Janmashtami: श्रीकृष्ण के जेल में जन्म लेने से लेकर गीता उपदेशक तक की कथा

punjabkesari.in Monday, Aug 10, 2020 - 11:08 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Sri Krishna Janmashtami 2020: भगवान श्री कृष्ण गीता जी में कहते हैं : 
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत:। त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।

अर्थात- मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं, इस प्रकार जो मनुष्य तत्व से जान लेता है, वह शरीर को त्याग कर पुन: जन्म आदि को प्राप्त नहीं करता किन्तु मुझे ही प्राप्त होता है।

PunjabKesari Sri Krishna Janmashtami

भगवान के इस रहस्योद्घाटन के अनुसार मनुष्य को भगवान के दिव्य जन्म और कर्म को जानने के लिए श्रीमद भागवत, रामायण तथा पुराणादि अन्य ग्रंथों के अध्ययन का आश्रय लेना चाहिए। जब मथुरा के क्रूर नरेश कंस ने एक-एक करके देवकी के छ: पुत्र मार डाले तब देवकी के सातवें गर्भ में भगवान के अंश स्वरूप श्रीशेष जी भी पधारे। तब भगवान की आज्ञा से योगमाया ने उन्हें देवकी के उदर से निकाल कर नंदबाबा के गोकुल में वसुदेव जी की पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया।

तब श्री भगवान ने योगमाया को नंदबाबा की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेने का आदेश दिया तथा स्वयं समस्त ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति बल, वीर्य और तेज से युक्त होकर भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र में भगवान विष्णु देवरुपिणी देवकी के गर्भ से प्रकट हुए जिन्हें उसी रात्रि वसुदेव जी बाल रूप में गोकुल में नंदबाबा के घर छोड़ आए। अगले दिन भगवान का जन्म-महोत्सव मनाया गया।

PunjabKesari Sri Krishna Janmashtami

सर्वशक्तिमान, संसाररूपी वृक्ष की उत्पत्ति के एकमात्र आधार, चराचर जगत के कल्याण के लिए निराकार स्वरूप होते हुए भक्ति तथा प्रेमवश साकार रूप धारण करने वाले श्री हरि भगवान ने भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप में बहुत सुंदर एवं मधुर लीलाएं कीं, इन लीलाओं का इतना प्रभाव है कि इनके श्रवण, पठन से अंत:करण शीघ्र अतिशीघ्र शुद्ध हो जाता है। भगवान ने अपनी बाललीला में कंस द्वारा भेजे गए राक्षसों पूतना, तृणावर्त, बकासुर, अघासुर का नाश कर उनको मुक्ति प्रदान की तथा कंस का वध कर मथुरा नगरी को भयमुक्त किया।

अघासुर जैसे राक्षसों को मोक्ष प्राप्त हुआ देख ब्रह्मा जी को अत्यंत आश्चर्य हुआ। जब उन्होंने बाल कृष्ण भगवान की परीक्षा लेने के लिए  ग्वाल बाल और बछड़ों को चुरा लिया तब सब ग्वाल बालों और बछड़ों का स्वरूप धारण कर भगवान श्री कृष्ण जी ने ब्रह्मा जी के विश्वकर्ता होने के अभिमान को नष्ट किया। तब ब्रह्मा जी ने भगवान श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए कहा कि आपकी महिमा का ज्ञान तो बड़ा कठिन है। आप अनंत आदि पुरुष परमात्मा हैं और मेरे जैसे बड़े-बड़े मायावी भी आपकी माया के चक्र में हैं, मैं अजन्मा जगतकर्ता हूं, इस मायाकृत मोह के घने अंधकार से मैं भ्रमित था। मेरा अपराध क्षमा कीजिए। 

PunjabKesari Sri Krishna Janmashtami

महाविषधर कालिय नाग ने जब यमुना जी का जल विषैला कर दिया तब आनंदकंद भगवान ने कालिय दमन कर यमुना जी का जल पावन किया। गोविंद भगवान ने इंद्र की पूजा बंद करवा कर गोवर्धन पर्वत की पूजा प्रारंभ करवाई तो क्रोध एवं अहंकारवश इंद्र ने ब्रज पर मूसलाधार वर्षा करवाई। तब माधव गोविंद ने खेल-खेल में गिरिराज गोवर्धन को अपनी ऊंगली पर धारण कर ब्रजवासियों की प्रलंयकारी वर्षा से रक्षा की। भगवान श्री कृष्ण की योगमाया के प्रभाव से चकित इंद्र ने भगवान से क्षमा मांगी।

एक समय रात्रि के समय यमुना जी में स्नान करने पर नंद जी को वरुण के सेवक पकड़ कर ले गए। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें वरुण लोक से वापस ले आए, इसी प्रकार अपने गुरु सांदीपनी जी के आश्रम में शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात दक्षिणास्वरूप उनके मृत पुत्र को यमलोक से वापस लाकर अपने गुरु को गुरु दक्षिणा दी।

PunjabKesari Sri Krishna Janmashtami

पांडवों ने जब राजसूय यज्ञ का आयोजन किया तब भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से पांडवों के माध्यम से जरासंध की कैद से 20,800 राजाओं को मुक्त करवाया। भगवान श्री कृष्ण के दर्शन से राजाओं को इतना आनंद आया कि उन्होंने हाथ जोड़ कर बड़ी ही विनम्र वाणी से भगवान श्री कृष्ण की स्तुति की :
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतक्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।।

अर्थात- शरणागतों के सारे दुख और भय हर लेने वाले सच्चिदानंद स्वरूप परब्रह्म हे भगवान श्री कृष्ण! हे वासुदेव! हे श्री हरि! हे गोविंद! हम आपको नमस्कार करते हैं। हम आपकी शरण में हैं, हमारी रक्षा कीजिए। 

राजसूय यज्ञ में जब अग्र पूजा का प्रश्र आया तब सुदर्शन चक्रधारी भगवान श्री कृष्ण जी की अग्र पूजा पर सबने ध्वनिमत से अनुमोदन किया। शिशुपाल ने इसका विरोध किया और उसने सौ बार भगवान को अभद्र वचन कहे। भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल की माता को उसके सौ अपराध क्षमा करने का वचन दिया था, जैसे ही इस संख्या का अतिक्रमण हुआ, भगवान ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट कर उसे मुक्ति प्रदान की।

उसी समय सुदर्शन चक्र ने भगवान की उंगली पर घाव कर दिया, तब परम सती द्रौपदी ने अपने वस्त्र का कुछ भाग चीर कर भगवान की उंगली पर लपेट दिया। जब हस्तिनापुर के राज दरबार में पांडवों द्वारा द्यूत क्रीड़ा में सब कुछ हार जाने के फलस्वरूप द्रौपदी का दुर्योधन तथा दुशासन ने चीर हरण किया, तब भगवान श्री कृष्ण ने इसी चीर का ऋण उतारने के लिए वस्त्रावतार धारण कर द्रौपदी की लाज की रक्षा की। पांडवों के वनवास काल में भी भगवान उन्हें धर्म का मार्गदर्शन करते रहे।

सत्ता छिन जाने का भय मनुष्य के विवेक को हर लेता है। भ्रमित और दुर्बुद्धि दुर्योधन ने पांडवों के लिए युद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं छोड़ा। कुरुक्षेत्र के युद्ध के प्रारंभ होने से पूर्व ही अर्जुन युद्ध भूमि में मैदान के दोनों ओर युद्ध की इच्छा से आए अपने सगे-संबंधियों को देख मोहग्रस्त हो गए और युद्ध की इच्छा का विचार त्याग कर शस्त्र छोड़ कर बैठ गए। तब सर्व लोक महेश्वर भगवान श्री कृष्ण जी ने भगवद गीता के रूप में कर्तव्य रूपी ज्ञानमय प्रकाश पथ का मार्ग प्रशस्त किया तथा सम्पूर्ण वेदों और उपनिषदों के सारगर्भित ज्ञान के रूप में अर्जुन को दिव्य श्रीमद् भागवद् रूपी ज्ञानामृत का पान कराया। भगवद् गीता पंचम वेद महाभारत से प्राप्त हुआ अमृत है। 

भगवान श्री कृष्ण ने धर्म को मनुष्य जाति के लिए ऐसी व्यवस्था बताया है, जिससे सभी जन सत्य, दया, करूणा, अहिंसा, अस्तेय आदि मानवीय समाज की अभिवृद्धि एवं उन्नति के लिए आवश्यक धर्म के इन लक्षणों को धारण कर कर्तव्य मार्ग की ओर अग्रसर होते हैं। इसके विपरीत जो मनुष्य कल्याणकारी धर्म रूपी व्यवस्था में अशांति फैलाने में ही प्रयत्नशील रहते हैं ऐसे पापाचारी, दुष्ट प्रवृत्ति वाले अधर्मियों को दंडित करने तथा भक्तों के प्रेम वश श्री हरि बारंबार इस धरा पर अवतरित होते हैं। ऐसा वचन उन्होंने श्री गीता जी में अपने भक्तों को धर्म की स्थापना करने के लिए दिया है।

PunjabKesari Sri Krishna Janmashtami

 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News