Srimad Bhagavad Gita: कर्तापन की भावना को छोड़ना

punjabkesari.in Saturday, Sep 17, 2022 - 09:22 AM (IST)

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Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि तुम सफलता तथा असफलता जैसी धु्रवीयताओं को त्याग कर कार्य करोगे तो वह समत्व ही योग कहलाता है। दूसरे शब्दों में, हम जो कुछ भी करते हैं, वह सामंजस्यपूर्ण होगा, जब हम ध्रुवीयताओं के साथ पहचान करना बंद कर देंगे।दैनिक जीवन में हम कई निर्णय लेते हैं और विकल्पों का चयन करते हैं। निर्णय लेने वाला दिमाग हमेशा उपलब्ध विकल्पों में से चुनता रहता है, जिन्हें श्री कृष्ण सुख-दुख, लाभ-हानि, जीत-हार और सफलता-विफलता में वर्गीकृत करते हैं। समत्व का मतलब है इन सभी को समान मानना। जब यह अहसास गहरा होता है, तो मन शक्तिहीन हो जाता है और चुनाव रहित जागरूकता प्राप्त कर लेता है।

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यह वह स्थिति है जब हम नींद में या नशे में न हों और आलोचना करने की क्षमता होने के बावजूद आलोचना न करें। यही स्थिति समत्व है। यह केवल एक दृष्टा बनकर वर्तमान क्षण में रहना है। कर्म करते समय समता प्राप्त करने का व्यावहारिक मार्ग यह है कि कर्तापन को छोड़कर साक्षी बनें।

यह पूरी तीव्रता, प्रतिबद्धता, समर्पण, दक्षता और जुनून के साथ किसी नाटक में भूमिका निभाने जैसा है, जब आप दी गई परिस्थितियों में अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं। इसी तरह जीवन के भव्य मंच पर हमें जो भूमिकाएं दी जाती हैं, उन्हें हमें पूरी लगन के साथ निभाना चाहिए। यह एक पुत्र-पुत्री, पत्नी-पति, माता-पिता, मित्र, कर्मचारी, नियोक्ता, सहकर्मी, पर्यवेक्षक आदि की भूमिका हो सकती है।

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एक दिन में हम कई अलग-अलग भूमिकाओं को निभाते हैं और प्रत्येक भूमिका को निभाते हुए हमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहिए, लेकिन यह अच्छी तरह जानते और समझते हुए कि हमारी भूमिका सिर्फ नाटक का एक हिस्सा है।

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जीवन द्वारा हमें दी गई सभी भूमिकाओं में कुछ दिनों के लिए इसका अभ्यास करना शुरू कर सकते हैं और अपने जीवन में आने वाले सामंजस्य को स्वयं देख सकते हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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