अपनी भव्यता को लेकर World Famous है ये टेम्पल

punjabkesari.in Sunday, May 20, 2018 - 06:42 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा

भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी ज़िले के कोणार्क कस्बे में कोणार्क सूर्य मंदिर स्थापित है। यह मंदिर निर्माण के 750 वर्ष बाद भी अपनी अद्वितीयता, विशालता व कलात्मक भव्यता से हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। वास्तव में जिसे कोणार्क के सूर्य मंदिर के रूप में पहचाना जाता है, वह पार्श्व में बने उस सूर्य मंदिर का महामंडप है, जो कई वर्षों पहले ध्वस्त हो चुका है। इस मंदिर को अंग्रेज़ी में ब्लैक पगोडा भी कहा जाता है।

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आपका राशिफल

सूर्य मंदिर को गंग वंश के राजा नरसिम्हा देव प्रथम ने लगभग 1278 ई. में बनवाया था। कहा जाता है कि ये मंदिर अपनी पूर्व निर्धारित अभिकल्पना के आधार पर नहीं बनाया जा सका। मंदिर के भारी गुंबद के हिसाब से इसकी नींव नहीं बनी थी। यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार ये गुंबद मंदिर का हिस्सा था पर इसकी चुम्बकीय शक्ति की वजह से जब समुद्री पोत दुर्घटनाग्रस्त होने लगे, तब ये गुम्बद हटाया गया। शायद इसी वजह से इस मंदिर को ब्लैक पगोडा भी कहा जाता है। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर से लाखों पर्यटक इस भव्य मंदिर के दर्शन करने आते हैं।
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ऐसे होंठ वाले होतें हैं CHARACTERLESS

सूर्यमंदिर भारत का इकलौता सूर्य मंदिर है जो पूरी दुनिया में अपनी भव्यता और बनावट के लिए जाना जाता है। इस मंदिर को देख ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं। यह प्रतिमा सूर्य मंदिर की सबसे भव्य प्रतिमाओं में से एक है। सूर्य की चार पत्नियां रजनी, निक्षुभा, छाया और सुवर्चसा प्रतिमा के दोनों तरफ़ हैं। सूर्य की प्रतिमा के चरणों के पास ही रथ का सारथी अरुण भी उपस्थित है।
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क्या आपके बच्चे नहीं सुनते आपकी बात!

समुद्र का तट उस समय मंदिर के समीप ही था, जहां बड़ी नौकाओं का आवागमन होता रहता था। अक्सर चुम्बकीय प्रभाव के कारण नौकाओं के दिशा मापक यंत्र दिशा का ज्ञान नहीं करा पाते थे। इसलिए इन चुम्बकों को हटा दिया गया और मन्दिर अस्थिर होने से ध्वस्त हो गया। इसकी ख्याति उत्तर में जब मुगलों तक पहुंची तो उन्होंने इसे नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
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16वीं सदी के मध्य में मुग़ल आक्रमणकारी कालापहाड़ ने इसके आमलक को नुकसान पहुंचाया व कई प्रतिमाओं को खंडित किया, जिसके कारण मंदिर का परित्याग कर दिया गया। इससे हुई उपेक्षा के कारण इसका क्षरण होने लगा। कुछ विद्वान मुख्य मंदिर के टूटने का कारण इसकी विशालता व डिज़ाइन में दोष को बताते हैं।

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Jyoti

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