शिरडी के साई बाबा से जुड़ी ये कथा नहीं जानते होंगे आप, जानिए ऐसा क्या खास है इसमें?

punjabkesari.in Sunday, May 22, 2022 - 11:10 AM (IST)

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शिरडी के सांई बाबा का नाम किसने नहीं सुना, प्राचीन समय से लेकर आज तक समाज में इनके चमत्कार प्रसिद्ध है। बता दें जिस तरह हिंदू धर्म के अन्य देवी-देवताओं के लाखों की तादाद में भक्त दुनिया में है, ठीक उसी तरह साईं बाबा के देश-विदेश में असीम भक्त पाए जाते हैं। आज हम आपको साईं बाबा के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जी हां, आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहे हैं शिरडी की। जहां नियमित रूप से रोज व खास तौर पर गुरुवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु जहां साईं बाबा के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। बता दें दिखने में छोटा शिरडी शहर, अनेकों धार्मिक स्थलों और गतिविधियों से भरपूर है।

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बात करें साईं बाबा के स्थल की, तो कहा जाता है देश में सबसे प्रसिद्ध साईं बाबा का यही मंदिर। तो चलिए आइए जानते है शिरडी के साईं बाबा से जुड़ी कुछ ऐसी जानकारी जिसके बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं।

सबसे पहले बात करते हैं साईं बाबा के जन्म की तो बता दें लोक किंवदंतियों के अनुसार उनका जन्म कब और कहां हुआ यह बात कोई नहीं जानता। कुछ लोगों के अनुसार स्वयं साईं बाबा ने भी इस बारे में कभी नहीं बताया। हालांकि कुछ कथाओं में इन्होंने कई बार अपने माता का परिचय दिया है। जन्मतिथि एवं स्थान की तरह ही साईं बाबा के माता-पिता के बारे में भी कोई प्रमाणिक तथ्य नहीं है। परंतु श्री साईं बाबा द्वारा बताई गई बातों के अनुरूप उनके पिता का नाम श्री गंगा बावड़िया और उनकी माता का नाम देवगिरी अम्मा माना जाता है। ये दोनों शिव-पार्वती के भक्त थे, जिन्हें शिव जी के आशीर्वाद से ही साईं बाबा के रूप में संतान की प्राप्ति हुई थी। जब साईं बाबा अपनी मां के गर्भ में थे उस समय उनके पिता के मन में अरण्यवास की अभिलाषा तीव्र हो गई थी जिसके बाद वे अपना सब कुछ छोड़ कर जंगल में निकल पड़े थे। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। मार्ग में ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया और पति के आदेश के अनुसार उसे एक वृक्ष के नीचे छोड़ कर चली गए।

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उस समय में एक मुस्लिम फकीर उधर से निकले जो निः संतान थे। उन्होंने ही उस बच्चे को अपना लिया और 'बाबा' नाम रख दिया तथा उसका पालन-पोषण किया। ऐसी कथाएं प्रचलित हैं कि बाबा पहली बार सोलह वर्ष की उम्र में शिरडी में एक नीम के पेड़ के नीचे देखे गए थे। इस जगह से व उनसे जुड़ी चमत्कारी कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कुछ समय बाद वे वहां से अदृश्य हो गए थे। शिरडी से जुड़ी एक कथा के अनुसार चांद पाटिल के आश्रम में कुछ समय तक रहने के बाद एक बार पाटिल के एक निकट संबंधी की बारात शिरडी गांव गई, जिसके साथ बाबा भी गए। जब बारात शिरडी गांव पहुंची तो खंडोबा के मंदिर के सामने ही बैल गाड़ियां खोल दी गई थीं और बारात के लोग उतरने लगे थे। उसी दौरान एक श्रद्धालु म्हालसापति ने तरुण फकीर के तेजस्वी व्यक्तित्व से खुश होकर उन्हें 'साईं' कहकर सम्बोधित किया।

ऐसा कहा जाता है धीरे-धीरे शिरडी में सभी लोग उन्हें 'साईं' व 'साईं बाबा' के नाम से पुकारने लगे तथा इस प्रकार वे 'साईं' नाम से प्रसिद्ध हो गए। ऐसा किंवदंतियां हैं कि विवाह संपन्न हो जाने के बाद बारात तो वापस लौटी परंतु बाबा को वह जगह काफी पसंद आई और वह वहीं एक अविकसित मस्जिद में रहने लगे और पूरा जीवन वहीं व्यतीत किया।

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Content Writer

Jyoti

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