Smile please: कम बोलो, प्यार से बोलो और सोच-समझ कर बोलो
punjabkesari.in Thursday, May 30, 2024 - 09:59 AM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Smile please: कहते हैं कि किसी व्यक्ति का चरित्र उसकी वाणी से जाना जाता है, इसलिए हमें अपने विचारों, शब्दों और कर्मों पर बड़ा ध्यान देना चाहिए। जिंदगी में कई बार ऐसा होता है कि हम किसी ऐसी असामान्य स्थिति में फंस जाते हैं, जहां सामने वाला व्यक्ति हम पर क्रोधित होकर हमसे हिंसात्मक व्यवहार करता है और हम भी ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए बड़े आक्रामक हो जाते हैं। परंतु यदि अनुभवियों की राय मानी जाए एवं विवेकशील होकर सोचा जाए तो ऐसे वक्त पर, जहां दोनों तरफ से दिमाग की गर्मी अपने चरम पर होती है, किसी एक को घटनास्थल से दूर हटकर कोई भी प्रतिक्रिया दिए बिना शांत होकर चले जाना चाहिए।
याद रखें, जब कोई क्रोधाग्नि में जलकर हमें उसकी लपटों में लेना चाहता है, ऐसे समय पर उससे दूर होकर खुद को बचाने में ही समझदारी है। खुद को शांत रखने के लिए हमें सदैव यह एक बात स्मृति में रखनी है कि जब कोई हमारे समक्ष क्रोध करता है तो वह हमारी समस्या नहीं, अपितु वह वास्तव में उसकी दुविधा है।
कई लोगों का मानना है कि पीछे हटने से या चुप बैठ जाने से हम अन्यों की नजरों में कायर बन जाएंगे, परन्तु ऐसा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि विवेक कहता है कि परिस्थिति ठंडी हो जाने के पश्चात उसका हल निकालना बहुत सरल हो जाता है। अत: अपने भीतर क्रोध को दबाकर रखना बेवजह अपने ही स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने की गलत चेष्ठा है, जिससे हम उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क स्ट्रोक और यहां तक कि दिल के दौरे जैसी खतरनाक बीमारियों का शिकार बन सकते हैं। इसलिए जब भी हम खुद को किसी हिंसात्मक टकराव भरी स्थिति में पाते हैं तब अपनी सुरक्षा की खातिर हमें चुप्पी साधकर एक तटस्थ प्रेक्षक बनकर उस स्थिति से निपटना है।
अतीत में एक संयुक्त परिवार की संरचना हुआ करती थी, जहां पितृ सत्तात्मक ढंग से और सामाजिक रूप से स्वीकृत रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं द्वारा प्रत्येक सदस्य की भूमिका को अच्छी तरह से परिभाषित किया गया था, जिसके कारण हर किसी को भावनात्मक सुरक्षा महसूस होती थी। इस सामाजिक संरचना की वजह से जब कभी कोई विवाद या संघर्ष की परिस्थिति उत्पन्न होती थी, तो उसे आमतौर पर परिवारजनों के बीच या गांव के बड़े-बुजुर्गों की राय अनुसार सुलझा लिया जाता था।
परन्तु अब संयुक्त परिवार की संरचना की जगह छोटे व परमाणु परिवार की संरचना ने ले ली है, परिणामस्वरूप हर एक के मन में अपने कर्तव्यों एवं जिम्मेदारियों के बारे में विभ्रांति पैदा हो गई है। इस बदली हुई सामाजिक स्थिति में खुद को समायोजित करने में असमर्थ मानव न खुद को सुखी कर पाता है और न ही अपने परिवार को।
तभी तो हम रोज सुनते व पढ़ते हैं कि कैसे छोटी-छोटी नोंक-झोंक आज तलाक का रूप ले लेती है और कैसे हल्का अपमान इंसान को खूनी बनने पर मजबूर कर देता है। ऐसे परिदृश्य के अंतर्गत यदि हम स्वयं को सुरक्षित, तनावमुक्त और सुखी रखना चाहते हैं, तो ‘कम बोलो, प्यार से बोलो और सोच-समझकर बोलो’ के स्वर्णिम सिद्धांत का पालन हमें हर हाल में करना होगा।
तो आइए आज से हम सभी इस शोर-शराबे वाली दुनिया के बीच रहते हुए थोड़ा चुप रहकर शांति की शक्ति का संचयन करें, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल बने।