भक्त की इच्छा के लिए भगवान वहीं रुक गए लेकिन प्रतिमाएं चली गई

punjabkesari.in Friday, Dec 16, 2016 - 09:43 AM (IST)

एक बार भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी अपने भाई श्रीनित्यानन्द प्रभु जी के साथ श्रील गौरी दास पण्डित जी के घर, अम्बिका-कालना (बंगाल) में उनसे मिलने गए। श्रील गौरी दास पण्डित जी ने आपकी बहुत सेवा की। जब भगवान वहां से चलने लगे तो श्रील गौरी दास पण्डित जी ने आपसे कुछ दिन वहीं रुकने के लिए प्रार्थना की। 
भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने घर के पास के नीम के वृक्ष की लकड़ी से 2 सुन्दर मूर्तियां (श्रीविग्रह) बनाई। एक मूर्ति श्रीचैतन्य महाप्रभु जी की व एक श्रीनित्यानन्द प्रभुजी की। 

 

तब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने श्रील गौरीदास पण्डित जी से कहा कि आप इन विग्रहों की सेवा करना, इनमें और हममें कोई अन्तर नहीं है। श्रील गौरी दास पण्डित जी तब चार थालियों में भोजन परोसा और सभी के आगे रखा। 

 

भगवान की अचिन्तय शक्ति के प्रभाव से श्रीचैतन्य महाप्रभुजी, श्रीनित्यानन्द प्रभुजी, व दोनों मूर्तियों ने साक्षात भाव से भक्त के आगे भोजन किया। भोजन के बाद जब दोनों भाई चलने लगे तो श्रील गौरीदास पण्डित जी ने कहा की आप मत जाइए अभी कुछ देर और रुकिए। 

 

जैसे ही उन्होंने दोनों भाईयों (श्रीचैतन्य महाप्रभुजी व श्री नित्यानन्द प्रभुजी) को रोका तो उनके श्रीविग्रह चलने लगे। श्रील गौरीदास पण्डित जी यह देख कर हैरान रह गए। तब श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने उनसे कहा या तो हम दोनों यहां रहेंगे या फिर ये दोनों (मूर्तियां) यहां रहेंगी। फैसला अपको करना है। 

 

श्रील गौरी दास पण्डित जी ने जब यह कहा कि आप रुकिए तो वो दोनों मूर्तियां दरवाजे की ओर चलने लगीं। गौरीदास जी ने फटाफट जाकर उन्हें रोका तो श्रीचैतन्य महाप्रभु व श्री नित्यानन्द प्रभु जी दरवाजे की ओर चल दिए। गौरी दास जी ने जब इन्हें रोका तो दोनों मूर्तियां चलने लगी। जब ये ही चलता रहा तो श्रीमहाप्रभु जी ने पुनः उनसे कहा, "एक को चुनें। हम सक्षात् भाव से तथा मूर्ति (श्रीविग्रह) के रूप में हैं। इन दोनों जोड़ों (युगल) में से जिस जोड़े को आप ठहरने के लिए कहेंगे, वही रुकेगा, दूसरा चला जाएगा।" 

 

इस पर श्रील गौरीदास पण्डित जी ने विग्रह युगल (मूर्ति का जोड़ा) को जाने के लिए कहा और भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी तथा श्रीनित्यानन्द प्रभुजी को रहने के लिए कहा। श्रील गौरीदास पण्डित जी की इच्छा को पूरा करने के लिए वो मूर्तियां (विग्रह-युगल) चली गई और श्री महाप्रभु-श्रीनित्यानन्द जी उनके मन्दिर में चले गए। 
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

 


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