यहां मंदिर की मूर्ति में नहीं बल्कि पावन ग्रंथ में है श्री कृष्ण का निवास

punjabkesari.in Wednesday, Aug 21, 2019 - 05:09 PM (IST)

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24 अगस्त से देश के साथ-साथ विदेशों में जन्माष्टमी की धूम देखने को मिलेगी। इस दिन जहां देखो वहा एक ही नाम गूंजता सुना देता है जो है यशोदा के नंदलाल कान्हा का। बताया जाता है इस दौरान लोगों के घर व मंदिरों आदि में श्री कृष्ण के भक्तों की भारी भीड़ दिखाई देती है। जन्माष्टमी के इस खास पर्व पर हम आपको राधा-कृष्ण के अद्भुत व प्राचीन मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। अब आप सोच रहे होंगे कि भगवान का तो हर मंदिर ही अद्भुत व प्राचीन ही होते हैं तो इस मंदिर में ऐसा क्या खास है। तो आपको जानकारी के लिए बता दें कि इस मंदिर की सबसे बड़ी अद्भुत व खास बात ये है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है। जी जी, आप ने कुछ गलत नहीं पढ़ा है कहने को तो ये मंदिर राधा-कृष्ण के नाम से देशभर में प्रख्यात है मगर यहां इनकी कोई प्रतिमा नहीं है। तो अब प्रश्न ये उठता है कि अगर यहां कोई मूर्ति नहीं है तो इसे राधा-कृष्ण से कैसे जोड़ा जाता है।
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आइए यहा जानते हैं आपके इन तमाम सवालें के जवाब-
मध्य प्रदेश के इंदौर में एक ऐसा मंदिर स्थित है जहां हिंदू धर्म के किसी देवी-देवता की मूर्तियां नहीं है। बल्कि इस अनोखे मंदिर में भक्त ग्रंथ और मुकुट की पूजा करते हैं। इतना ही नहीं मंदिर से जुड़ी लोक मान्यता के अनुसार यहां पूजा करने से सभी तरह की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। बता दें इंदौर शहर के गौराकुंड चौराहे के ठीक पहले प्रणामी संप्रदाय का ये प्राचीन राधा-कृष्ण मंदिर है। मंदिर में दाखिल होते ही सामने चार मूर्तियां स्थापित प्रतीत होती है परंतु असल में वो मूर्तियां नहीं है बल्कि ग्रंथ और मोर मुकुट है।

ग्रंथों का होता है श्रृंगार
बताया जाता है मंदिर में चांदी के सिंहासन पर 400 साल पुराने श्रीकृष्ण स्वरूप ग्रंथ स्थापित है। ग्रंथों को मोर मुकुट के साथ-साथ राधा-कृष्ण जैसी पोशाक भी पहनाई जाती है। श्रृंगार के बाद ग्रंथ राधा-कृष्ण की खूबसूरत प्रतिमा जैसा ही प्रतीत होता है।
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सौ वर्ष पुराना है मंदिर
प्रचलित कथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण होलकर राजघराने में पंच रहे मांगीलाल भंडारी ने करवाया था। प्रणामी संप्रदाय के गुरु प्राणनाथ ने जब ग्रंथों का अध्ययन किया तो उन्होंने समझा कि मूर्तियों की तरह ही ग्रंथ भी प्रभावशाली होते हैं। तब से ही यहां पर ग्रंथों की पूजा की जाने लगी।
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जन्माष्टमी पर होती है खास पूजा
जन्माष्टमी  के खास अवसर इस पावन की ग्रंथ की ठीक वैसे ही पूजा होती है जैसे श्रीकृष्ण की पूजा होती है। यहां पांच बार ग्रंथ की पूजा की जाती है। यही नहीं, ग्रंथों को झूला भी झुलाया जाता है। प्रणामी संप्रदाय के अलावा अन्य समुदायक के लोग भी बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर में जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन व पूजा-अर्चना की जाती है पान का भोग लगाया जाता है।


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Jyoti

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