कलयुग में ये अनूठा व्रत देगा उम्मीद से दोगुना फल

punjabkesari.in Thursday, Jun 07, 2018 - 02:59 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें VIDEO)
भारतीय संस्कृति में सत्य व्रत, सदाचार व्रत, संयम व्रत, अस्तेय व्रत, एकादशी व्रत व प्रदोष व्रत आदि बहुत से व्रत हैं, परंतु मौनव्रत अपने आप में एक अनूठा व्रत है। यह हमारे संस्कृति से जुड़ा हुआ है। मुनि शब्द मौन से उत्पन्न हुआ। अर्थात मौन वह तप है जो मुनि करते हैं। इस व्रत का प्रभाव दीर्घगामी होता है। इस व्रत का पालन समयानुसार किसी भी दिन, तिथि व क्षण से किया जा सकता है। अपनी इच्छाओं व समय की मर्यादाओं के अंदर व उनसे बंधकर किया जा सकता है। योगशास्त्र कहता है कि जो मनुष्य शरीर रूपी पिंड को बराबर जानता है उस मनुष्य को समष्टी रूप ब्रह्माण्ड जानना कुछ मुश्किल नहीं। 

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मौन के लाभ
एक पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए अगर कोई चाबी है तो वो है मौन! चाहे वो जीवन का पूर्ण रूप से अनुभव की बात हो यां परम मुक्ति यां खुशी! अपनी दृष्टी, भावनाओं, इच्छाओं और विचारों को एक सही दृष्टिकोण से देखने के लिए मौन एक उत्तम साधन है। स्वयं को जानने और अनुभव करने के लिए मौन एक खूबसूरत माध्यम है।
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मौन से भय
आज के तेज़ गति से भागते युग में शायद ही कहीं पूर्ण मौन हो। लोग मौन से भागते से नज़र आते हैं और मौन से डरते भी प्रतीत होते हैं। प्रष्ठभूमि में कोई न कोई आवाज़ बनी रहती है चाहे वो टेलीविज़न की हो यां फिर ट्रैफिक की। म में से कुछ के लिए मौन में रहना तो बहुत कठिन है क्योंकि हमारी सही पहचान सामने आ जाती है। हम अक्सर कोई रोल यां भूमिका निभा रह होते हैं और अपनी असल पहचान यां हम असल में है कौन से शर्मिन्दा होते हैं। हम अपने में शांत नहीं होते और इसलिए अपने मन को किसी ना किसी तरह व्यस्त रखने की कोशिश करते हैं ताकि हमें सोचना ना पड़े हम हैं कौन!
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हमारी ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता
जब हम बोलते हैं तो हम कई गुना अधिक ऑक्सीज़न उपयोग करते हैं। अधिक बात करने से हम ऊर्जा की खपत महसूस करते हैं, मन ज़रूरत से ज़्यादा गरम हो जाता है और हमारी प्रतिक्रया पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। हम गुस्सा करते हैं और अपना संयम खो देते हैं। एक शांत मन से क्रिया नहीं कर पाते। ऐसे लोगों को अधिक सुनना जो अधिक बात करते हैं भी हमारी ऊर्जा क्षति का कारण बन जाता है। 
 

PunjabKesariमौन में वार्ता
शब्दों के इस्तेमाल के बिना भी हम बहुत तरीकों से वार्ता कर सकते हैं। स्वामी जी मानते हैं की जब दो लोग मिलते हैं तो दूसरे स्तर पर बातचीत सम्भव है क्योंकि बातचीत केवल शब्दों के माध्यम से नहीं होती। जब दो आंखे मिलती हैं तभी भी बातचीत होती है। यह तो हमेशा होती रहती है। शब्द तो हमारी वास्तविक भावना को कुछ अधूरा ही स्पष्ट कर सकते हैं। भावनाओं की पूर्ण अभिव्यक्ति शब्दों के माध्यम से हो ही नहीं सकती।
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Jyoti

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