Vedas: वेदों में दिए हैं ये संदेश, क्या करते हैं आप इन्हें Follow
punjabkesari.in Saturday, Dec 21, 2024 - 07:16 AM (IST)
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Significance of the Vedas in the study of Indian history: यह सिद्धांत सर्वविदित है कि संसार में वेद सबसे पुराने ग्रंथ हैं। ईश्वर ने मनुष्यों के उपयोग के लिए जहां नाना प्रकार की वस्तुएं रचीं, वहीं इन वस्तुओं का उचित उपयोग और व्यवहार बताने के लिए ऋषियों के हृदय में ज्ञान भी प्रेरित किया। जिस समय ऋषियों ने वेदों का संदेश और आदेश मनुष्यों को सुनाया, उस समय सब मनुष्य एक ही स्थान पर रहते थे, देश-विदेश और अनेक जातियों में बंटे नहीं थे। भाषा भी उस समय सब की एक ही थी और वह भाषा थी वेदों की।
What is the message given by Vedas मनुष्य के लिए वेदों में दिए संदेश
प्रत्येक मनुष्य सुहृदय बने। सुहृदय उसे कहते हैं जो अन्य के कष्टों को अनुभव करे, उसके हृदय में दर्द उत्पन्न हो। सामंजस्य का आशय है कि सबके मनो में तालमेल हो। सबसे अधिकारों की रक्षा हो। सबके मनों में संतोष हो सके। एक-दो व्यक्तियों के ही मन की नहीं होनी चाहिए। परस्पर द्वेष नहीं होना चाहिए। एक-दूसरे के वैभव-विकास को देख कर कुढ़े नहीं और एक-दूसरे को इस प्रकार प्रेम करें जैसा गो अपने सद्यजात वत्स का करती है।
हृदयहीन, सहानुभूति शून्य मनुष्य तो मानव रूप में भेड़िया है। यदि समाज में यह एकाकी गुण जाग्रत हो जाएं तो सारा भ्रष्टाचार, कालुष्य और कष्ट दूर हो जाएं। सुहृदयता जन्मजात भी होती है और उसका आधान शास्त्रों की शिक्षा द्वारा भी किया जा सकता है।
यदि सब द्वेष रहित हो जाएं और एक-दूसरे से जलें नहीं तो सबका ही कल्याण है। जलने वाला दूसरे को हानि पहुंचाने की धुन में अपनी हानि तो पहले ही कर डालता है। कर्मफल विश्वासी मनुष्य कभी दूसरे को देखकर नहीं जल सकता।
सब मनुष्य एक-दूसरे को प्यार करें। राजनीतिक बाजीगरों ने कहीं राष्ट्रीयता के नाम पर, कहीं मत-सम्प्रदायों के नाम पर, कहीं संस्कृति के नाम पर, कहीं भाषा के नाम पर मनुष्यों में द्वेष बुद्धि भड़का रखी है।
प्रत्येक व्यक्ति का पुरुषार्थ और बुद्धि भिन्न-भिन्न शक्ति रखते हैं। अत: सबकी कमाई में भेद होगा ही। परंतु वेद ने आदेश दिया कि ‘शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर’ यानी सौ हाथों से कमाओ और सहस्त्र में बांटो। दान देने से दानी की वृत्ति में उदारता आती है और प्राप्त करने वाले के चित्त में कृतज्ञता उपजती है। दोनों गुण मानवता के विकास के लिए परमोपयोगी हैं।
सबकी विद्या, बुद्धि, बल, धन, वैभव समान नहीं हो सकते, परंतु भोजनादि जीवन के साधन सबको मिलें। वेद निठल्ला-निकम्मा रहने को बुरा समझता है। अत: वेद का आदेश है- सौ वर्ष कार्य करते हुए ही जिओ। प्रत्येक अवस्था में कुछ न कुछ उपयोगी काम करते रहना चाहिए ? किसी का धन, किसी के परिश्रम की वस्तु मत उड़ाओ।