सिर्फ नवरात्रि ही नहीं, जानें कब-कब कर सकते हैं कन्या पूजन और क्या है इसका पुण्य?
punjabkesari.in Monday, Dec 29, 2025 - 10:52 AM (IST)
Kanya Pujan Significance : हिंदू धर्म में कन्याओं को माता दुर्गा का साक्षात स्वरूप माना गया है। आमतौर पर लोग चैत्र और शारदीय नवरात्रि की अष्टमी या नवमी तिथि को ही कन्या पूजन करते हैं। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से कन्या पूजन एक ऐसी साधना है, जिसे साल के कई महत्वपूर्ण दिनों में करके आप देवी की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं। तो आइए जानते हैं कि नवरात्रि के अलावा कन्या पूजन और कब-कब किया जा सकता है।

नवरात्रि के अलावा कब कर सकते हैं कन्या पूजन?
गुप्त नवरात्रि
साल में दो गुप्त नवरात्रि भी आती हैं (माघ और आषाढ़ मास में)। तंत्र साधना और विशेष मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इन दिनों में कन्या पूजन करना अत्यंत फलदायी माना गया है।
प्रत्येक माह की अष्टमी और चतुर्दशी
हर महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी और चतुर्दशी तिथि मां दुर्गा को समर्पित होती है। यदि आप किसी विशेष संकट से जूझ रहे हैं, तो इन तिथियों पर 1, 3, 5 या 9 कन्याओं को भोजन कराकर उनका आशीर्वाद लेना शुभ होता है।
जन्मदिन या मांगलिक अवसर
अपने परिवार के किसी सदस्य के जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ या घर के उद्घाटन (गृह प्रवेश) के अवसर पर कन्या पूजन करना घर में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाता है।
अक्षय तृतीया और दीपावली
इन बड़े त्योहारों पर भी कन्या पूजन का विधान है। दीपावली के दिन कन्या पूजन करने से लक्ष्मी जी का घर में स्थायी निवास होता है।

कन्या पूजन का पुण्य फल
शास्त्रों के अनुसार, अलग-अलग आयु की कन्याओं के पूजन से अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है।
2 वर्ष की कन्या (कुमारी): इनके पूजन से दुख और दरिद्रता का नाश होता है।
3 वर्ष की कन्या (त्रिमूर्ति): इनकी पूजा से घर में धन-धान्य का आगमन और परिवार में एकता बनी रहती है।
4 वर्ष की कन्या (कल्याणी): विद्या, विजय और सुख की प्राप्ति के लिए कल्याणी स्वरूप का पूजन श्रेष्ठ है।
5-10 वर्ष की कन्या: रोग मुक्ति, शत्रुओं पर विजय और मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस आयु की कन्याओं का पूजन किया जाता है।
कैसे करें सही तरीके से पूजन?
सबसे पहले कन्याओं के पैर धोकर उन्हें साफ आसन पर बैठाएं।
उन्हें कुमकुम का तिलक लगाएं और हाथ में कलावा बांधें।
पूरी, हलवा और चने का सात्विक भोजन कराएं।
सामर्थ्य अनुसार उपहार, फल या दक्षिणा दें।
अंत में उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।

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