ये 14 बुरी आदतें व्यक्ति को जीते जी बनाती हैं मृत

punjabkesari.in Thursday, Jan 25, 2018 - 10:34 AM (IST)

शास्त्रों में लिखी हर बात व्यक्ति के सुखी और खुशहाल जीवन के लिए बहुत अनिवार्य मानी गई है। व्यक्ति के हर कठिनाई का हल हिंदू धर्म शास्त्रों में मिलता है। यदि मनुष्य इसमें दिए गए नियमों का पालन करता है तो उसे जीवन में किसी भी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। शास्त्रों में कुछ नियम एेसे बताए गए है जो स्त्री हो या पुरूष दोनों को इनका समान रूप से ध्यान रखना चाहिए। अन्यथा ये बड़े संकटों ता कारण बन सकते हैं। तो आईए जानतें है गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस में लंकाकांड के एक प्रसंग के बारे में, जिसमें लंका दरबार में रावण और अंगद के बीच संवाद होता है। इस संवाद में अंगद ने रावण को बताया है कि कौन से 14 दुर्गण या बातें आने पर व्यक्ति जीते जी मृतक समान हो जाते हैं।

 
कामवश
जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो सदैव संसार के भोगों में उलझा हुआ रहता हो, वह मृत समान हो जाता है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही अपनी जीवन जीता है, वह मृत समान है।

 

वाम मार्गी
जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो, नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। शास्त्रों में ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।

 

कंजूस
अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मृत समान ही है।

 

अति दरिद्र
गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वो भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ हैं। एेसे लोगों को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योकि वह पहले ही मृत समान होतें हैं। बल्कि गरीब लोगों की मदद नहीं चाहिए।

 

विमूढ़
अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसके पास विवेक, बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले सके। हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है।


अजसि
जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता है, वह व्यक्ति मृत समान ही होता है।


सदा रोगवश
जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मुक्ति की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

 

अति बूढ़ा
अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।


संतत क्रोधी
24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि, दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।


अघ खानी
जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।

 

तनु पोषक
ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो तो ऐसा व्यक्ति भी मृत समान है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकि किसी अन्य को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं।


निंदक
अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी ना किसी की बुराई ही करे, वह इंसान मृत समान होता है।

 

विष्णु विमुख
जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते हैं, वही होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।

 

संत और वेद विरोधी
जो संत, ग्रंथ, पुराण और वेदों का विरोधी है, वह भी मृत समान होता है।


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