मानो या न मानो: दुर्योधन को भी मरने के बाद मिला था स्वर्ग !

punjabkesari.in Friday, Aug 02, 2024 - 12:51 PM (IST)

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Mahabharata: धरती लोक पर भ्रांति है की स्वर्ग और नरक पुण्य और पाप के परिणामस्वरूप प्राप्त होते हैं। जहां आत्मा सुख और आनंद का अनुभव करती है, वह स्वर्ग है और जहां आत्मा दुख और कष्ट सहती है, उसे नरक कहा जाता है। ये दोनों स्थान धरती पर किए गए कर्मों के अनुसार भोगे जाते हैं। आत्मा मोक्ष की प्राप्ति के लिए कर्मों के योग और साधना के माध्यम से स्वर्ग और नरक के चक्र से मुक्त होती है।

PunjabKesari Story of Duryodhana

Duryodhana Character Analysis in Mahabharata: महाभारत में बताई गई कथा के अनुसार युद्ध उपरांत कौरवों के वंश का नाश हुआ और पांडव विजयी हुए। कुछ समय तक हस्तिनापुर पर शासन करने के बाद उन्होंने सशरीर स्वर्ग की यात्रा का आरंभ किया। युधिष्ठिर जब अपने भाईयों के साथ स्वर्गारोहण कर रहे थे तो कहते हैं की उनके अन्य भाई जिन्होंने पीछे मुड़कर देखा वह बर्फ में गलकर मर गए और युधिष्ठर यूं ही अपने लक्ष्य को भेदते हुए स्वर्ग के द्वार तक पहुंचे उन्हें लेने के लिए देवी विमान भी आया। दूसरे लोक पहुंचकर युधिष्ठिर ने नरक और फिर स्वर्ग, दोनों स्थानों की ओर रूख किया। जब वह स्वर्ग में गए तो सर्वप्रथम उनकी भेंट दुर्योधन से हुई फिर वह अपने भाइयों से भी मिले। भीम दुर्योधन को स्वर्ग में देखकर बहुत विचलित हुआ और विचार करने लगा आखिर यह स्वर्ग में कैसे ?

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अपनी जिज्ञासा का समाधान करने के लिए वह युधिष्ठिर के पास गया और बोला, " भैया, पापी दुर्योधन ने जीवन भर अन्याय का पथ अपनाया। कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे इसे पुण्य स्वरूप स्वर्ग मिले। फिर यह यहां कैसे आनंद से रह रहा है? क्या विधी का विधान भी गलत हो सकता है?"

युधिष्ठिर ने कहा," ऐसा नहीं है भीम, विधी का विधान कभी गलत नहीं होता। अच्छाई का फल पुण्य में और बुराई का फल दंड रूप में ही मिलता है। दुर्योधन में केवल एक अच्छाई थी जिसके फल स्वरूप उसे स्वर्ग मिला।"

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युधिष्ठिर पर अपने मामा शकुनी के गलत संस्कारों का प्रभाव था। जिससे वे अपने जीवन को सही दिशा में न ले जा सका लेकिन अपने लक्ष्य को पाने के लिए तन्मयतापूर्वक लगा रहा। यह ही उसमें सबसे बड़ा गुण था। उसका यह गुण सद्गुण में परिवर्तित हो गया था इसलिए थोड़ी देर के लिए उसे स्वर्ग के सुख भोगने को मिले।

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साधक अथवा ध्याता को अपनी दृष्टि सदैव एकाग्रचित होकर अपने ध्यय पर स्थित रखनी चाहिए तभी वह अपने लक्ष्य और ध्यय को प्राप्त कर सकता है। जो भी इधर-उधर या पीछे देखता है विचलित हो जाता है। वह ध्यान के बिंदू को प्राप्त नहीं कर पाता। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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