स्वामी प्रभुपाद: जानें, कृष्णभावनामृत का रहस्य है
punjabkesari.in Friday, Oct 27, 2023 - 10:06 AM (IST)

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युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्। अयुक्त: कामकारेण फले सक्तो निबध्यते।5.12।
अनुवाद एवं तात्पर्य : निश्चल भक्त शुद्ध शांति प्राप्त करता है क्योंकि वह समस्त कर्मफल मुझे अर्पित कर देता है, किन्तु जो व्यक्ति भगवान से युक्त नहीं है और जो अपने श्रम का फलकामी है, वह बंध जाता है। कृष्णभावनाभावित व्यक्ति तथा एक देहात्मबुद्धि वाले व्यक्ति में एक अंतर है कि पहला तो श्री कृष्ण के प्रति आसक्त रहता है, जबकि दूसरा अपने कर्मों के फल के प्रति आसक्त रहता है। जो व्यक्ति श्री कृष्ण के प्रति आसक्त रहकर उन्हीं के लिए कर्म करता है, वह निश्चय ही मुक्त पुरुष है और उसे अपने कर्मफल की कोई चिंता नहीं व्यापती। भागवत में किसी कर्म के फल की चिंता का कारण परमसत्य के ज्ञान के बिना द्वैतभाव में रह कर कर्म करना बताया गया है।
श्री कृष्ण श्रीभगवान हैं। कृष्णभावनामृत में कोई द्वैत नहीं रहता। जो कुछ विद्यमान है वह श्री कृष्ण की शक्ति का प्रतिफल है और श्री कृष्ण सर्वमंगलमय हैं। अत: कृष्णभावनामृत में सम्पन्न सारे कार्य परम पद पर हैं। वे दिव्य होते हैं और उनका कोई भौतिक प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण कृष्णभावनामृत में जीव शांति से पूरित रहता है, किन्तु जो इंद्रितृप्ति के लिए लाभ के लोभ में फंसा रहता है उसे शांति नहीं मिल सकती। यही कृष्णभावनामृत का रहस्य है।