रामचरित मानसः ऐसे लोगों की बात मान लेने में ही है भलाई

punjabkesari.in Sunday, May 05, 2019 - 01:25 PM (IST)

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रामचरित मानस के बारे में तो सब जानते ही हैं कि ये तुलसीदास जी के द्वारा रचित है। इस ग्रंथ में बहुत ही रोचक प्रसंगों का वर्णन मिलता है। जोकि भगवान राम के जीवन के बारे में बताया गया है। इसी के अरण्यकांड में रावण और मारीच का प्रसंग है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस प्रसंग में समझाया है कि 9 तरह के लोगों से दुश्मनी नहीं करनी चाहिए। इन लोगों की कोई भी बात तुरंत मान लेने में ही बुद्धिमानी है, वरना आप मुसीबत में फंस सकते हैं। इस प्रसंग में गोस्वामी तुलसीदास जी ने बताया है कि न चाहते हुए भी मारीच को रावण की बात माननी पड़ी और रावण के कहने पर स्वर्ण मृग बनना पड़ा जबकि मारीच जानता था कि ऐसा करने पर श्रीराम उसे मार देंगे। तो चलिए जानते हैं इस प्रसंग के बारे में विस्तार से-
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रावण और मारीच प्रसंगः
जब माता सीता का हरण करने के लिए रावण मारीच के पास पहुंचा और कहा कि तुम छल-कपट करने वाला स्वर्ण मृग बनो, ताकि में सीता का हरण कर सकूं। तब मारीच ने रावण को बहुत समझाया कि वह श्रीराम से बैर न करें। मारीच की बातें सुनकर रावण क्रोधित हो गया व खुद के बल और शक्तियों का घमंड करने लगा। तब मारीच को समझ आ गया कि सीता हरण के लिए उसकी मदद करने में ही भलाई है। वरना ये मुझे मार देगा और उसने सोचा कि रावण के हाथों मरने से अच्छा है कि मैं श्रीराम के हाथ मरूं, जिससे मेरा उद्धार भी हो जाएगा।

तुलसीदास जी ने लिखाः 
तब मारीच हृदयँ अनुमाना। 
नवहि बिरोधें नहिं कल्याना।। 
सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी। 
बैद बंदि कबि भानस गुनी।। 
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अर्थता- इस दोहे में मारीच की सोच बताई गई है कि हमें किन लोगों की बातों को तुरंत मान लेना चाहिए। अन्यथा प्राणों का संकट खड़ा हो सकता है। इस दोहे के अनुसार शस्त्रधारी, हमारे राज जानने वाला, समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान व्यक्ति, वैद्य, भाट, कवि और रसोइयां, इन लोगों की बातें तुरंत मान लेनी चाहिए। वरना ऐसे लोग दूसरों का बूरा करने में एक मिनट की भी देरी नहीं करेंगे।इनसे कभी विरोध नहीं करना चाहिए, अन्यथा हमारे प्राण संकट में आ सकते हैं।


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