OMG! हनुमान जी ने शिवलिंग को अपनी पूंछ में लपेट कर उखाडऩा चाहा...
punjabkesari.in Monday, May 25, 2020 - 11:26 AM (IST)
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हरि के हाथों हुई थी हर की स्थापना
श्रीरामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी ने की थी। स्कंद पुराण में इसकी महिमा विस्तार से वर्णित है। इसके विषय में यह कथा कही जाती है- जब भगवान श्री रामचंद्र जी लंका पर चढ़ाई करने के लिए जा रहे थे तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्र की बालू से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस स्थान पर ठहर कर भगवान राम जल पी रहे थे कि आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बिना ही जल पीते हो? यह वाणी सुनकर भगवान श्रीराम ने बालू से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की तथा भगवान शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वर मांगा। उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह वर भगवान श्री राम को दे दिया। भगवान शिव ने लोक कल्णार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां निवास करने की सबकी प्रार्थना भी स्वीकार कर ली। तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान हैं।
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक अन्य कथा इस प्रकार कही जाती है- जब भगवान श्रीराम, रावण का वध करके लौट रहे थे तब उन्होंने अपना पहला पड़ाव समुद्र के उस पार गंधमादन पर्वत पर डाला था। वहां अनेक ऋषि और मुनिगण भगवान श्री राम दर्शन के लिए उनके पास आए। उन सभी का आदर सत्कार करते हुए भगवान राम ने उनसे कहा कि पुलत्स्य के वंशज रावण का वध करने के कारण मुझ पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया है आप लोग मुझे इससे मुक्ति प्राप्त करने का कोई उपाय बताइए।
यह सुनकर वहां उपस्थित सारे ऋषियों-मुनियों ने एक स्वर से कहा कि आप यहां शिवलिंग की स्थापना कीजिए। इससे आप ब्रह्म हत्या के पाप से छुटकारा पा जाएंगे।
भगवान श्री राम ने उनकी यह बात सुनकर हनुमान जी को कैलाश पर्वत जाकर वहां से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। हनुमान जी तत्काल ही वहां जा पहुंचे किन्तु उन्हें उस समय वहां भगवान शिव के दर्शन नहीं हुए। अत: वे उनका दर्शन प्राप्त करने के लिए वहीं बैठकर तपस्या करने लगे। कुछ काल पश्चात शिवजी के दर्शन प्राप्त कर हनुमान जी शिवलिंग लेकर लौटे किन्तु तब तक शुभ मुहूर्त बीत जाने की आशंका से यहां सीता जी द्वारा लिंग की स्थापना का कार्य कराया जा चुका था।
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हनुमान जी को यह सब देखकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान श्री राम से कह सुनाई। भगवान ने पहले ही लिंग स्थापित किए जाने का कारण हनुमान जी को बताते हुए कहा कि यदि तुम चाहो तो इस लिंग को यहां से उखाड़कर हटा दो। हनुमान जी अत्यंत प्रसन्न होकर उस लिंग को उखाडऩे लगे, किन्तु बहुत प्रयत्न करने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ। अंत में उन्होंने उस शिवलिंग को अपनी पूंछ में लपेट कर उखाडऩे का प्रयत्न किया, फिर भी वह ज्यों का त्यों अडिग बना रहा। उलटे हनुमान जी ही धक्का खाकर एक कोस दूर मूर्च्छित होकर जा गिरे।
उनके शरीर से रक्त बहने लगा। यह देखकर सभी लोग अत्यंत व्याकुल हो उठे। माता सीता जी पुत्र से भी प्यारे अपने हनुमान के शरीर पर हाथ फेरती हुई विलाप करने लगीं। मूर्च्छा दूर होने पर हनुमान जी ने भगवान श्री राम को परम ब्रह्म के रूप में सामने देखा। भगवान ने उन्हें शंकर जी की महिमा बताकर उनका मार्गदर्शन किया। फिर हनुमान जी द्वारा लाए गए लिंग की स्थापना भी वहीं पास में करा दी गई।