Phulera Dooj: फुलेरा दूज और राधाकृष्ण का है खास Connection
punjabkesari.in Friday, Feb 28, 2025 - 08:29 AM (IST)
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Phulera Dooj 2025: फुलेरा दूज का राधाकृष्ण और होली से गहरा संबंध है। यह पर्व विशेष रूप से राधा और कृष्ण के प्रेम, उनके मिलन और होली के आगमन से जुड़ा हुआ है। कृष्ण और राधा के अनन्य प्रेम को मनाने का दिन है फुलेरा दूज, जिसमें एक गहरी आध्यात्मिकता और भावनाओं का संचार होता है। यह दिन केवल बाहरी रंगों के खेल का नहीं, बल्कि प्रेम और आस्था के रंगों से जीवन को रंगने का पर्व है।
फुलेरा दूज और राधा-कृष्ण का संबंध:
फुलैरा दूज का पर्व राधा कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन को खासतौर पर राधाकृष्ण के प्रेम के रंगों के रूप में मनाया जाता है, जिसमें कृष्ण के साथ राधारानी का प्रेम एक अहम स्थान रखता है।
राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक:
फुलेरा दूज का पर्व राधा और कृष्ण के बीच गहरे प्रेम और उनके मिलन की याद दिलाता है। राधा और कृष्ण का संबंध हमेशा से प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक रहा है।
कृष्ण ने राधा को रंगों से रंगा:
कहा जाता है कि फुलैरा दूज के दिन कृष्ण ने राधा को अपनी प्रेम के रंगों से रंगा। यह प्रेम का रंगीन पहलू था और कृष्ण ने राधा को रंगों के माध्यम से अपनी अनोखी चाहत का इज़हार किया। यही कारण है कि इस दिन को रंगों के प्रेम का दिन माना जाता है और इसे होली के रूप में मनाया जाता है। कृष्ण और राधा के मिलन और उनके रंगों के खेल ने इस दिन को और भी विशेष बना दिया।
फुलैरा दूज और होली का संबंध:
फुलैरा दूज और होली दोनों ही रंगों के त्योहार हैं और इनका मुख्य उद्देश्य प्रेम और भाई-बहन के रिश्ते को सम्मानित करना है। हालांकि होली को मुख्य रूप से एक सार्वजनिक और सामूहिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, फुलैरा दूज के दिन कृष्ण और राधा का प्रेम और उनके रंगों से जुड़ा एक अनूठा और गहरा संदेश दिया जाता है।
होली के पीछे का प्रेम तत्व:
होली को जितना बाहर से एक रंगों का त्योहार माना जाता है, उसके अंदर गहरी प्रेम और भाईचारे की भावना है। कृष्ण और राधा के बीच रंगों के खेल का यह भाव विश्वभर में प्रेम की भावना को व्यक्त करता है। राधा और कृष्ण के रंगों में उनके प्रेम और समर्पण का हर रंग विशेष अर्थ रखता है। यही वजह है कि फुलैरा दूज, होली का शुरुआती संकेत माना जाता है क्योंकि यह दिन विशेष रूप से रंगों के साथ प्रेम का आदान-प्रदान करता है।
अदृश्य प्रेम का रंग:
एक दिलचस्प पहलू यह है कि कृष्ण और राधा का प्रेम कभी भी शारीरिक नहीं था, बल्कि यह आध्यात्मिक और अदृश्य प्रेम था। कृष्ण ने अपनी अराध्या राधारानी को एक रंग या एक भौतिक वस्तु से ज्यादा आध्यात्मिक रंगों से रंगा। इसलिए फुलैरा दूज और होली का यह दिन सिर्फ बाहरी रंगों का खेल नहीं बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक एकता का प्रतीक भी है।
विशेष रूप से मथुरा-वृंदावन का कनेक्शन:
मथुरा और वृंदावन में फुलैरा दूज और होली के पर्व को लेकर विशेष श्रद्धा और उल्लास होता है। यहां कृष्ण के जन्म और उनके रंगीन खेलों की परंपरा सजीव रहती है। फुलैरा दूज मथुरा और वृंदावन में विशेष रूप से इस दिन मनाया जाता है, जब लोग राधा और कृष्ण के प्रेम में रंगीन हो जाते हैं और उनके प्रेम के रंगों में रंगते हैं। इस दिन को राधाकृष्ण के रंगीन प्रेम का उत्सव कहा जाता है।
फुलैरा दूज और कृष्ण की लीला:
कृष्ण की लीला में रंगों का महत्वपूर्ण स्थान है। वह अक्सर अपनी गोपियों के साथ रंग खेलते थे और अपनी प्रेमिका राधा के साथ इन रंगों के माध्यम से अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते थे। यह सब उनके प्रेम की महानता और उनकी असीमित भावनाओं का प्रतीक था।
अद्भुत तात्त्विक अर्थ:
फुलैरा दूज का पर्व राधा और कृष्ण के प्रेम के अद्भुत तात्त्विक अर्थ को व्यक्त करता है। यह केवल बाहरी रंगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक और मानसिक रंग भी दर्शाता है। जैसे श्री कृष्ण ने राधारानी को रंगों से सजाया, ठीक वैसे ही इस दिन को मनाने का उद्देश्य हमारे जीवन में भी प्रेम, आनंद और संतोष के रंग भरना है।