Surya devta in Hinduism: सूर्य में है ऐसी शक्ति, हर कष्ट से मिलती है मुक्ति !

punjabkesari.in Monday, Nov 25, 2024 - 11:02 AM (IST)

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सूर्य साक्षात परमात्मा स्वरूप हैं। शास्त्र एक स्वर में इनकी वंदना, अर्चना (पूजा-पाठ) को मानव का परम कर्तव्य बतलाते हैं। सूर्य से ही सभी ऋतुएं होती हैं। सूर्य को ही कालचक्र का प्रणेता स्वरूप माना गया है। सूर्य से ही सभी जीव उत्पन्न होते हैं, सभी योनियों में जो जीव है, उनका आविर्भाव, प्रेरणा, पोषण आदि सब सूर्य से ही होते हैं और अंत में सभी जीव उन्हीं में विलीन हो जाते हैं। अत: उनकी उपासना करनी ही चाहिए। 

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भगवान सूर्य का गायत्री मंत्र यह है  : ॐ भास्कराय विद्म हे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात।’

सूर्य का नाम आदित्य भी है। आदित्य से अग्नि, जल, वायु, आकाश तथा भूमि की उत्पत्ति हुई है। देवताओं की उत्पत्ति भी सूर्य से ही मानी गई है। इस समस्त ब्रह्मांड को अकेले सूर्य ही तपाते हैं। अत: सूर्य आदित्य ब्रह्म हैं।

सूर्य ही हमारे शरीर में, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार आदि के रूप में व्याप्त हैं। हमारी पांचों ज्ञानेंद्रियों और पांचों कर्मेंद्रियों को भी वे ही प्रभावित करने वाले हैं। इस प्रकार भगवान सूर्य देवता को सभी दृष्टियों से बहुत महत्व प्राप्त है। सूर्य के उदय के साथ ही जगत के कार्य प्रारंभ होते हैं। सूर्य ही दिन-रात और ऋतुचक्र के नियामक हैं। सूर्य की ऊष्मा के बिना वनस्पति पक नहीं सकती, अन्न उत्पन्न नहीं हो सकता और परिणामत: प्राणधारी प्राण को धारण नहीं कर सकते। सूर्य की किरणों में सब मानवोपयोगी तत्व विद्यमान हैं। देवोपासना में भगवान सूर्यदेव का विशिष्ट स्थान है। भगवान सूर्य का प्रत्येक दर्शन सभी जनों को प्रतिदिन अनुभव होता है। सम्पूर्ण वैदिक स्मार्त अनुष्ठान एवं संसार के सभी कार्य भगवान सूर्य देवता की ही कृपा के अधीन हैं।

विश्व का एक-एक जीव उनकी कृपा का कृतज्ञ है। इसी दृष्टि को लेकर करोड़ों-करोड़ों जन प्रतिदिन प्रात: सायं भगवान सूर्य नारायण को पुष्प समन्वित जल के अर्घ्य देकर उनको नमन करते हैं। धर्मशास्त्र हमें सूर्योदय से पूर्व उठने का आदेश देते हैं। ये प्रकाशमय देव हमें प्रकाश देकर सत्कर्मों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देते हैं। भगवान सूर्य सम्पूर्ण धर्म तथा कार्य जगत के परम उपकारक हैं। भगवान के बाद सबसे अधिक नाम सूर्य के हैं। विवस्वान्, पुषा, धाता, विधाता, सविता, मित्र, वरुण, आदित्य, शक, उरूक्रम, विष्णु, भग इत्यादि नाम अलग-अलग होते हुए भी सूर्य के वाचक भी हैं इसलिए इन नामों से इन देवताओं के वर्णन के साथ सूर्य की स्तुति भी होती है।

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इस धरती के प्रत्येक कण एवं क्षेत्र में पाई जाने वाली शक्तियों का उद्गम केंद्र सूर्य ही है। उसकी गुलाबी, नीली, हरी, पीली, नारंगी, लाल किरणें वस्तुत: शक्ति तरंगें होती हैं। इनमें मनुष्य के लिए उपयोगी सभी तत्व विद्यमान हैं। सब रोगों को दूर करने की शक्ति है।
भगवान सूर्य सम्पूर्ण जगत की आत्मा हैं। इनकी उपासना रोगों, कृमियों को नष्ट करती है। उदित होते सूर्य का नियमित सेवन हृदय और मस्तिष्क के सब विकार नष्ट करने की सामर्थ्य रखता है।

आधुनिक चिकित्सा शास्त्रियों ने सूर्य की स्वास्थ्यदायिनी शक्ति को भली भांति समझा और अनुभव किया क्योंकि ‘प्रकाश ही जीवन है और अंधकार ही मृत्यु’।

प्रात:कालीन सूर्य रश्मियों में कई तत्व समुचित मात्रा में रहते हैं। जैसे-जैसे धूप चढ़ती है, लाल रंग की किरणें बढ़ती जाती हैं, उनमें अधिक गर्मी पैदा करने के गुण हैं। प्रात:कालीन सूर्य किरणों को शरीर पर लेने का महत्व वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों की दृष्टियों से उत्तम माना गया है। प्रात: कालीन वायु में टहलना भी इसीलिए अधिक उपयोगी माना गया है। केवल सूर्य की किरणों द्वारा ही विटामिन ‘डी’ की उत्पत्ति होती है।

भगवान सूर्य हमारी उपासना के मूल बिंदू हैं। ‘सूर्य से ही जीवन है।’ ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है इसलिए सूर्योपासना करके साधक रोगों से मुक्ति पाता है और जीवन समृद्धशाली बना लेता है। अत: सभी साधकगण भगवान सूर्य की उपासना अवश्य करें ताकि हम सुखी और कृतार्थ बन सकें। प्रत्यक्ष देव के रूप में भगवान सूर्य सम्पूर्ण जगत के परम आराध्य देव हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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