बैर सरना से, निशाना श्री गुरु ग्रंथ साहिब और 'सुनहरी पालकी'!
punjabkesari.in Thursday, Nov 07, 2019 - 11:18 AM (IST)
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रुकावटों और विवादों के चलते शिरोमणि अकाली दल दिल्ली द्वारा आयोजित नगर कीर्तन गुरुद्वारा नानक प्याऊ दिल्ली से चल कर श्री गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान, ननकाना साहिब (पाकिस्तान) पहुंच ही गया। हालांकि विरोधियों की ओर से इस नगर कीर्तन का प्रारम्भता से लेकर, इसके अंतिम पड़ाव ननकाना साहिब पहुंचने तक इसका विरोध करते हुए लगातार इसके रास्ते में रुकावटें खड़ी की जाती रहीं। इसमें कोई शक नहीं कि शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना के साथ बैर के चलते उनके विरोधी श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सवारी ले जा रही बस और परमजीत सिंह सरना को नगर कीर्तन के साथ ननकाना साहिब तक जाने से रोकने में सफल हो, बगलें बजा सकते हैं और बधाइयां दे, एक-दूसरे का मुंह मीठा कर और करवा सकते हैं परन्तु उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सवारी ले जा रही बस को सीमा पार करने से रुकवा, श्री गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरूप को उससे उतरवा, सीमा पार ले जाने के हालात बनाने का जो भारी गुनाह कर, उसका कलंक अपने माथे पर लगवाया है, वह शायद कई जन्मों के बाद भी उनके माथे से न मिट सके।
इधर कई धार्मिक विश्वास के धारणी सिखों का मानना है कि प्रकृति उन्हें इस गुनाह के लिए कभी भी बख्शेगी नहीं। वह अगले जन्मों से पहले, इसी जन्म में ही उन्हें इस गुनाह की सजा भुगतने पर मजबूर कर देगी। उनका यह भी मानना है कि उनका यह गुनाह, उस गुनाह से किसी भी तरह कम नहीं, जो अकाली-भाजपा गठजोड़ के सत्ता काल दौरान श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी होने की घटनाओं और उनके लिए दोषियों को, वोट-राजनीति के चलते सजाएं न दिए जाने तथा इन घटनाओं के विरुद्ध रोष प्रकट करते नाम-सिमरन कर शांतिपूर्ण सिखों पर गोली चलवा कर किया गया। उसी गुनाह ने शिरोमणि अकाली दल (बादल) को अर्श से फर्श पर ला पटका है।
मनजीत सिंह जी.के.
दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. के अनुसार, दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के वर्तमान सत्ताधारियों ने, शिरोमणि अकाली दल दिल्ली द्वारा संगतों के सहयोग से आयोजित नगर कीर्तन को रुकवाने और उसके रास्ते में रुकावटें खड़ी करने के लिए अपनी समूची शक्ति झोंक रखी थी। इस उद्देश्य के लिए ही उन्होंने टकराव का वातावरण बनाने के उद्देश्य से गुरुद्वारा कमेटी के मुखियों की ओर से पहले 5 नवम्बर, फिर 28 अक्तूबर और 13 अक्तूबर को नगर कीर्तन का आयोजन किए जाने और सोने की पालकी ले जाने की घोषणा की गई। इतना ही नहीं, उन्होंने इन दोनों उद्देश्यों के लिए सोना और पैसा इकट्ठा करने हेतु अपने प्रबंधाधीन ऐतिहासिक गुरुद्वारों में रोजाना सुबह-शाम अपीलें करवा, सिखों की धाॢमक भावनाओं सहित उनका आर्थिक शोषण किया।
जब उन्होंने देखा कि समूची शक्ति झोंक दिए जाने के बावजूद वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पा रहे तो उन्होंने अकाल तख्त के जत्थेदार साहिब का सहारा लेकर अपनी जान बचाई। इस असफलता के बाद भी उन्होंने बादल अकाली दल के नेतृत्व के सहयोग से नगर कीर्तन को रुकवाने की कोशिशों को जारी रखा। अंतत: वे बादल दल के नेतृत्व के सहयोग से स. सरना और श्री गुरु ग्रंथ साहिब की सवारी वाली बस को तो रुकवाने में सफल हो गए परन्तु वे न तो नगर कीर्तन को और न ही सोने की पालकी को ननकाना साहिब जाने से रुकवाने में सफल हो सके।
सरना ने लड़ाई जीती
बताया गया है कि परमजीत सिंह सरना ने अपने आपको पाकिस्तान जाने से रोके जाने की कार्रवाई को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जहां समाचारों के अनुसार दिल्ली पुलिस उन्हें पाकिस्तान जाने से रोके जाने के संबंध में कोई संतुष्टतापूर्ण दलील नहीं दे सकी, अत: अदालत ने उन्हें पाकिस्तान जा कर गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व से संबंधित होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होने की आज्ञा दे दी।
स. शंटी का संघर्ष
नवम्बर 84 में सिख नरसंहार के शिकार सिख, 'शहीद' क्यों नहीं? दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व महासचिव गुरमीत ङ्क्षसह शंटी ने बताया कि वह बीते लगभग 6 वर्षों से पत्र लिख कर और साथियों को साथ ले अकाल तख्त के जत्थेदार से मिलकर उनके सामने यह सवाल उठाते चले आ रहे हैं। उनका मानना है कि जिस समय यह कांड हुआ, उस समय कुछ कमजोर आस्था वाले सिखों ने, अपनी जानें बचाने के लिए, सिखी स्वरूप को तिलांजलि दे दी थी, जबकि इन्होंने अपनी जान दे दी, परन्तु अपने सिखी-सिदक पर आंच तक नहीं आने दी।
स. शंटी का मानना है कि नवम्बर 84 के दुखदायी कांड के नाम पर बीते 35 वर्षों में लगातार राजनीति तो होती चली आ रही है परन्तु इस समय के दौरान किसी ने भी यह नहीं सोचा कि सिखी-सिदक को कायम रख, अपनी जानें कुर्बान करने वाले सिखों का सम्मान कैसे किया जाए, जिससे उनके पारिवारिक सदस्य, उनके वारिस होने के गौरव के साथ, सिर ऊंचा कर जीने का सामथ्र्य हासिल कर सकें। उन्होंने बताया कि इस मांग को लेकर जब वह स्वयं, कुछ सिख मुखियों के साथ, अकाल तख्त के जत्थेदार से मिले थे, तो उन्होंने उस मुलाकात के दौरान आश्वासन दिया था कि वह शीघ्र ही इस संबंध में आशानुकूल निर्णय लेंगे परन्तु इतना लम्बा समय बीत जाने पर भी इस संबंध में कुछ नहीं हुआ।
यदि यह सच है
कुछ समय से वायरल हो रही एक पोस्ट, राजधानी के सिखों में गंभीर चर्चा का विषय बनी चली आ रही है। बताया गया है कि इस पोस्ट के अनुसार शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल किसी ऐसे प्रभावशाली सिख मुखी की तलाश में हैं, जो दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. के साथ उनके बिगड़े संबंधों को सुधारने में सहयोग कर सके। कहा जाता है कि इस पोस्ट पर चर्चा कर रहे सिखों का मानना है कि यदि यह सच है तो ऐसा लगता है कि जैसे सुखबीर सिंह बादल यह महसूस करने को विवश हो गए हैं कि लगभग एक-डेढ़ वर्ष बाद होने वाले दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव में गुरुद्वारा कमेटी की सत्ता पर दल की वापसी जी.के. के सहयोग बिना संभव नहीं होगी।
श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के संबंध में दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी की ओर से कई प्रभावशाली कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है जिसे देखते हुए गुरुद्वारा कमेटी के प्रबंधाधीन चल रही शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारी क्या यह आशा कर सकते हैं कि कमेटी के मुखी उन्हें उनके वेतन के अब तक के बकाए अदा कर, उन्हें भी इस पावन पर्व की खुशियों में भागीदार बनने का अवसर देंगे या फिर उन्हें यह पावन पर्व भी काली दीवाली की तरह मनाने को मजबूर होना पड़ेगा?
...और अंत में
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है, जैसे बादल, पिता-पुत्र श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के समारोहों का श्रेय ले, अपने सत्ता काल दौरान श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी होने और बरगाड़ी कांड के चलते उनके माथे पर जो काले दाग लगे हैं, उनको धोने की असफल कोशिश कर रहे हैं।