आचार्य धर्मेंद्र के जीवन से जुड़ी खास बातें, जो कर देंगी आपकी भी आंखें नम
punjabkesari.in Tuesday, Sep 20, 2022 - 10:19 AM (IST)
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आचार्य धर्मेंद्र का पूरा जीवन हिंदी, हिंदुत्व और हिन्दुस्तान के उत्कर्ष के लिए समर्पित रहा। अपने पिता महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज के समान उन्होंने भी अपना सम्पूर्ण जीवन भारत माता और उसकी संतानों की सेवा में, अनशनों, सत्याग्रहों, जेल यात्राओं, आंदोलनों एवं प्रवासों में संघर्षरत रहकर बिताया और रामजन्मभूमि आंदोलन को अपने जीते जी मुकाम तक पहुंचाया। 8 वर्ष की आयु से अंत समय तक आचार्य श्री के जीवन का प्रत्येक क्षण राष्ट्र और मानवता के अभ्युत्थान के लिए सतत् तपस्या में व्यतीत हुआ। उनकी वाणी अमोघ, लेखनी अत्यंत प्रखर और कर्म अद्भुत हैं। आचार्य धर्मेन्द्र अपनी पैनी भाषण कला और हाजिर जवाबी के लिए जाने जाते थे। वह एक ओजस्वी एवं पटु वक्ता थे।
कई बार बयानों से चर्चा में आए
श्रीपंचखंड पीठाधीश्वर आचार्य धर्मेंद्र वह शख्सियत थे जो कई बार अपने बयानों से चर्चा में आए। उनका नाम प्रखर हिंदूवादी नेता और तेज-तर्रार बयानवीर के रूप में लिया जाता था। यही कारण है कि उनके निधन पर देशभर में हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों ने दुख जताया है। आचार्य श्रीराम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रहे थे। साल 1965 में उन्होंने गौ हत्या के विरुद्ध भी मुहिम चलाकर बड़ा आंदोलन खड़ा किया था। राममंदिर मुद्दे पर वह बड़ी ही बेबाकी से बोलते थे। बाबरी विध्वंस मामले में फैसला आने से पहले उन्होंने कहा था कि मैं आरोपी नंबर वन हूं। सजा से डरना क्या, जो किया सबके सामने किया।
गांधीजी पर की थी विवादित टिप्पणी
करीब 7 साल पहले छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक सत्संग कार्यक्रम में आचार्य ने महात्मा गांधी पर विवादित टिप्पणी करके नई चर्चाओं को जन्म दे दिया था। महात्मा गांधी को लेकर उन्होंने कहा था कि कोई डेढ़ पसली वाला, बकरी का दूध पीने और सूत काटने वाला व्यक्ति भारत का राष्ट्रपिता नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हम भारत को मां मानते हैं, ऐसे में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहना सही नहीं है। महात्मा गांधी भारत मां के बेटे हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्रपिता का दर्जा देना ठीक नहीं है। इस बयान को लेकर काफी हल्ला मचा था। कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों ने इस बयान पर भाजपा से सफाई मांगी थी।
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उनका संबोधन बड़ा ओजस्वी होता था
आंदोलन में उनके सहयोगी रहे विश्व हिंदू परिषद के पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान में शीर्ष प्रचारक डॉ. जुगल किशोर के अनुसार आचार्य ने राममंदिर आंदोलन का काफी जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया था। इसके लिए उन्होंने देशभर में सभाएं भी की थीं। हरेक सभा में उनके भाषण को सुनने हजारों लोग पहुंचते थे। उनका संबोधन बड़ा ओजस्वी होता था। उनका पूरा जीवन जेल, अनशन और सत्याग्रहों से परिपूर्ण रहा। राममंदिर आंदोलन के साथ-साथ वह एक श्रेष्ठ कथा वाचक भी थे।
नोट पर हर बार गांधी ही क्यों छपते हैं?
आचार्य धर्मेंद्र ने एक बार कहा था कि जब भी भारत में नए नोट छपते हैं तो उस पर महात्मा गांधी की ही तस्वीर होती है। इस बार भी जब नए नोट छपे तो उन्हीं की तस्वीर छपी। नोट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की फोटो क्यों नहीं लग सकती ? ए.पी.जे. अब्दुल कलाम क्यों नहीं छप सकते। हमारे पास ऐसी हस्तियों की लंबी सूची है जिनका देश के निर्माण में अहम योगदान रहा है। भारत को इंडोनेशिया से सीखना चाहिए जो मुस्लिम देश होते हुए भी अपने यहां की करंसी पर राम, कृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश आदि देवताओं की फोटो छापता है।
गौरक्षा के लिए 52 दिन अनशन किया
1966 में देश के सभी गौभक्तों, साधु-संतों और संस्थाओं ने मिलकर विराट सत्याग्रह आन्दोलन छेड़ा। महात्मा रामचन्द्र वीर ने 1966 तक अनशन करके स्वयं को नरकंकाल जैसा बनाकर अनशनों के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। जगद्गुरु शंकराचार्य श्री निरंजनदेव तीर्थ ने 72 दिन, संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने 65 दिन, आचार्य श्री धर्मेन्द्र ने 52 दिन और जैन मुनि सुशील कुमार ने 4 दिन अनशन किया। आन्दोलन से पहले महिला सत्याग्रह का नेतृत्व श्रीमती प्रतिभा धर्मेन्द्र ने किया और वह 3 बच्चों के साथ जेल गई थीं।