श्रीमद्भगवद्गीता: ‘गीता का घर’

punjabkesari.in Wednesday, Dec 07, 2022 - 01:41 PM (IST)

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श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद

साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता 

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक- 
एषा ब्राह्मी स्थिति: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वास्यामंतकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : यह आध्यात्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का पथ है जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नहीं होता। यदि कोई जीवन के अंतिम समय में भी इस तरह स्थित हो तो वह भगवद्धाम में प्रवेश कर सकता है। मनुष्य कृष्णभावनामृत या दिव्य जीवन को एक क्षण में तुरंत प्राप्त कर सकता है और हो सकता है कि उसे लाखों जन्मों के बाद भी यह प्राप्त न हो। यह तो सत्य को समझने और स्वीकार करने की बात है।

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निर्वाण का अर्थ है भौतिकतावादी जीवन शैली का अंत। बौद्ध दर्शन के अनुसार इस भौतिक जीवन के पूरा होने पर केवल शून्य शेष रहता है किन्तु भगवद् गीता की शिक्षा इससे भिन्न है। वास्तविक जीवन का शुभारंभ इस भौतिक जीवन के पूरा होने पर होता है। स्थूल भौतिकतावादी के लिए यह जानना पर्याप्त होगा कि इस भौतिक जीवन का अंत निश्चित है, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्तियों के लिए इस जीवन के बाद अन्य जीवन प्रारंभ होता है। इस जीवन का अंत होने के पूर्व यदि कोई कृष्णभावना भावित हो जाए तो उसे तुरंत ब्रह्म निर्वाण अवस्था प्राप्त हो जाती है।

श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने भगवद् गीता के इस द्वितीय अध्याय को संपूर्ण ग्रंथ में प्रतिपाद्य विषय के रूप में संक्षिप्त किया है। इस द्वितीय अध्याय में कर्मयोग तथा ज्ञानयोग की स्पष्ट व्याख्या हुई है एवं भक्तियोग की भी झांकी दे दी गई है। इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय ‘गीता का घर’ का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ।

 


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Content Writer

Jyoti

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