Satyendra Nath Bose Birthday: फादर ऑफ गॉड पर्टिकल के नाम से प्रसिद्ध थे महान वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस, पढ़ें कहानी

punjabkesari.in Monday, Jan 01, 2024 - 12:58 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Satyendra Nath Bose Birthday Anniversary 2024: देश के महान वैज्ञानिकों जिन्होंने न केवल अपनी उपलब्धियों से देश को गौरवांवित किया बल्कि छात्रों के लिए कई उदाहरण भी पेश किए, उनमें से एक थे महान वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस। वह एक महान भारतीय मैथेमैटिशियन और फिजिक्स में महारथी थे। उनका जन्म 1 जनवरी, 1894 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक मध्य वर्गीय परिवार में पिता सुरेंद्रनाथ बोस, जो ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी के इंजीनियरिंग विभाग में काम करते थे के घर मां अमोदिनी देवी की कोख से हुआ। सुरेंद्रनाथ बोस के सात बच्चे थे, जिसमें सत्येन्द्रनाथ सबसे बड़े थे। उनकी आरंभिक शिक्षा उनके घर के पास ही स्थित साधारण स्कूल में हुई थी। इसके बाद उन्हें न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में भर्ती कराया गया। स्कूली शिक्षा पूरी करके सत्येन्द्रनाथ बोस ने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।

PunjabKesari Satyendra Nath Bose

पिता ने सत्येंद्र के गणितीय कौशल को प्रोत्साहित किया। हर सुबह, काम पर जाने से पहले, वह हल करने के लिए अंकगणितीय समस्याओं को फर्श पर लिखते थे। पिता के घर लौटने से पहले सत्येंद्र हमेशा इन्हें हल कर लिया कर लेते थे। 1914 में 20 साल की उम्र में, सत्येन्द्रनाथ बोस ने कलकत्ता के एक प्रमुख चिकित्सक की 11 वर्षीय बेटी उषाबती घोष से शादी की, इनके नौ बच्चे थे।

आइंस्टीन ने दिलाई पहचान
1915 में इन्होंने एम.एससी. की पढ़ाई की और साल 1916 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के साइंस कॉलेज में रिसर्च स्कॉलर के तौर पर जुड़ गए। 1921 तक, इन्होंने यहां भौतिकी विभाग में व्याख्याता के रूप में काम किया। सत्येन्द्रनाथ ने ‘प्लैंक लॉ एंड द हाइपोथिसिस ऑफ लाइट क्वांटा’ नामक एक रिपोर्ट लिखी। इसमें उन्होंने अपने निष्कर्षों के बारे में बताया था। उन्होंने अपने पेपर को विज्ञान पत्रिका ‘द फिलॉसॉफिकल मैगजीन’ को भेजा, लेकिन उनके शोध को खारिज कर दिया। फिर उन्होंने साल 4 जून, 1924 को महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को अपना पेपर भेजा। आइंस्टीन ने इसका जर्मन में अनुवाद किया और बोस की ओर से एक प्रतिष्ठित जर्मन पत्रिका में इसे प्रकाशित किया। पेपर को ‘प्लैंक का नियम और प्रकाश क्वांटा की परिकल्पना’ नाम दिया गया था। अल्बर्ट आइंस्टीन ने बोस के रिसर्च पेपर के आधार पर कई शोध किए। इससे सत्येन्द्रनाथ बोस को बहुत प्रसिद्धि और पहचान मिली।

क्वांटम फिजिक्स को दी नई दिशा
सत्येन्द्रनाथ बोस आजादी के बाद विश्व भारती विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी रहे, लेकिन अपनी रिसर्च से सत्येन्द्रनाथ बोस क्वांटम फिजिक्स को एक ही दिशा में ले गए। बोस के परिक्षण से पहले वैज्ञानिक यह मानते थे कि परमाणु ही सबसे छोटा कण होता है लेकिन बाद में यह मालूम चला कि परमाणु के अंदर भी कई छोटे-छोटे कण मौजूद होते हैं जो परमाणु से भी छोटे होते हैं और वर्तमान में किसी भी नियम का पालन नहीं करते हैं। तब डॉ. बोस ने एक नए नियम को सिद्ध किया जो ‘बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी सिद्धांत’ के नाम से मशहूर हुआ।

PunjabKesari Satyendra Nath Bose

जैसे ही यह नया नियम वैज्ञानिकों की नजरों में आया, इन सूक्ष्म कणों पर खूब रिसर्च किया गया जिसके बाद यह पता चला कि परमाणु के अंदर जो कण मौजूद होते हैं, वे कण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं जिनमें से एक का नाम डॉ. बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया तथा दूसरे को वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मीऑन’ दिया गया। ‘बोसॉन’ का मतलब होता है फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसॉन (फोटोन, प्रकाश की मूल इकाई) और ‘फर्मीऑन’ का मतलब होता है क्वार्क और लेप्टॉन एवं संयोजित कण प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन (चार्ज की मूल इकाई)। ये वर्तमान भौतिकी के आधार हैं। सत्येन्द्रनाथ बोस को ‘फादर ऑफ गॉड पर्टिकल’ के नाम से भी जाना जाता है। इस ‘गॉड पार्टिकल’ को ‘हिग्स बोसोन’ कहा जाता है। इसमें हिग्स नाम एक ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्सस के नाम पर रखा गया जबकि बोसोन नाम सत्येन्द्रनाथ बोस के नाम पर रखा गया।

देश विभाजन के बाद उन्होंने 1956 तक कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ाया। आजादी के बाद भारत सरकार ने 1952-1958 के लिए इन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया और विज्ञान तथा अनुसंधान के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए 1954 में पद्म विभूषण की उपाधि से भी सम्मानित किया। सत्येन्द्रनाथ बोस का हिन्दी, अंग्रेजी, फ्रैंच, जर्मन, बंगाली और संस्कृत भाषाओं पर समान अधिकार था। सेवानिवृत्ति के बाद भी उन्होंने परमाणु भौतिकी में अपना शोध जारी रखा। उन्होंने भौतिकी के साथ-साथ कार्बनिक, रसायन विज्ञान, भूविज्ञान, इंजीनियरिंग और अन्य विज्ञानों पर भी शोध किया।

नहीं मिला बनता सम्मान
सत्येन्द्रनाथ बोस को 1956, 1959, 1962 और 1962 में चार बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया परंतु नोबेल पुरस्कारों के पीछे की वैश्विक राजनीति के कारण वह यह सम्मान पाने से वंचित रह गए जबकि उनकी दी गई थ्यौरी पर काम करने वाले 7 वैज्ञानिकों को अब तक नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं।

PunjabKesari Satyendra Nath Bose

बोस ने भारतीय भौतिक समाज, राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान, भारतीय विज्ञान कांग्रेस और भारतीय सांख्यिकी संस्थान समेत कई वैज्ञानिक संस्थानों में प्रमुख के रूप में काम किया। उनको वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् का सलाहकार भी बनाया गया था। सत्येन्द्रनाथ बोस का 80 वर्ष की आयु में 4 फरवरी, 1974 को ब्रोन्कियल निमोनिया से कलकत्ता में निधन हुआ।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Niyati Bhandari

Related News