ग्रहों की स्थिति से जानें नौकरी या व्यापार के प्रति बड़ी जिज्ञासा का हल

punjabkesari.in Tuesday, Jan 16, 2018 - 09:54 AM (IST)

आज के प्रतिस्पर्धा भरे युग में हर मनुष्य को अपनी आजीविका के साधन चाहे वह नौकरी हो या व्यापार के प्रति बड़ी जिज्ञासा रहती है। ज्योतिष शास्त्र से मनुष्य की आजीविका संबंधी मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है। जन्म कुंडली में आजीविका संबंधी भाव विचार-


दशम भाव : इसे कर्म के अतिरिक्त नभ, आज्ञा, व्यापार, केन्द्र भाव भी कहा जाता है। इस भाव का कारक ग्रह बुध है। इस भाव के द्वारा जातक के अधिकार, ऐश्वर्य भोग, यश प्राप्ति, नेतृत्व, प्रभुता, मान-प्रतिष्ठा, राज्य नौकरी, व्यवसाय तथा पिता के संबंध में विचार किया जाता है।


एकादश भाव : इसे लाभ के अतिरिक्त आय, उत्तम उपाय तथा पणफर भाव भी कहा जाता है। इस भाव का कारक गुरु है। इस भाव के द्वारा जातक की सम्पत्ति, ऐश्वर्य मांगलिक कार्य, वाहन, रत्न आदि का विचार किया जाता है।


द्वितीय भाव : इसे धन के अतिरिक्त अर्थ, कुटुम्ब, द्रव्य कोष, वित्त भाव भी कहा जाता है। इस भाव का कारक गुरु है। इस भाव के द्वारा जातक के स्वर, सुखोपभोग और संचित पूंजी के संबंध में विचार किया जाता है।


आजीविका के निर्धारण में दशम भाव के अलावा द्वितीय भाव, लाभ भाव एवं षष्ठ भाव का भी विचार किया जाता है। व्यवसाय या व्यावसायिक उपलब्धि एवं समाज में प्रतिष्ठा के लिए दशम भाव, इसके लिए जातक द्वारा किया गया परिश्रम या नौकरी (षष्ठ भाव) तथा इस कार्य से एवं स्वयं के परिश्रम से अर्जित होने वाला धन (द्वितीय भाव) इन तीनों के समन्वय से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का या मान-सम्मान का पता लगाया जा सकता है। प्रस्तुत कुंडली में जातक का जन्म मिथुन लग्न में हुआ है जोकि एक वायु तत्व वाली राशि है। इसका स्वामी बुध है। स्वराशि का होकर लग्न में स्थित है और सूर्य के साथ है। सूर्य तृतीय स्थान का स्वामी है, जो व्यक्ति को वाकचातुर्य के अलावा तेजस्वी, साहसी तथा परिश्रम के द्वारा ऊंचा उठाता है।


धन भाव का स्वामी चंद्र चतुर्थ भाव में स्थित है तथा सप्तम दृष्टि-भाव को देखता है। चंद्र जातक को अधिकार, यश नेतृत्व एवं मान-सम्मान दे रहा है। आई.ए.एस. व्यवसाय के लिए 2, 6, 10, 11 भाव के अतिरिक्त सप्तम भाव का भी विचार किया जाता है जोकि प्रतिस्पर्धा चुनौती एवं प्रशासन का स्थान है।


लग्न का स्वामी बुध, राहू के नक्षत्र में स्थित है, राहू लाभ भाव में विराजमान है। बुध सप्तम स्थान को देखते हैं तथा सप्तम स्थान के स्वामी गुरु स्वराशि के होकर सप्तम स्थान में ही स्थित है। गुरु केतु के नक्षत्र में विराजमान है जो पंचम भाव में स्थित है। पंचम भाव पब्लिक फिगर का है। दशम भाव का स्वामी शनि-धन-भाव में स्थित है। द्वितीय स्थान और लाभ भाव पर शनि की दृष्टि होने के कारण व्यवसाय से उन्नति एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न बना रहा है।


सूर्य जोकि तृतीय स्थान का स्वामी है तथा लग्न में बुध के साथ बैठकर सप्तम स्थान को देख रहा है। उच्च शासकीय सेवा का योग बना रहा है। गुरु जो मुख्य रूप से 7, 2, 6, 10 भावों से जुड़ा हुआ है और दशानाथ भी था, ने जातक को आई.ए.एस. में शामिल कराया।


फलित ज्योतिष द्वारा मानव जीवन पर पडऩे वाले विभिन्न ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव का विचार किया जाता है। मनुष्य जिस समय जन्म लेता है। उस समय आकाश मंडल में विभिन्न ग्रहों की स्थिति होती है। उसका प्रभाव उसके सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है। फलित ज्योतिष का सबसे बड़ा लाभ यही है कि जिस प्रकार दीपक अंधेरे में रखी हुई वस्तुओं को प्रदर्शित करता है, उसी प्रकार जन्मकुंडली द्वारा जीवन में घटने वाली घटनाओं के ज्ञान का उद्घाटन होता है।


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