भगवान विष्णु का अनोखा मंदिर जहां खंबो से निलकता है संगीत!

punjabkesari.in Sunday, Jun 19, 2022 - 01:40 PM (IST)

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हमारे देश में हर मंदिर के निर्माण के पीछे किसी न किसी देवता का रहस्य छुपा हुआ होता है। जैसा कि सब जानते हैं प्रत्येक मंदिर किसी न किसी खास विशेषता के चलते देश में प्रसिद्ध है और इन मंदिरों के दर्शन करने लोग दूर दूर से आते हैं। ऐसे में आज हम आपको एक बार फिर इस वेबसाइट के माध्यम से भगवान विष्णु के एक खास ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके खंभों को बजाने से उसमें से संगीत निकलना शुरू हो जाता है। जी हां, आपने सही सुना। तो आइए जानते हैं भगवान विष्णु का ये खास मंदिर कहां स्थित है और इससे जुड़ी कुछ खास बातें भी आपको बताते हैं।

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कर्नाटक के हम्पी परिसर के मंदिरों में विठल मंदिर की अनूठी खासियत है कि यह पत्थर से बने रथ के आकार का है और वह भी ऐसा कि इसके हर हिस्से को खोलकर कहीं भी ले जाया जा सकता है। पूर्वी दिशा में स्थित, यह रथ रूपी मंदिर वजनदार होने के बावजूद पत्थर के पहियों की मदद से स्थानांतरित किया जा सकता है।
रथ के ऊपर जो खम्भे बने हैं, उन्हें बजाने पर उसमें से संगीत निकलता है। रंग मंडप और 56 संगीतमय स्तंभों को थपथपाने से संगीत सुनाई देता है। अंग्रेज इस ध्वनि का रहस्य जानना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 2 खंभे कटवा दिए, लेकिन उन्हें वहां खोखले खंभों के अलावा कुछ नहीं मिला।
यह मंदिर एक 15वीं सदी की संरचना है जो भगवान वि_ल या भगवान विष्णु को समर्पित है। तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित यह मंदिर मूल दक्षिण भारतीय द्रविड़ मंदिरों की स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता है।

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मंदिर का निर्माण राजा देवराय द्वितीय के शासनकाल (1422 से 1446 ईस्वी) के दौरान किया गया था और यह विजयनगर साम्राज्य द्वारा अपनाई गई शैली का प्रतीक है।
मूर्तियों को भीतर के गर्भगृह में रखा गया है और यहां केवल मुख्य पुजारी ही प्रवेश कर सकते हैं। छोटा गर्भगृह आम जनता के लिए खुला है जबकि स्मारकीय सजावट बड़े गृह में देखी जा सकती है। मंदिर के परिवेश में मौजूद एक अन्य पत्थर का रथ अन्य आकर्षण है। इसे गरुड़ मंडप कहते हैं। मंदिर के परिसर के भीतर कई मंडप, मंदिर और विशाल कक्ष भी बनाए गए हैं।

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चतुर्भुज मंदिर
मध्य प्रदेश में स्थित ओरछा एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है जो प्रसिद्ध खजुराहो मंदिरों के पास है। शहर में चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मी मंदिर और राम राजा मंदिर हैं। ऊंचाई पर बने चतुर्भुज मंदिर का लम्बा शिखर लोगों के आकर्षण का विशेष केन्द्र है। इसका बाहरी हिस्सा कमल के प्रतीकों से सजा हुआ है।

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यह भगवान विष्णु को समॢपत है। यह एक जटिल बहुमंजिला संरचना वाला मंदिर है जो मंदिर, दुर्ग एवं राजमहल की वास्तुगत विशेषताओं से युक्त है।

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लक्ष्मी नारायण मंदिर
ओरछा का लक्ष्मी नारायण मन्दिर भी अनोखी स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण है। यह किले और मन्दिर का सुन्दर मिश्रण है। सन् 1622 में वीर सिंह देव द्वारा निर्मित और सन् 1793 में पृथ्वी सिंह द्वारा पुन: निर्मित इस मन्दिर की आंतरिक दीवारें पौराणिक विषयों के उत्कृष्ट भित्ती चित्रों के साथ सजी हैं।

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मन्दिर की नक्काशियों में भगवान श्री कृष्ण के जीवन को उभारती ज्यामितीय आकृतियां हैं जिन्हें जानवरों और फूलों की नक्काशी से सजाया गया है। यह मन्दिर विद्रोह के बाद की प्रसिद्ध चित्रकारियों के लिए भी जाना जाता है।
धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित मन्दिर इस स्थान का सबसे महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण भी है।
मन्दिर को राम राजा मन्दिर से जोड़ता पत्थरों से बना सुन्दर मार्ग है। मन्दिर के केन्द्रीय मंडप में भगवान गणेश की सुन्दर प्रतिमा है जो इस पूरी संरचना को और भी आकर्षक बनाती है। इसके अनोखेपन के कारण ही इसका प्रवेश द्वार बीच के बजाय एक कोने में स्थापित किया गया है। 

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Content Writer

Jyoti

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