Srimad Bhagavad Gita: जरूरी है ‘इंद्रियों’ पर नियंत्रण
punjabkesari.in Wednesday, Dec 14, 2022 - 09:16 AM (IST)
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Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण कहते हैं कि जैसे कछुआ अपने अंगों को खोल के भीतर समेट लेता है, वैसे ही जब पुरुष इन्द्रियों को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है। श्री कृष्ण इंद्रियों पर जोर देते हैं क्योंकि वही हमारी अन्तरात्मा और बाहरी दुनिया के बीच प्रवेशद्वार हैं। वह सलाह देते हैं कि जब हम खुद को विषयों से जुड़ते देखते हैं तो हमें अपनी इंद्रियों को उसी तरह खींच लेना चाहिए जैसे खतरे का अहसास होते ही कछुआ करता है।
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हर इंद्रिय के दो भाग होते हैं। एक अंग जैसे कि नेत्र और दूसरा, मस्तिष्क का उसे नियंत्रित करने वाला भाग। इंद्रियों के माध्यम से बातचीत दो स्तरों पर होती है। एक इन्द्रिय वस्तुओं की लगातार बदलती बाहरी दुनिया और इंद्रिय अंग (नेत्र) के बीच है जो पूरी तरह स्वचालित है जहां हम चीजों को देखते हैं और अपने भौतिक गुणों के अनुसार प्रभाव डालते हैं। दूसरा नेत्र और उसके नियंत्रक के बीच है।
देखने की इच्छा ही नेत्र के विकास का कारण है और वह इच्छा अभी भी इन्द्रिय के नियंत्रक भाग यानी दिमाग में विद्यमान है। इसे प्रेरित करने वाली धारणा के रूप में जाना जाता है। जिसके अंतर्गत हम वही देखते-सुनते हैं जो हम देखना-सुनना चाहते हैं। जैसे क्रिकेट के खेल में हमें लगता है कि विपक्ष के पक्ष में अधिक निर्णय लिए जा रहे हैं और इससे यह निष्कर्ष निकालते हैं कि अम्पायर भेदभाव कर रहा है।
जब श्री कृष्ण इन्द्रियों का उल्लेख करते हैं, तो वह नियंत्रक भाग के बारे में बात कर रहे हैं, जो इन्द्रियों में इच्छा उत्पन्न करता है। इसलिए जब हम अपनी इंद्रियों को शारीरिक रूप से बंद कर देते हैं, तब भी मन अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग हमारी इच्छाओं को जीवित रखने के लिए करता है क्योंकि मन ही इन सभी पर नियंत्रण रखता है।
इस श्लोक के माध्यम से श्री कृष्ण इंद्रियों के भौतिक भाग से नियंत्रक को अलग करने के लिए हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं ताकि हम हमेशा उत्तेजक या निराशाजनक बाहरी स्थितियों से परम स्वतंत्रता (मोक्ष) प्राप्त कर सकें। बुद्धिमानी यह जानने में है कि किसी भी स्थिति में कब खुद को नियंत्रण में रखना है।