स्वामी प्रभुपाद: जो जान गया मैं कौन हूं, वही जान पाया कृष्ण कौन हैं ?

punjabkesari.in Sunday, May 25, 2025 - 03:01 PM (IST)

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साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः:।
प्रयाणकालेऽपि च मा ते विदुर्युक्तचेतस:॥7.30॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : जो मुझ परमेश्वर को मेरी पूर्ण चेतना में रह कर मुझे जगत का, देवताओं का तथा समस्त यज्ञविधियों का नियामक जानते हैं, वे अपनी मृत्यु के समय पर भी मुझ भगवान को जान और समझ सकते हैं।

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कृष्णभावनामृत में कर्म करने वाले मनुष्य कभी भी भगवान को पूर्णतया समझने के पथ से विचलित नहीं होते। कृष्णभावनामृत के दिव्य सान्निध्य से मनुष्य यह समझ सकता है कि भगवान किस तरह भौतिक जगत तथा देवताओं तक के नियामक हैं। धीरे-धीरे ऐसी दिव्य संगति से मनुष्य का भगवान में विश्वास बढ़ता है, अत: मृत्यु के समय ऐसा कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कृष्ण को कभी भुला नहीं पाता। अतएव वह सहज ही भगवद्धाम गोलोक वृंदावन को प्राप्त होता है।

यह सातवां अध्याय विशेष रूप से बताता है कि कोई किस प्रकार से पूर्णतया कृष्णभावनाभावित हो सकता है। कृष्णचेतना का शुभारंभ ऐसे व्यक्तियों के सान्निध्य से होता है जो कृष्णभावनाभावित होते हैं। ऐसा सान्निध्य आध्यात्मिक होता है और इससे मनुष्य प्रत्यक्ष भगवान के संसर्ग में आता है और भगवत्कृपा से वह कृष्ण को भगवान समझ सकता है।

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इस अध्याय में जिन अनेक विषयों की विवेचना की गई है वे हैं-दुख के समय मनुष्य, जिज्ञासु मानव, अभावग्रस्त मानव, ब्रह्म ज्ञान, परमात्मा ज्ञान, जन्म मृत्यु तथा रोग से मुक्ति एवं परमेश्वर की पूजा, किन्तु जो व्यक्ति वास्तव में कृष्णभावनामृत को प्राप्त है, वह विभिन्न विधियों की परवाह नहीं करता। इस प्रकार श्रीमद्भागवत के सातवें अध्याय ‘भगवद्ज्ञान’ का भक्ति वेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ।

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Content Editor

Prachi Sharma

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