बुधवार 22 अप्रैल वैशाखी अमावस्या जानें उपाय और महत्व, आप भी उठाएं मौके का लाभ

punjabkesari.in Tuesday, Apr 21, 2020 - 05:41 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
22 अप्रैल, वैसाख मास के कृष्ण पक्ष की अमावस तिथि दिन बुधवार को वैसाख अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा। जैसे कि अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको बता चुके हैं कि यूं तो वैसाख मास का पूरा मास ही अधिक खास व महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका कारण है श्री हरि विष्णु, क्योंकि शास्त्रों में इस महीने को श्री हरि विष्णु का प्रिय माह बताया गया है। तो वहीं इसमें ये बताया गया है कि इस महीने में दान आदि करने से भी नारायण बहुत प्रसन्न होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में वैसाख माह का पूरा महीना ऐसे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है पर इस माह के कुछ ऐसे भी दिन हैं जिस दिन ऐसे कई और कार्य व पूजा-पाठ कर भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है। बता दें हम बात कर रहे हैं इस मास में पड़ने वाली अमावस्या की। शास्त्रों के अनुसार इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाए तो उनकी कृपा प्राप्त होती है। अब उनकी कृपा कैसे प्राप्त होती है। जी हां, आप सही सोच रहे हैं, इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा से धन के आगमन बढ़ने लगता है।

तो आइए जानते हैं देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का सबसे खास व सरल उपाय। साथ ही साथ बताएंगे इसका महत्व आदि। अप्रैल बुधवार को वैशाख मास की अमावस्या तिथि है। शास्त्रों में वैशाख अमावस्या का बहुत महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति माता लक्ष्मी की कृपा पाना चाहता है अगर वो इस अमावस्या तिथि के दिन अपने घर में ही दिन में तीन बार यें उपाय करता है तो देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर माता उस पर अपने शुभ आशीर्वाद की बरसात करती हैं।

आइए जानते हैं क्या है ये उपाय-
लगभग हर व्यक्ति जीवन में धन वैभव के साथ-साथ अपार संपन्नता की कामना रखता है। कहा जाता है इस कामना की पूर्ति के लिए वैशाख मास की अमावस्या के दिन, सुबह दोपहर एवं रात में (दिन में 3 बार) धन की देवी माता लक्ष्मी का विधिवत पूजन करना चाहिए तथा  इस दिन गाय के घी का दीपक उनके समक्ष जलाना चाहिए।

इसके साथ ही “ऊँ श्रीं” इस मंत्र का 108 बार तीनों समय जाप करने के बाद नीच दी गई श्री लक्ष्मी स्तुति का पाठ कामना पूर्ति के भाव से करना चाहिए, लाभ प्राप्त हो सकता है।  

।। अथ श्रीलक्ष्मी स्तुति ।।
1- नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।

शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - श्रीपीठपर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये, तुम्हें नमस्कार है, हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।

2- नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - गरुड़पर आरूढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।

3- सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

4- सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मंत्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें सदा प्रणाम है।

5- आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - हे देवि! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ते! हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

6- स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बडे-बडे पापों का नाश करने वाली हो, हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।

7- पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है ।

8- श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तुते॥

अर्थात - हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो, हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।

9- महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥

अर्थात - जो मनुष्य भक्ति युक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है ।

10- एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः॥

अर्थात - जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बडे-बडे पापों का नाश हो जाता है. जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है।

11- त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मिर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥

अर्थात - जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती है।


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Jyoti

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