Shravan Ashtami Mela 2023: चिंतपूर्णी में श्रावण अष्टमी मेले 17 से 25 अगस्त तक

punjabkesari.in Tuesday, Aug 15, 2023 - 07:56 AM (IST)

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Shravan Ashtami Mela: चिंतपूर्णी अर्थात ‘चिन्ता को दूर करने वाली देवी’ को ‘छिन्नमस्तिका’ भी कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित इस सिद्धपीठ में प्रतिवर्ष श्रावण अष्टमी का विशाल मेला लगता है, जो इस बार 17 से 25 अगस्त तक चलेगा। वैसे श्रावण मास की संक्रांति से ही यहां पर मेले जैसा माहौल बनना शुरू हो जाता है।

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प्राचीन कथाओं के अनुसार मान्यता है कि 14वीं सदी में माई दास नामक दुर्गा भक्त ने इस स्थान की खोज की थी। उनका जन्म अठूर गांव, पटियाला में हुआ था। माई दास जी के दो बड़े भाई थे-दुर्गादास व देवीदास। माई दास का अधिकतर समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत होता था इसलिए वह परिवार के कार्यों में हाथ नहीं बंटा पाते थे, जिसके चलते दोनों बड़े भाइयों ने माई दास जी को परिवार से अलग कर दिया। माई दास जी ने अपना समय पूजा-पाठ व दुर्गा भक्ति में व्यतीत करना जारी रखा। 

एक दिन ससुराल जाते समय रास्ते में एक वट वृक्ष के नीचे आराम करने बैठ गए। इसी के नीचे आजकल भगवती जी का मन्दिर है। वहां घना जंगल था और इसका नाम छपरोह था, जिसे आजकल चिन्तपूर्णी कहते हैं। थकावट के कारण माई दास की आंख लग गई और स्वप्न में उन्हें दिव्य तेजस्वी कन्या के दर्शन हुए, जो उन्हें कह रही थीं कि इसी वट वृक्ष के नीचे मेरी पिंडी बनाकर उसकी पूजा करो, तुम्हारे सब दुख दूर होंगे। माई दास जी को कुछ समझ न आया और वह ससुराल चले गए। 

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वापस आते समय उसी स्थान पर माई दास जी के कदम फिर रुक गए। उन्हें आगे कुछ दिखाई न दिया। वह फिर उसी वट वृक्ष के नीचे बैठ गए और स्तुति करने लगे। उन्होंने मन ही मन प्रार्थना की तो उन्हें सिंह वाहनी दुर्गा माता के दर्शन हुए जिन्होंने कहा कि मैं उस वट वृक्ष के नीचे चिरकाल से विराजमान हूं। लोग यवनों के आक्रमण तथा अत्याचारों के कारण मुझे भूल गए हैं। तुम मेरे परम भक्त हो। अत: यहां रहकर मेरी आराधना करो। यहां तुम्हारे वंश की रक्षा मैं करूंगी।

माई दास जी ने कहा कि यहां घने जंगल में न तो पीने योग्य पानी है और न ही रहने योग्य उपयुक्त स्थान। मां ने कहा कि मैं तुमको निर्भय दान देती हूं कि तुम किसी भी स्थान पर जाकर कोई भी शिला उखाड़ो, वहां से जल निकल आएगा। इसी जल से तुम मेरी पूजा करना। आज उसी वट वृक्ष के नीचे मां चिन्तपूर्णी का भव्य मन्दिर है। जिस स्थान पर जल निकला था वहां आज सुन्दर तालाब है। आज भी उसी स्थान से जल निकाल कर माता का अभिषेक किया जाता है। 

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मार्कण्डेय पुराण के अनुसार मान्यता है कि सती चंडी की सभी दुष्टों पर विजय के उपरांत, उनके दो शिष्यों अजय और विजय ने सती से अपनी खून की प्यास बुझाने की प्रार्थना की थी। यह सुनकर सती चंडी ने अपना मस्तिष्क छिन्न कर लिया इसलिए सती का नाम ‘छिन्नमस्तिका’ पड़ा।    


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Content Writer

Niyati Bhandari

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