Teachers Day 2025: जानें, कैसे एक साधारण इच्छा से शुरू हुई राष्ट्रीय शिक्षक दिवस की परंपरा

punjabkesari.in Friday, Sep 05, 2025 - 07:03 AM (IST)

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Teachers Day 2025: गुरु-शिष्य परम्परा भारत में प्राचीन समय से चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृतांत ग्रंथों में भी मिलता है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। उनका ऋण हम किसी भी रूप में उतार नहीं सकते, लेकिन जिस समाज में रहना है, उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं।

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यद्यपि परिवार को बच्चे के प्रारंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है, लेकिन जीने का असली सलीका उसे शिक्षक ही सिखाता है। समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता, क्योंकि वे न सिर्फ विद्यार्थी को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि उसके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के द्वारा रखी जाती है। शिक्षक प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है।

किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है। ऐसी परंपरा हमारी संस्कृति में थी, इसलिए कहा गया है कि-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुवष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:॥


इसका अर्थ है- गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु शंकर (महेश्वर) हैं। गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं, उन गुरु को मेरा नमस्कार है। शिक्षक अपने शिष्य के जीवन के साथ-साथ उसके चरित्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कहा जाता है कि सबसे पहली गुरु मां होती है, जो अपने बच्चों को जीवन प्रदान करने के साथ-साथ जीवन के आधार का ज्ञान भी देती है। इसके बाद अन्य शिक्षकों का स्थान होता है।

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किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करना बहुत ही विशाल और कठिन कार्य है। व्यक्ति को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना उसी प्रकार का कार्य है, जैसे कोई कुम्हार मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य करता है। इसी प्रकार शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व का निर्माण भी करते हैं। कुछ शिक्षक ऐसे हुए, जिन्होंने अपने कार्यों से भारत को सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाने का कार्य किया। इनमें राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद, डॉ. भीम राव अम्बेडकर, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ऐसे ही शिक्षक थे।

‘शिक्षक दिवस’ की शुरुआत
भारत में ‘शिक्षक दिवस’ हर वर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है, जबकि ‘अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ का आयोजन 1994 से 5 अक्तूबर को होता है। यूनेस्को ने 5 अक्तूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस’ घोषित किया था। इसी प्रकार विश्व के लगभग 100 देशों में अलग-अलग दिन ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

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भारत में शिक्षक दिवस मनाने की परम्परा 1962 में शुरू हुई जब देश के पहले उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाने के लिए उनके छात्रों ने ही उनसे इस बात को लेकर स्वीकृति ली थी। तब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘मेरा जन्मदिन मनाने की बजाय यह दिन शिक्षकों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए योगदान और समर्पण को सम्मानित करते हुए मनाएं, तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी।’’ डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने करीब 40 साल तक एक शिक्षक के रूप में कार्य किया था।

उनका जन्म 5 सितम्बर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुतनी नामक गांव में हुआ। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता, परंतु वह बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे और फिलॉसफी में एम.ए. की, फिर इसके बाद 1916 में मद्रास रैजीडैंसी कॉलेज में फिलॉसफी के असिस्टैंट प्रोफैसर के रूप में कार्य किया, फिर कुछ साल बाद प्रोफैसर बने।

देश के कई विश्वविद्यालयों के साथ ही कोलंबो एवं लंदन यूनिवॢसटी ने भी डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मानक उपाधियों से सम्मानित किया। 14-152 तक वह मास्को में भारत के राजदूत रहे और 152 में भारत के पहले उपराष्ट्रपति बनाए गए जबकि 1962 में देश के दूसरे राष्ट्रपति बने। वह करते थे कि ‘‘पुस्तकें वे साधन हैं, जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के मध्य पुल बनाने का कार्य कर सकते हैं।’’

उनका यह कथन न सिर्फ सत्य और अपने आप में प्रासंगिक है, बल्कि दो संस्कृतियों के साथ-साथ मनुष्यों के बीच भी बेहतर संबंधों का निर्माण करने हेतु शिक्षा बहुत आवश्यक है। 

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Content Editor

Sarita Thapa

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