घर ले आएं ये वस्तु, खुलेंगे धन के द्वार

punjabkesari.in Sunday, Oct 09, 2022 - 12:18 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Shri yantra: शरीर ईश्वर द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण वस्तु या घर है। इसके विकास के लिए मुख्यत: 3 प्रकार की शक्तियों- इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति की आवश्यकता होती है। इन तीनों शक्तियों की प्राप्ति के लिए भी हमें 3 प्रकार की ऊर्जा - ध्यान, चिंतन और मनन की आवश्यकता पड़ती है। जब ये तत्व हमारे शरीर में विकसित हो जाते हैं तो हम दिव्य क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। इसके साथ ही हमें दिव्य ब्रह्मांडीय शक्ति भी प्राप्त होती है।

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What is Shree Yantra used for: श्री यंत्र मूलत: श्री एवं यंत्र इन दो शब्दों के योग से बना है। भारत में तो आदिकाल से ‘श्री’ कहकर बुलाए जाने की परम्परा रही है। श्रीयंत्र को लक्ष्मी का यंत्र माना जाता है। घरों में श्रीयंत्र का उपयोग धन सम्पदा आदि समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
‘श्री यंत्र’ शब्द की अगर हम संधि विच्छेद करें तो यह अर्थ प्राप्त होता है। ‘श्री’ का अर्थ है लक्ष्मी और यंत्र है घर- लक्ष्मी का घर अर्थात श्रीयंत्र। इस यंत्र में अष्ट दल और षोडशदल कमल अंकित होते हैं। श्रीयंत्र बिंदू, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, बहिर्दशार, चतुर्दशार, अष्टिदल, षोड्श दल, उसके बाहर तीन वृत्त और त्रिरेखात्मक भूपुर से बना होता है जिसमें 43 त्रिकोण, 28 मर्म स्थान तथा 24 संधियां (तीन रेखाओं से मिलने के स्थान को मर्म तथा दो रेखाओं से मिलने के स्थान को संधि कहा जाता है।) होती हैं। इसका केंद्रीय बिंदू ब्रह्मांडीय जीवन चक्र की प्रक्रिया में सतत होने वाली अलौकिक हस्तक्षेप का प्रतीक है।

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What does Shri Yantra do: 43 त्रिकोणों में अंक शास्त्र के आधार पर 4 एवं 3 का योग 7 है, जो एक अनूठा अंक है। इसे सम्पूर्ण विश्व में सौभाग्यशाली माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम सभी जानते हैं कि दुनिया में सात महासागर और सात महाद्वीप तो हैं ही, सप्ताह में भी सात ही दिन होते हैं और संगीत में भी सात ही स्वर होते हैं। इसी प्रकार मूल रंग सात होते हैं और हमारे शरीर में भी सात ही चक्र होते हैं। अष्टदल पंखुड़िया साधकों द्वारा प्राप्त की जाने वाली अष्ट सिद्धियों को प्रतीक हैं। इसका बाहरी वृत्त श्रीयंत्र विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं के केंद्रित होने का परिचालक है।

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Shree Yantra Benefits: स्वर्ण, रजत, ताम्र, रत्न, प्रस्तर, अष्ट धातु आदि किसी भी चीज का बना हुआ हो सकता है। ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण किया गया श्री यंत्र 12 वर्ष तक, चांदी पर बना यंत्र 22 वर्षों तक, सोने पर निर्मित श्रीयंत्र सदैव प्रभावी रहता है। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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