Sarv pitru amavasya 2024: पितरों की तिथि याद न होने पर इस दिन और मुहूर्त में सटीक विधि से करें तर्पण, हो जाएंगे पितृदोष से मुक्त
punjabkesari.in Saturday, Sep 28, 2024 - 08:38 AM (IST)
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Sarv pitru amavasya 2024: हर साल अश्विन मास के दौरान पितर धरती पर आते हैं और 15 दिन बाद यानि सर्वपितृ अमावस्या के दिन उनकी विदाई की जाती है। साल 2024 में श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर को भादो महीने की पूर्णिमा के दिन आरंभ हुआ था जो 02 अक्तूबर यानी आश्विन महीने की अमावस्या तक चलेगा। आश्विन माह की अमावस्या को ही सर्वपितृ अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन अमावस्या के दिन हुआ हो या फिर जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो। इसके अलावा जो लोग किसी कारणवश पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध न कर पाएं हो वो पितृदोष से बचने के लिए अमावस्या के दिन उनका भी श्राद्ध कर सकते हैं। साल 2024 में सर्वपितृ अमावस्या की सही तिथि, शुभ मुहूर्त और तर्पण की विधि को जानते हैं...
Sarv pitru amavasya muhurat: वैदिक पंचांग के अनुसार आश्विन माह में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 01 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 34 मिनट से प्रारंभ होकर 02 अक्टूबर को मध्यरात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर इसका समापन होगा। उदयातिथि के अनुसार 02 अक्टूबर को अमावस्या की पूजा होगी। इस दिन कुतुप मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक है। इस मुहूर्त को कुतुप काल कहते हैं। मान्यता है कि इस वक्त पितरों का मुख पश्चिम की ओर हो जाता है। इससे पितर अपने वंशजों द्वारा श्रद्धा से भोग लगाए कव्य बिना किसी कठिनाई के ले लेते हैं।
कुतुप मुहूर्त के बाद रोहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से दोपहर 01 बजकर 34 मिनट तक होगा। शास्त्रों के अनुसार रौहिण मुहूर्त भी श्राद्ध और पितृ पूजा से जुड़ा एक शुभ मुहूर्त है...
अगर आप इन दोनों मुहूर्त में श्राद्ध कर्म न कर पाएं तो दोपहर में तर्पण करना भी शुभ माना जाता है। दरअसल, तर्पण पूजा दोपहर में ही होती है। ज्योतिषियों के अनुसार दोपहर के समय किया गया तर्पण पितरों द्वारा स्वीकार किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या में तर्पण का मुहूर्त 2 अक्टूबर को दोपहर 01 बजकर 21 मिनट से अपराह्न 3:43 बजे तक है।
तो चलिए आगे जानते हैं सर्वपितृ अमावस्या पर अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने और तर्पण की विधि तो आईए जानते हैं...
सबसे पहले सुबह स्नान करने के बाद, आप जिस स्थान पर तर्पण करने जा रहे हैं, उसे गंगा जल से शुद्ध करें।
इसके बाद एक दीपक जलाएं।
आपको जिस व्यक्ति का तर्पण करना है, उनकी फोटो चौकी पर स्थापित करें।
मंत्रों का जाप करके पितरों का आह्वान करें।
जल से भरा लोटा लें और पितरों का नाम लेते हुए फोटो के सामने जल चढ़ाएं।
घी, दूध और दही को साथ में मिलाएं और फिर उसे जल में अर्पित करें।
इस दौरान तर्पयामी मंत्र का उच्चारण करें।
पिंड बनाएं और फिर उसे कुश पर रखके जल से सींचें।
पितरों व पूर्वजों को उनके प्रिय भोजन का भोग लगाएं।
पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करें।
पशु-पक्षियों को भोजन कराएं।
अंत में अपनी श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा जरूर दें।