Smile please: कर्म रेख नहीं मिटे, करो कोई लाखो चतुराई, विधि का लिखा को मेटन हारा

punjabkesari.in Tuesday, Jan 03, 2023 - 11:15 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Smile please: जिंदगी में कई बार कुछ ऐसा हो जाता है जिसका असली कारण जानना हमारी बुद्धि से परे होता है। कहीं बंदूकों से होती गोलियों की बौछार के बीच से भी एक इंसान बच निकलता है तो कभी एक कांटे का चुभना भी किसी की मृत्यु का कारण बन जाता है। कोई व्यक्ति दिन-रात मेहनत करके भी दो जून की रोटी को तरसता है तो कोई बैठे-बिठाए किसी खजाने का वारिस बन जाता है। कोई बेकसूर होते हुए भी सजा भुगतता है तो कोई हजार पाप करके भी मौज लेता है।

PunjabKesari smile please

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

ऐसी तमाम घटनाओं को देखकर कहा जा सकता है कि हमारे जीवन और भाग्य की डोर हमारे हाथ में नहीं बल्कि कहीं और ही है। जरूर भाग्य नाम की कोई चीज है जो हमारे जीवन को संचालित करती है पर क्या भाग्यवाद का सिद्धांत सच है, यह जानने से पहले यह पता लगाना चाहिए कि आखिर भाग्य का निर्माता कौन है?

यदि ईश्वर ने बनाया होता तो सभी का भाग्य इतना अलग-अलग क्यों होता?  वह निष्पक्ष, समदृष्टा पक्षपाती कैसे हो सकते हैं? शास्त्रों के अनुसार मनुष्य के कर्म ही उसके भाग्य का निर्माण करते हैं।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में कहा भी गया है : अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं, ना भुक्तं क्षीयते कर्म कल्प कोटि शतैरपि।
अर्थात मनुष्य जो कुछ अच्छा या बुरा कार्य करता है, उसका फल उसे भोगना ही पड़ता है। अनंत काल बीत जाने पर भी कर्म, फल को प्रदान किए बिना नाश को प्राप्त नहीं होता। अच्छे कर्म पुण्य और बुरे कर्म पाप कहलाते हैं। पुण्य का परिणाम सुख तथा पाप का परिणाम दुख होता है।

गोस्वामी तुलसीदास जी श्री रामचरितमानस के माध्यम से कहते हैं :
कर्म प्रधान विस्व करि राखा,जो जस करहि सो तस फलु चाखा।
काहु न कोउ सुख-दुख कर दाता, निजकृत कर्म भोग सबु भ्राता।

PunjabKesari smile please

यानी कर्म रूपी बीज से ही भाग्य रूपी वृक्ष उत्पन्न होता है। जैसे एक अस्वस्थ बीज से कभी भी स्वस्थ वृक्ष का जन्म नहीं होता, इसी प्रकार बुरे कर्मों से श्रेष्ठ भाग्य उत्पन्न नहीं हो सकता। करनी-भरनी का नियम ही मनुष्य के कर्म व भाग्य का समीकरण बनाता है। सदियों से कहा, दोहराया जा रहा है कि ‘कर्म रेख नहीं मिटे, करो कोई लाखो चतुराई’, ‘विधि का लिखा को मेटन हारा’ आदि।

जरूर कुछ ऐसा है जो विश्वास दिलाता है कि कोई रेखा ऐसी होती है जो अपना फल दिए बिना मिटती नहीं। जो लोग इस सिद्धांत को अस्वीकार करते हैं वे इस प्रश्न का उत्तर देने से बचते हैं कि अनेक बार बच्चा जन्मजात रोगी अथवा विकलांग क्यों होता है? कुत्ते कार में क्यों घूमते हैं तथा मेहनत करने के बावजूद कुछ लोग कष्ट में क्यों रहते हैं?

नि:संदेह ईश्वर की सबसे उत्तम रचना मनुष्य ऐसी किसी विवशता का गुलाम नहीं है। अगर परिस्थितियां इंसान को गढ़ती हैं तो वह भी परिस्थितियों को गढ़ने का सामर्थ्य रखता है। महान विद्वान आचार्य पाणिनि का जीवन ऐसे ही संकल्पयुक्त पुरुषार्थ का उदाहरण है। वह बचपन में एक कमजोर बुद्धि के बालक थे। पढ़ा हुआ कोई भी पाठ उन्हें याद नहीं रहता था। एक बार उनके गुरु उनके हाथ की रेखाओं को पढ़ने लगे। बालक पाणिनि ने पूछा, ‘‘गुरु जी, आप क्या ढूंढ रहे हैं?’’

गुरु ने कहा, ‘‘विद्या रेखा।’’

उत्सुकता भरे स्वर में पाणिनि ने पूछा, ‘‘मेरे हाथों में विद्या रेखा है न, गुरु जी?’’

PunjabKesari smile please

पाणिनि के सवाल से गुरु जी उदास हो गए। उन्होंने कहा, ‘‘नहीं बेटे, तुम्हारे भाग्य में विद्या नहीं है। तुम कभी नहीं पढ़ सकोगे।’’

पाणिनि यह सुनकर बहुत विचलित हुए। वह झट से एक छुरी उठा लाए और दृढ़ शब्दों में बोले, ‘‘मैं अवश्य पढ़ूंगा। अपने हाथ की रेखाओं को बदल डालूंगा। आप मुझे बताइए विद्या की रेखा कहां होती है?’’

बताए गए स्थान पर उन्होंने चाकू से एक लकीर खींच दी और इसके बाद अपने वास्तविक जीवन में भी मेहनत, लगातार अभ्यास से वह प्रकांड विद्वान बने।

यह सच है कि एक साधारण मनुष्य को पाणिनि जैसे उदाहरण अव्यवहारिक लग सकते हैं। उसका परास्त मनोबल एक ऐसे प्रभावशाली सूत्र की तलाश करता है जिसे वह अपने जीवन में लागू कर सके और जिसके आधार पर वह बड़ी आसानी से अपने बिगड़े भाग्य को संवार सके। ऐसे व्यावहारिक और प्रभावी सूत्र को मानव जाति के सामने हमारे महापुरुषों ने उजागर किया है। योगीराज श्री कृष्ण गीता में कहते हैं :
‘ज्ञानग्नि: सर्वकर्माणि भस्मासात्कुरुते’ अर्थात ‘तत्वज्ञान रूपी अग्नि सभी कर्मों को जला देती है।’

साधक के सभी कर्म संस्कार इस अग्नि में समिधा रूप में स्वाहा हो जाते हैं। अब जब कर्म बीज ही जल गए तो उनसे भाग्य का अंकुर कैसे फूटेगा ? अत: निरंतर ध्यान अभ्यास हमारे भाग्य का पुनर्निर्माण करता है जो विपरीत स्थितियों के बावजूद आगे बढ़ता है। दैदीप्यमान सूर्य की भांति प्रकाशित होता है। आइए हम उस आदेश को स्मरण करें जिसमें उसने कहा है ‘फल की कामना के बिना कर्म करते रहो।’  

PunjabKesari kundli
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News