इस अनोखे अंदाज़ में किया था राजा विक्रमादित्य के गुरु ने उनका मार्गदर्शन

punjabkesari.in Thursday, Jun 11, 2020 - 10:33 AM (IST)

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महाराजा विक्रमादित्य वीर, न्यायप्रिय तथा अत्यंत उदार शासक थे। एक बार वह अपने गुरु के दर्शन के लिए उनके आश्रम में गए। चरणस्पर्श के बाद उनके समक्ष भूमि पर बैठ गए। बोले, ‘‘महाराज, मुझे कोई ऐसा प्रेरक वाक्य बताओ जो महामंत्र बनकर न केवल मेरा, अपितु मेरे उत्तराधिकारी का भी मार्गदर्शन करता रहे।’’ 
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संत जी ने एक कागज पर संस्कृत का श्लोक लिख कर दे दिया। इसका तात्पर्य था कि प्रतिदिन यह चिंतन करना चाहिए कि आज का जो दिन व्यतीत हुआ है, वह पशुवत व्यतीत हुआ है अथवा सत्कर्म से युक्त दिन रहा है।

महाराजा विक्रमादित्य ने दरबार में सिंहासन के ऊपर उस प्रेरक वाक्य को अंकित करा दिया। वह स्वयं प्रतिदिन बैठने से पूर्व इस बात का आकलन करने लगे कि उस दिन उनके हाथों कोई सद्कार्य हुआ है या नहीं।
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एक दिन अतिव्यस्तता के कारण वह कोई पुनीत कार्य नहीं कर पाए। रात को शयन कक्ष में जाने से पूर्व प्रतिदिन की तरह दिन भर के कार्यों का आकलन करने लगे तो उन्हें लगा कि दिन भर उनके हाथों से कोई धर्म कार्य नहीं हो पाया। वह उठे तथा राजमहल से बाहर दूर जंगल की ओर चल दिए। 

उन्होंने देखा कि खेत की मेड़ पर एक गरीब किसान भीषण ठंड में खेत की फसल की रखवाली करता-करता सो गया है। महाराज ने अपनी गर्म चादर उतारी तथा उसे ओढ़ा दी। चुपचाप राजमहल लौटे तथा सो गए। उन्हें लगा कि उनके गुरुदेव द्वारा प्रदान किया गया श्लोक उन्हें पग-पग पर सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रहा है। 
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Jyoti

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