Rahu characteristics: राहू बदल देता है जीवन की दशा और दिशा
punjabkesari.in Wednesday, Oct 21, 2020 - 07:46 AM (IST)
Role and Importance of Rahu in Astrology: वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति के राजनीति में सफल होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्रह राहू को माना गया है। वैसे तो सूर्य ग्रह सत्ता कारक ग्रह है परंतु राहू वहां तक जाने का मार्ग बनाता है। राहू और केतु दोनों छाया ग्रह हैं। दोनों को किसी भी राशि का स्वामित्व नहीं दिया गया है। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध और अन्य ग्रहों की तरह इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं माना गया है जिस प्रकार आमजन शनि से भयभीत रहता है। ठीक इसी प्रकार राहू से मिलने वाले फलों को लेकर आमजन में भय की स्थिति रहती है।
What is Rahu and Ketu in Vedic astrology: ऐसा माना जाता है कि राहू केतु दोनों आंतरिक रूप में इस संसार से जुड़े हुए हैं। राहू और केतु के राशि प्रतिनिधित्व को लेकर ज्योतिषीय विद्वानों में मतभेद है। कुछ के अनुसार राहू की उच्च राशि मिथुन है और धनु राशि में राहू नीचस्थ होता है। आद्र्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्र राहू के नक्षत्र हैं। राहू को पिंडलियों में स्थान दिया गया है। जन्म कुंडली में राहू के पीड़ित होने पर व्यक्ति को अनिद्रा, पेट के रोग, मस्तिष्क और पागलपन जैसे रोग होने की संभावना रहती है। राहू व्यक्ति को निंदनीय कर्म करने को प्रेरित करता है, दूसरों को पीड़ा पहुंचाने में उसे सुख का अनुभव होता है, इसके विपरीत व्यक्ति शुभ कर्म करें तो उसे धन वैभव और भोग के अवसर प्राप्त होते हैं। अशुभ कर्मों के फलस्वरूप उत्पन्न परेशानियों से बचाव के लिए व्यक्ति को राहू की शरण में जाने से लाभ मिलता है।
Rahu astrological significance: जन्मपत्री के बारह भावों में राहू
प्रथम भाव में राहू की स्थिति जातक के मस्तिष्क को प्रभावित करती है कुछ हद तक व्यक्ति को स्वार्थी बनाती है परंतु उसे स्वार्थी सेवक बनाती है। ऐसा व्यक्ति सामान्यता: अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए दूसरों की सेवा करता है।
द्वितीय भाव में राहू होने पर व्यक्ति के परिवार में एकजुटता की कमी रहती है। कोई न कोई पारिवारिक मतभेद सामने आते ही रहते हैं। इससे पारिवारिक शांति भी भंग होती रहती है। शास्त्रों के अनुसार ऐसा व्यक्ति मिथ्या भाषी और शत्रुओं का नाश करने वाला होता है।
पराक्रम भाव में राहू व्यक्ति की विवेक शक्ति बढ़ाता है। ऐसा व्यक्ति विद्वान और कुशल होता है।
सुख भाव में राहू हो तो व्यक्ति कम बातचीत करना पसंद करता है माता का सुख और घर का सुख संतोष व्यक्ति को कम ही मिल पाता है।
राहू पंचम भाव में हो तो व्यक्ति का वैवाहिक जीवन तो कष्ट में रहता ही है साथ ही भाग्यवान भी थोड़ा कम ही होता है। जीवन साथी पर भी बार-बार परेशानियां आती रहती हैं।
षष्ठ भाव में राहू व्यक्ति की धैर्यशक्ति बढ़ाता है। शत्रुओं को शांत रखने में व्यक्ति सफल होता है।
विवाह भाव में राहू की स्थिति व्यक्ति को लोभी बना सकती है। जीवन साथी से विचार कम ही मिलते हैं। व्यक्ति के एक से अधिक विवाह होने की भी संभावनाएं बनती हैं।
अष्टम भाव में राहू व्यक्ति को बुद्धिमान तो बनाता है परंतु ऐसा व्यक्ति परिश्रम में रुचि कम रखता है।
कर्म भाव में राहू व्यक्ति को आसक्ति का भाव देता है, राजनीति में आने के मार्ग खोलता है।
आय भाव में राहू व्यक्ति को अपनी दशा में लाभ, उन्नति और महत्वाकांक्षी बनाता है।
बारहवें भाव में राहू व्यक्ति को कुसंगति के लोगों के संपर्क में रखता है। विवेक की कमी देता है और बुद्धि का लाभ भी व्यक्ति को नहीं मिल सकता है।
Importance of Rahu in Vedic astrology: जीवन में अचानक से होने वाली घटनाओं को घटित करने में राहू का योगदान प्रमुख रूप से होता है। बुध बौद्धिक शक्ति, क्षमता और बुद्धिमानी देता है तो राहू बुद्धि में चातुर्य शक्ति भी देता है। आविष्कार करने की बुद्धि बुध ग्रह न देकर राहू ग्रह देता है। मस्तिष्क में कारण और कारक के सूत्र का कार्य राहू ग्रह करता है। मस्तिष्क में अचानक से आने वाले विचारों को राहू से देखा जाता है।
रात्रि में देखे जाने वाले स्वप्नों का कारक ग्रह राहू है। मस्तिष्क में आने वाले तनाव, अशांति की स्थिति, घबराहट होने लगना या व्यक्ति को जब यह लगने लगे कि यह संसार व्यर्थ है और इस संसार में रहने का कोई अर्थ व्यक्ति को समझ नहीं आए तो राहू का असर अधिक है। मानसिक विक्षिप्तता भी राहू के अधिकार क्षेत्र में आती है। व्यर्थ के कार्यों से शत्रु बनाना, राहू का कुंडली में अशुभ होने का संकेत है।
राहू संघर्ष के बाद सफलता मिलने के योग बनाता है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि राहू संघर्ष के बाद सत्ता सुख देने की क्षमता भी देता है।
राजनीति में उठा-पटक कराने वाला ग्रह राहू ही है। इसलिए राजनीति में सफलता का मूल्यांकन करने के लिए राहू का सर्वप्रथम विश्लेषण किया जाता है। राजनीति का सीधा-सीधा संबंध कूटनीति से है। राहू जिस भाव में स्थित होता है उस भाव के फलों को दूषित अवश्य कर देता है। अचानक तय होने वाली शादियों में राहू की भूमिका बहुत अधिक होती है। राहू क्योंकि दिमाग में फितूर देने का कार्य करता है इसलिए जब कोई व्यक्ति अचानक से बड़े निर्णय लेता है और बाद में पश्चाताप करता है तो ऐसे निर्णय राहू से प्रेरित रहते हैं। राहू ही जेल, बंधन और कारावास देता है। 12वें भाव में राहू की स्थिति हो तो व्यक्ति को जेल, पागलखाने या अस्पताल में जाने की स्थिति भी दे देता है।
राहू की महादशा 18 वर्ष की होती है। राहू सदैव वक्री गति में विचरण करता है। इसकी गति नियमित है। राहू प्रत्येक 19वें वर्ष में अपने फलों को दोहराता है। 19वें वर्ष में यदि आपने राहू से संबंधित कोई कार्य किया हो तो आप 38 वर्ष की आयु में भी वही कार्य दोहरा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को राजनीति में सफलता मिली हो तो उसके एक बार फिर से 19 वर्ष बाद सफलता मिलने की संभावनाएं बनती हैं। इसी प्रकार अस्पताल, कारावास, अनैतिक संबंध आदि राहू के कार्यों में ही आते हैं। राहू और चंद्र एक साथ हों तो व्यक्ति सदैव किसी न किसी चिंता से पीड़ित रहता है। पुरुष को आजीविका की और स्त्री को अपने ससुराल या सास से जुड़ी चिंताएं रहती हैं। संतान भाव में राहू की स्थिति व्यक्ति को शीघ्र धन कमाने की ओर प्रेरित करती है। शेयर बाजार, सट्टा, लाटरी में जातक धन लगाता है।