Srimad Bhagavad Gita:  श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप - शुद्ध जीवन का महत्व

punjabkesari.in Wednesday, Sep 13, 2023 - 07:57 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता - स्वामी प्रभुपाद

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्ववित्।
पश्यञ्शृणवन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्रन्गच्छन्स्वपन्श्वसन्।
प्रलपन्विसृजन्गृह्वन्नुन्मिषन्निमिषन्नपि।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्।।5.8।।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

अनुवाद एवं तात्पर्य:  दिव्य भावनामृत युक्त पुरुष देखते, सुनते, स्पर्श करते, सूंघते, खाते, चलते-फिरते, सोते तथा श्वास लेते हुए भी अपने अंतर में सदैव यही जानता रहता है कि वास्तव में वह कुछ नहीं करता। बोलते, त्यागते, ग्रहण करते या आंखें खोलते, बंद करते हुए वह यह जानता रहता है कि भौतिक इंद्रियां अपने-अपने विषयों में प्रवृत्त हैं और वह इन सबसे पृथक है।

चूंकि कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति का जीवन शुद्ध होता है, फलत: उसे निकट तथा दूरस्थ पांच कारणों कर्त्ता, कर्म, अधिष्ठान, प्रयास तथा भाग्य पर निर्भर किसी कार्य से कुछ लेना-देना नहीं रहता। इसका कारण यही है कि वह भगवान की दिव्य सेवा में लगा रहता है। यद्यपि ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपने शरीर तथा इंद्रियों से कर्म कर रहा है, किन्तु वह अपनी वास्तविक स्थिति के प्रति सचेत रहता है, जोकि आध्यात्मिक व्यस्तता है। भौतिक चेतना में इंद्रियां इंद्रिय तृप्ति में लगी रहती हैं किन्तु कृष्णभावनामृत में वे कृष्ण की इन्द्रियों की तुष्टि में लगी रहती हैं। अत: कृष्णभावनाभावित व्यक्ति सदा मुक्त रहता है, भले ही वह ऊपर से भौतिक कार्यों में लगा हुआ दिखाई पड़े।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita

कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कभी भी इंद्रियों के कार्यों से प्रभावित नहीं होता। वह भगवत्सेवा के अतिरिक्त कोई दूसरा कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि उसे ज्ञात है कि वह भगवान का शाश्वस दास है।

PunjabKesari Srimad Bhagavad Gita


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News