Tripura Bhairavi Jayanti: महाकाली की छाया से प्रकट हुई देवी त्रिपुर भैरवी, पढ़ें पूरी Information
punjabkesari.in Saturday, Dec 14, 2024 - 08:42 AM (IST)
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Tripura Bhairavi Jayanti 2024: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के उपलक्ष्य पर त्रिपुर भैरवी जयंती मनाई जाएगी। मूल प्रकृति आद्या शक्ति के दश महाविद्या की श्रेणी में देवी त्रिपुर-भैरवी छठी महाविद्या कहलाती हैं। शब्द 'त्रिपुर' का अर्थ है, त्रिलोक अर्थात स्वर्ग, पृथ्वी तथा पाताल व शब्द 'भैरवी' का अर्थ है भय का विनाश। अतः देवी त्रिपुर-भैरवी त्रिलोक में भय और पाप के विनाश हेतु स्थापित हैं। शब्द 'भैरवी' तीन अक्षरों से मिलकर बना हैं, पहला 'भै या भरणा' याने रक्षण, दूसरा 'र या रमणा' अर्थात रचना, तीसरा 'वी या वमना' अर्थात मुक्ति। तीनों लोकों के अंतर्गत विध्वंस कि जो शक्ति हैं, वह भैरवी हैं। देवी त्रिपुर-भैरवी विनाश, विध्वंस व मृत्यु के स्वामी महेश्वर के त्रिपुरारी रूप की शक्ति हैं, तथा यही महेश्वर के विध्वंसक प्रवृति की देवी प्रतिनिधित्व करती हैं। विनाशक प्रकृति से युक्त देवी पूर्ण ज्ञानमयी हैं। विध्वंस काल उपस्थित होने पर तमस गुण प्रदात्री देवी अपने भयंकर उग्र रूप में महेश्वर संग उपस्थित रहती हैं। इनकी उपासना से सभी बंधन दूर होते हैं, यह उपासना भव-बन्ध-मोचन कहलाती है।
त्रिपुर भैरवी का स्वरूप वर्णन: दुर्गा सप्तशती के अनुसार त्रिपुर भैरवी के उग्र स्वरूप की कांति हजारों उगते हुए सूर्य के समान हैं। दिगंबरा देवी श्यामल वर्ण की हैं व तीन खुले हुए नेत्रों से युक्त है व मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करती हैं व रुद्राक्ष, सर्पों व नरमुंड माला धरण किए हैं। इनके लम्बे काले घनघोर बाल हैं, चार भुजाओं से युक्त देवी अपने दायें हाथों में खड़ग व नरमुंड से निर्मित खप्पर धारण करती हैं तथा बायें हाथ से अभय तथा वर मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। देवी का मुखमंडल अत्यधिक डरावना हैं। देवी का प्राकट्य मृत देह से है व इन्हीं की शक्ति मृत देह को पंचतत्व में विलीन करती हैं। अतः ये दाह संस्कार की अग्नि हैं। सौम्य रूप में त्रिपुरभैरवी लाल वस्त्र व गले में मुंड-माला धारण किए हैं। समस्त देह पर रक्त चंदन का लेपन हैं। अपने दाएं हाथों में जप माला व पुस्तक धारण करती हैं, बायें हाथों से वर व अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं एवं कमल के आसन पर विराजमान हैं। इन्होंने ही अठारह भुजा युक्त दुर्गा रूप में उत्तम मधु का पान कर महिषासुर नामक दैत्य का वध किया था।
Mythological description of Tripura Bhairavi त्रिपुर भैरवी का पौराणिक वर्णन: नारद-पंचरात्र के अनुसार एक समय में महाकाली के मन में पुनः गौर वर्ण प्राप्त करने का विचार आता है। जिस पर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं। महादेव जब काली को अपने समक्ष नहीं पाते तो व्याकुल होकर देवऋषि नारद से देवी के विषय में पूछते हैं तब नारद जी उन्हें देवी का बोध करवाकर उनके प्राकट्य को सुमेरु के उत्तर में होना बताते हैं। तब महादेव की आज्ञानुसार नारद देवी को खोजने हेतु निकलते हैं। नारद सुमेरु के उत्तर में पहुंचकर देवी से महादेव के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं। इस प्रस्ताव पर देवी क्रुद्ध होकर देह से षोडशी विग्रह प्रकट करती है। अतः महाकाली के छाया-विग्रह से ही त्रिपुर-भैरवी का प्राकट्य होता है। शास्त्र रुद्रामल तंत्र के अनुसार सभी दश महाविद्या शिव की शक्तियां हैं व देवी भागवत के अनुसार छठी महाविद्या त्रिपुर-भैरवी ही महाकाली की उग्र रूप हैं। इनके कई भेद इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य, सिद्ध, भुवनेश्वर, संपदाप्रद, कमलेश्वरी, कौलेश्वर, कामेश्वरी, नित्या, रुद्र, भद्र व षटकुटा आदि त्रिपुर भैरवी ऊर्ध्व अन्वय की देवी हैं।
Tripura Bhairavi worship method त्रिपुर भैरवी पूजन विधि: महाकाली स्वरूपा देवी त्रिपुर भैरवी का विशेष पूजन प्रदोष में किया जाएगा। घर की दक्षिण दिशा में लाल वस्त्र बिछाकर तथा दक्षिणमुखी होकर देवी त्रिपुर भैरवी का चित्र व त्रिपुर भैरवी यंत्र स्थापित करें तत्पश्चात चित्र व यंत्र का विधिवत पूजन करें। तिल के तेल का दीप करें, गुगल धूप करें, रक्त चंदन से तिलक करें, आलता चढ़ाएं, लाल फूल चढ़ाएं। मसूर, उड़द व अरहर के दाने चढ़ाएं। गुड़ का भोग लगाएं तथा लाल चंदन की माला से इस विशेष मंत्र का यथासंभव जाप करें। पूजन उपरांत भोग किसी गरीब को दान दे दें।
Tripura Bhairavi Puja Mantra त्रिपुर भैरवी पूजा मंत्र: ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥