इस व्रत से टूटते हैं रिश्ते

punjabkesari.in Tuesday, May 22, 2018 - 03:36 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा

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आप सभी ने अपने जीवन में एक कहावत तो सुनी ही होगी- ‘एक चुप सौ को हराए, एक चुप सौ को सुख दे जाए’ और इसलिए हम कई बार मौन रह जाते हैं क्योंकि यह सच भी है कि एक मूर्ख व्यक्ति के सामने मौन रहने से अच्छा उत्तर और कुछ भी नहीं हो सकता। परंतु जीवन में सदैव चुप रहना उचित नहीं होता है।

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गीता में कहा गया है- जहां पाप का बल बढ़ रहा हो, जहां छल-कपट हो रहा हो, वहां पर मौन रहने से अधिक गंभीर अपराध और कुछ नहीं हो सकता।

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कभी-कभी हम किसी ताकतवर के समक्ष उसकी ताकत से बचने के लिए मौन रह जाते हैं। मानते हैं कि ऐसा करने से हम एक विवाद से बच जाते हैं। हो सकता है कि एक संघर्ष से भी बच जाते हों। परंतु ऐसा बचाव देर-सवेर एक बड़े संघर्ष को जन्म दे देता है। हमारा मौन रहना अनजाने में उस व्यक्ति का समर्थन बन जाता है और वह अपने आपको और अधिक शक्तिशाली अनुभव करने लगता है। यहीं से हमारा दमन प्रारंभ हो जाता है। 

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वास्तव में हमारा खुद का डर हमें मौन रहने को विवश करता है। क्या हम मन से डर को निकाल कर अन्याय का विरोध नहीं कर सकते? सोचिए, ऐसा करने से हमारा मन कितना मुक्त, कितना हल्का अनुभव करेगा। गीता में भी कहा गया है कि अन्याय सहना अन्याय करने से ज्यादा बड़ा पाप है।

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आज समाज में यही तो हो रहा है, जहां विरोध करना चाहिए वहां कोई बोलता नहीं। दूसरी ओर जहां बोलने की कोई आवश्यकता ही नहीं, हम बोले चले जा रहे हैं और अन्याय होता देख चुप रहकर बच निकलते हैं। क्या हम निरंतर अपराध के भागीदार नहीं बन रहे?


इतिहास साक्षी है कि पापियों की उद्दंडता ने संसार को उतनी हानि नहीं पहुंचाई जितनी कि सज्जनों के मौन ने पहुंचाई। यदि कोई मूर्ख बोल रहा है तो मौन रहना उचित है, परंतु यदि कहीं छल हो रहा है, अपराध हो रहा है तो उठिए और विरोध कीजिए क्योंकि आपके लिए न सही, आने वाली पीढ़ी के लिए यह मौन घातक सिद्ध हो सकता है।


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Niyati Bhandari

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