पेड़-पौधे बदल सकते हैं आपके जीवन की दिशा और दशा

punjabkesari.in Monday, Apr 21, 2025 - 08:25 AM (IST)

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Why are plants and trees important in our life: पेड़-पौधे हमारे जीवन के लिए उतने ही आवश्यक हैं, जितनी सांस के लिए हवा, पीने के लिए पानी और जीने के लिए भोजन। जिस तरह जल के बगैर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती उसी तरह पेड़-पौधों के बिना जल की। अगर जल ही नहीं होगा तो जीवन भी नहीं होगा। पेड़-पौधे ही हैं जिनकी वजह से वर्षा होती है और फिर यही पेड़-पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से वर्षा के पानी को सोख कर भूमि में जल का स्तर बनाए रखते हैं जिसे हम नलकूपों के माध्यम से प्राप्त करते हैं। यदि हम यह कहें कि पेड़-पौधे हमारे लिए साक्षात ब्रह्मा का रूप हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra)
वास्तु विद्वानों के अनुसार घर में हरियाली के द्वारा शुद्ध ऑक्सीजन देकर पर्यावरण को शुद्ध और संतुलित रखना चाहिए। सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने के लिए पेड़-पौधे घर की सही दिशा में लगाने चाहिए। इससे वास्तु दोष तो दूर होते ही हैं। आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक प्रेम भी बना रहता है। दिशाओं के अनुसार पेड़-पौधे लगाने से व्यक्ति स्वस्थ और ऊर्जावान रहता है।  शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं से राहत मिलती है।

देवताओं का है वास 
हमारे ऋषि मुनियों ने अपने-अपने धर्मग्रंथों में कुछ पेड़ों को पूजनीय बताया है उनमें पीपल, वट, कदम्ब और तुलसी उल्लेखनीय हैं। पीपल की वरीयता के विषय में ग्रंथ कहते हैं कि ‘इसके मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण अश्वत्थ नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है। इसके अलावा पीपल पूजने के लिए अन्य कारण भी हैं। पीपल की छाया में कुछ ऐसा आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है, जिसके सेवन से वात, पित्त और कफ का शमन, नियमन होता है और मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।

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आयुर्वैदिक दवाइयों में प्रयोग 
आर्य संस्कृति में आयोजित यज्ञ में उपभृत पात्र पीपल से प्राप्त लकड़ियों से ही बनाए जाते हैं। पवित्रता की दृष्टि से यज्ञ में उपयोग की जाने वाली समिधाएं भी आम या पीपल की ही होती है। यज्ञ में अग्नि स्थापना के लिए पीपल के काष्ठ और शमी की लकड़ी की रगड़ से अग्नि को प्रज्वलित किया जाता है। वहीं इस पेड़ के छाल, फल व पत्ते को अब आयुर्वैदिक दवाइयों में प्रयोग किया जाने लगा है।

भगवान शिव लगाते हैं समाधि 
बरगद यानी वट वृक्ष को भी पूजनीय बताया गया है। कई सिद्ध पुरुषों ने अनुभव के आधार पर बताया है कि वट वृक्ष की छाया में एकाग्रता और समाधि के लिए अद्भुत और समीचीन वातावरण उपलब्ध होता है। भगवान शिव जैसे योगी भी वट वृक्ष के नीचे ही समाधि लगाकर तप साधना करते थे।

मनोरथ सिद्ध करता है वटवृक्ष 
कई सगुण साधकों, ऋषियों, यहां तक कि देवताओं ने भी वट वृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं। सृष्टि रचना के प्रारंभिक दौर में ब्रह्मा जी की यथेष्ट परिणाम में उचित सहायता प्राप्त कर अपना मनोरथ पूरा किया। सावित्री सत्यवान की प्रेरक कथा भी वट वृक्ष से जुड़ी है। उधर श्री कृष्ण स्मृति से जुड़ जाने के कारण कदम्ब वृक्ष की पूजा-अर्चना भी की जाती है। कालिंदी के तट पर भगवान कृष्ण का बांसुरी बजाना और गोपियों के साथ महारास जैसे दिव्य प्रसंग आदि का एकमात्र साक्षी कदम्ब भी रहा है।

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हर तने और शाख में हैं ब्रह्म
तुलसी को वेदों, औषधि विज्ञान के ग्रंथों और पुराणों में कायस्थ, तीवा, देव दुंभि, दैत्यधि, पावनी, पूत, पुत्री, सरला, सुभगा और सुरसा कह कर पुकारा गया है। अपने-अपने नामों में उसके अपने-अपने गुण हैं। तुलसी के प्रति यह भी महत्ता है कि तुलसी का पौधा जिस आंगन में लहलहाता है उसकी शोभा और सुगंध में पवित्रता होती है। 

गीता में भगवान बताते हैं कि इस संसार की पेड़-पौधों की जड़ें सर्वोपरी सत्ता ब्रह्मा की प्रतीक है। इसका तना और डालियां गुणों द्वारा पोषित होते हैं। वेदों, पुराणों और ऋषि मुनियों द्वारा पेड़ की महिमा इसलिए बताई गई है कि हम इसे अपनी संतान के समान ही समझें और इसे पाले क्योंकि पेड़-पौधे प्रकृति से जहर को चूस कर हमें जीवन जीने के लिए स्वच्छ वायु उपलब्ध करवाते हैं। इसलिए पेड़-पौधे किसी भी मायने में ब्रह्मा से कम नहीं।


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Content Writer

Niyati Bhandari

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