श्रीमद्भगवद्गीता: ‘काम’ से ‘क्रोध’ प्रकट होता है
punjabkesari.in Sunday, Oct 17, 2021 - 11:10 AM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
‘काम’ से ‘क्रोध’ प्रकट होता है
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक-
ध्यायतो विषयान्पुंस: सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्सञ्जायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते।।
अनुवाद एवं तात्पर्य : इंद्रिय विषयों का चिंतन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है। जो मनुष्य कृष्णभावनाभावित नहीं है उसमें इंद्रिय विषयों के चिंतन से भौतिक इच्छाएं उत्पन्न होती हैं। इंद्रियों को किसी न किसी कार्य में लगे रहना चाहिए और यदि वे भगवान की दिव्य प्रेमा भक्ति में नहीं लगी रहेंगी तो निश्चय ही भौतिकतावाद में लगना चाहेंगी।
इस भौतिक जगत में हर एक प्राणी इंद्रिय विषयों के अधीन है यहां तक कि ब्रह्मा तथा शिवजी भी। तो स्वर्ग के अन्य देवताओं के विषय में क्या कहा जा सकता है?
इस संसार के जंजाल से निकलने का एकमात्र उपाय है कृष्णभावनाभक्ति होना। तरुण भागवद् भक्त हरिदास ठाकुर को माया देवी के अवतार ने मोहित करने का प्रयास किया किन्तु विशुद्ध कृष्ण भक्ति के कारण वह इस कसौटी में खरे उतरे।
जैसा कि यमुनाचार्य के श्लोक में बताया जा चुका है, भगवान का एकनिष्ठ भक्त ही केवल भगवान की संगति के आध्यात्मिक सुख का आस्वादन करने के कारण समस्त भौतिक इंद्रिय सुख को त्याग देता है।
अत: जो कृष्णभावनाभक्ति नहीं है वह कृत्रिम दमन के द्वारा अपनी इंद्रियों वश में करने में कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में अवश्य असफल होगा क्योंकि विषय सुख का रंचमात्र विचार भी उसे इंद्रिय तृप्ति के लिए उत्तेजित कर देगा।