Tribute to Acharya Vinoba Bhave on his birth Anniversary: बेसहारा लोगों के लिए लड़े आचार्य विनोबा भावे

punjabkesari.in Wednesday, Sep 10, 2025 - 03:23 PM (IST)

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Tribute to Acharya Vinoba Bhave on his birth Anniversary: विद्वान और विचारशील व्यक्तित्व के धनी एवं पूरी जिंदगी सत्य व अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए गरीब और बेसहारा लोगों के लिए लड़ने वाले देश के महान समाज-सुधारकों तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में आचार्य विनोबा भावे का नाम शुमार है। विनोबा जी को इनके महान कार्यों के लिए 1958 में पहले ‘रैमन मैग्सेसे’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जबकि भारत सरकार ने 1983 में इन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। 11 सितम्बर, 1895 को बॉम्बे प्रैसीडैंसी (अब महाराष्ट्र) के नरहरि शंभू और मां रुक्मिणी देवी के परिवार में जन्मे आचार्य विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरी भावे था।

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उदार-चित्त, भक्ति-भाव में डूबी मां का इन पर गहरा प्रभाव था। वह सोने से पहले समर्थ गुरु रामदास की पुस्तक ‘दास बोध’ का प्रतिदिन अध्ययन कर बच्चों को संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव और शंकराचार्य की कथाएं सुना रामायण, महाभारत, उपनिषदों के तत्व ज्ञान के बारे में समझाती।

मां को संस्कृत की गीता समझ में न आने के कारण बाजार से 3-4 मराठी अनुवाद खरीद लाए। तब ‘मां ने कहा ‘तू क्यों नहीं करता नया अनुवाद’। मां ने जैसे चुनौती दी। ‘क्या मैं कर सकूंगा?’ विनोबा ने हैरानी जताई। पर मां को बेटे की क्षमता पर पूरा विश्वास था। ‘तू करेगा... तू कर सकेगा विन्या!’

मां के मुंह से बरबस निकल पड़ा। मानो आशीर्वाद दे रही हों। मां की इच्छा ही उनके लिए सर्वोपरि थी। इन्होंने अनुवाद कर्म के निमित्त कलम उठाई तो प्रात:काल स्नानादि के बाद अनुवाद करना दिनचर्या का हिस्सा बन गया। यह काम 1931 तक चला। विनोबा ने अनुवाद कर्म पूरा कर पुस्तक का नाम रखा गया- ‘गीताई’।

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7 जून, 1916 को अहमदाबाद स्थित कोचरब आश्रम में गांधीजी से मुलाकात के बाद विनोबा जीवन भर के लिए बापू के ही हो गए। 1921 से 1942 के बीच अनेक बार जेल यात्राएं होने से विनोबा के लिए ब्रिटिश जेल एक तीर्थधाम बन गई। आजादी के दुखद विभाजन से पूरे भारत में अशांति के माहौल में 18 अप्रैल, 1951 को आंध्र प्रदेश में आंदोलनकारी भूमिहर किसानों से मिलने के लिए नलगोंडा के पोचमपल्ली गांव पहुंचे। आंदोलनकारी किसानों ने उनसे कहा कि उन्हें 80 एकड़ जमीन मिल जाए तो उनका गुजारा हो सकता है।

आचार्य ने किसानों की मांग जमींदारों के सामने रखी और उनकी बातों से प्रभावित होकर एक जमींदार ने अपनी 100 एकड़ जमीन दान करने का निर्णय लिया। विनोबा भावे की अगुआई में 3 साल तक चले इस आंदोलन में गरीब किसानों के लिए 44 लाख एकड़ जमीन हासिल कर लगभग 13 लाख गरीबों की मदद हुई। यह आंदोलन आगे चलकर ‘सर्वोदय आंदोलन’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जो इनके जीवन का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक ‘भूदान’ आंदोलन है।

विनोबा जी के कार्यों और त्याग के कारण उन्हें ‘आचार्य’ की उपाधि दी गई। समय के साथ विनोबा जी को वृद्धावस्था ने आ घेरा और अन्न-जल त्यागने के कारण एक सप्ताह के अन्दर ही 15 नवम्बर, 1982 को वर्धा (महाराष्ट्र) में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।  

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Content Writer

Niyati Bhandari

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