Story of Vamana Avatar: आज भी भगवान वामन अपने इन भक्तों को देते हैं प्रतिदिन दर्शन, पढ़ें पौराणिक कथा

punjabkesari.in Friday, Dec 20, 2024 - 08:07 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Story of Vamana Avatar: एक समय की बात है- युद्ध में इन्द्र से हारकर दैत्यराज बलि गुरु शुक्राचार्य की शरण में गए। कुछ समय बाद गुरु कृपा से बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। बलि अपार शक्तियों का स्वामी और साथ ही धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था परंतु उसकी सबसे बड़ी खामी थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था। वह देवताओं का घोर विरोधी भी था।

PunjabKesari Story of Vamana Avatar
प्रभु की महिमा कितनी विचित्र है कि कल के देवराज इन्द्र आज भिखारी हो गए। वह दर-दर भटकने लगे। अंत में अपनी माता अदिति की शरण में गए। इन्द्र की दशा देखकर मां का हृदय फटने लगा। अपने पुत्र के दुख से दुखी अदिति ने अत्यंत कठिन व्रत रखा। व्रत के अंतिम दिन भगवान ने प्रकट होकर अदिति से कहा, ‘‘देवी! चिन्ता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र रूप में जन्म लूंगा। इन्द्र का छोटा भाई बनकर उनका कल्याण करूंगा।’’ यह कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए।

आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गई। अदिति के गर्भ से भगवान ने वामन के रूप में अवतार लिया। भगवान को पुत्र रूप में पाकर अदिति की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। भगवान को वामन ब्रह्मचारी के रूप में देखकर देवताओं और महर्षियों को बड़ा आनंद हुआ। उन लोगों ने कश्यप को आगे करके भगवान का उपनयन आदि संस्कार करवाया।

PunjabKesari Story of Vamana Avatar
उसी समय भगवान ने सुना कि राजा बलि भृगुकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं। उन्होंने वहां के लिए यात्रा की। भगवान वामन कमर में मूंजकी मेखला और यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे। बगल में मृगचर्म था। सिर पर जटा थी। इसी प्रकार बौने ब्राह्मण के वेष में अपनी माया से ब्रह्मचारी बने हुए भगवान ने बलि के यज्ञ मंडल में प्रवेश किया। उन्हें देखकर बलि का हृदय गद्गद हो गया। उन्होंने भगवान को एक उत्तम आसन दिया। बलि ने नाना प्रकार से भगवान वामन की पूजा की।

PunjabKesari Story of Vamana Avatar

उसके बाद बलि ने प्रभु से कुछ मांगने का अनुरोध किया। उन्होंने तीन पग भूमि मांगी। शुक्राचार्य प्रभु की लीला समझ रहे थे। उन्होंने दान देने से बलि को मना किया। बलि नहीं माना। उसने संकल्प लेने के लिए जल पात्र उठाया। शुक्राचार्य अपने शिष्य का हित सोचकर पात्र में प्रवेश कर गए। जल गिरने का स्तर रुक गया। भगवान ने एक कुश उठाकर पात्र के छेद में डाल दिया। उनकी एक आंख फूट गई। बलि का संकल्प पूरा होते ही भगवान वामन ने एक पग में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आपको ही सौंप दिया।

बलि के इस समर्पण भाव से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक (पाताल का एक हिस्सा) का राज्य दे दिया। इन्द्र को स्वर्ग का स्वामी बना दिया। कहा जाता है कि भगवान वामन द्वारपाल के रूप में राजा बलि को और उपेंद्र के रूप में इन्द्र को नित्य दर्शन देते हैं।

PunjabKesari Story of Vamana Avatar


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News