदार्थ का विस्तृत ज्ञान करवाने के लिए उन्होंने उन्हें सीता जी के चरित्र युक्त सम्पूर्ण महाकाव्य रामायण का अध्ययन करवाया और इसके साथ ही गीत-संगीत एवं अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी।

श्री राम के यज्ञ में आगमन 
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम तथा बहुसंख्यक महात्मा मुनियों द्वारा भली-भांति पूजित व सम्मानित भगवान वाल्मीकि जी ने श्री राम यज्ञ में कुश और लव को वीणा की लय पर मधुर स्वर में गान आरंभ करने का आदेश दिया जिसे सुन कर श्री राम को बड़ा कौतूहल हुआ। श्री राम के पूछने पर दोनों बालक बोले कि जिस काव्य के द्वारा आपको संपूर्ण गाथा का प्रदर्शन करवाया गया है उनके रचयिता हमारे पूज्य गुरु भगवान वाल्मीकि जी हैं।
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मानवीय जीवन के स्थायी मूल्यों का खजाना 
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण विश्व का अकेला ऐसा ग्रंथ है जिसमें मानवीय जीवन के प्रभावशाली आदर्श हैं। इस महाकाव्य में धार्मिक, सामाजिक और पारिवारिक क्षेत्र के समूह संबंधों के आदर्श रूप वर्णित मिलते हैं। परमज्ञानी सर्वशक्तिमान भगवान वाल्मीकि जी ने राम कथा के माध्यम से मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है जो अनुपम और दिव्य है।

समाज और राष्ट्र को उन्नत तथा स्वस्थ बनाने के लिए व्यक्ति या चरित्र विशेष महत्व रखता है। चरित्र के निर्माण के लिए परिवार के महान योगदान को श्रीमद् वाल्मीकि रामायण ने ही स्वीकार किया है। परिवार एक ऐसा शिक्षा केंद्र  है जहां व्यक्ति स्नेह, सौहार्द, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, आस्था व समाज के सामूहिक कल्याण के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के त्याग की शिक्षा पाता है। परिवार समस्त मानवीय संगठनों की इकाई है जिसमें जीवन के प्राचीन आदर्शों को सुरक्षित रखा गया है।
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महत्वपूर्ण शिक्षा व संदेश 
भगवान वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का महाकाव्य रामायण में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। जिसमें कर्तव्यपरायणता, आज्ञा पालन, वचन पालन, भाई का भाई के प्रति अथाह प्यार व स्नेह, दुखियों, पीड़ितों, शोषितों के प्रति दया-करुणा और प्रेम, मानवता व शांति के संदेश के साथ-साथ अपने अंदर के अहंकार, ईर्ष्या, क्रोध व लोभ रूपी राक्षस का वध कर सहनशीलता का परिचय देना शामिल है। सामर्थ्यशाली व परम बुद्धिमान भगवान वाल्मीकि जी के अनुसार संसार का मूल आधार ज्ञान है अर्थात शिक्षा के बिना मानव जीवन व्यर्थ एवं अर्थहीन है क्योंकि जिंदगी की भूल-भुलैयां के चक्रव्यूह से शिक्षित व्यक्ति का ही बाहर निकलना संभव तथा आसान होता है। अस्त्र-शस्त्र, ज्ञान, विज्ञान, राजनीति तथा संगीत के अलावा आदर्श पिता, माता, पत्नी-पति, भ्राता, स्वामी, राजा, प्रजा और आदर्श शत्रु का भी वर्णन मिलता है। आज भी उनकी शिक्षाएं पूरी दुनिया को मानवता, प्रेम, शांति तथा सहनशीलता का संदेश देती हैं तथा युद्ध, हिंसा व शत्रुता से होने वाले भयंकर विनाश के दुष्परिणामों से बचने का संकेत कर रही हैं।
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Niyati Bhandari

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