व्यवहार में शामिल ये 1 दोष, लोक-परलोक में देता है दुख

punjabkesari.in Friday, Mar 23, 2018 - 12:36 PM (IST)

सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राट होते हुए भी महाराजा अंबरीष भौतिक सुखों से परे थे और सतोगुण के प्रतीक माने जाते थे। एक दिन वह एकादशी व्रत का पारण करने वाले थे कि महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों सहित वहां पहुंच गए। 


अंबरीष ने उनको शिष्यों सहित भोजन ग्रहण करने का निमंत्रण दिया जिसे दुर्वासा ने स्वीकार कर कहा, ‘‘ठीक है राजन, हम सभी यमुना स्नान करने जाते हैं और उसके बाद प्रसाद ग्रहण करेंगे।’’


महर्षि को लौटने में विलंब हो गया और अंबरीष के व्रत पारण की घड़ी आ पहुंची। राजगुरु ने उन्हें परामर्श दिया कि आप तुलसी दल के साथ जल पीकर पारण कर लें। इससे पारण विधि भी हो जाएगी और दुर्वासा को भोजन करवाने से पूर्व ही पारण करके पाप से भी बच जाएंगे। अंबरीष ने जल ग्रहण कर लिया। 


दुर्वासा मुनि लौटे तो उन्होंने योगबल से राजन का पारण जान लिया और इसे अपना अपमान समझकर महर्षि ने क्रोधित होकर अपनी एक जटा नोची और अंबरीष पर फैंक दी। वह कृत्या नामक राक्षसी बनकर राजन पर दौड़ी। भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, जो राजा अंबरीष की सुरक्षा के लिए वहां तैनात रहता था, दुर्वासा को मारने उनके पीछे दौड़ा। दुर्वासा ने इंद्र, ब्रह्मा और शिव की स्तुति कर उनकी शरण लेनी चाही लेकिन सभी ने अपनी असमर्थता जताई। लाचार होकर वह शेषशायी विष्णु की शरण में गए, जिनका सुदर्शन चक्र अभी भी मुनि का पीछा कर रहा था। भगवान विष्णु ने भी यह कहकर विवशता जताई कि मैं तो स्वयं भक्तों के वश में हूं। तुम्हें भक्त अंबरीष की ही शरण में जाना चाहिए जिसे निर्दोष होते हुए भी तुमने क्रोधवश प्रताडि़त किया है। हारकर क्रोधी दुर्वासा को राजा अंबरीष की शरण में जाना पड़ा। राजा ने उनका चरण-स्पर्श किया और सुदर्शन चक्र लौट गया। 


तात्पर्य यह है कि क्रोध ऐसा तमोगुण है जिसका धारणकर्ता दूसरों के सम्मान का अधिकारी नहीं रह जाता, यहां तक कि भगवान भी उसे अपनी शरण नहीं देते।

 
गीता भी कहती हैं- क्रोध से मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरण शक्ति का विभ्रम हो जाता है। जब स्मरण शक्ति भ्रमित हो जाती है तो बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य अपनी स्थिति से गिर जाता है।


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