प्रदोष व्रत: इस कथा को सुनने मात्र से दूर होंगे सारे कष्ट-क्लेश

punjabkesari.in Sunday, Jun 12, 2022 - 11:02 AM (IST)

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प्रत्येक मास एकादशी के ठीक एक दिन बाद त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है, जिसका अर्थ है प्रदोष व्रत के उपलक्ष्य में शिव शंकर का पूजन करना शुभ होता है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो यूं तो महादेव का पूजन करने के लिए कोई भी समय अशुभ व खास नहीं होता परंतु अगर बात करें अगर प्रदोष व्रत की तो माना जाता है कि इस दिन खासतौर पर भगवान  शिव का पूजन प्रदोष काल में यानि संध्या के समय करनी अति शुभदायी व लाभदायी होती है। इसके अलावा जिस तरह हिंदू धर्म के किसी अन्य व्रत, पर्व आदि के दिन उससे जुड़ी कथा आदि का श्रवण करना जरूरी होता है। ठीक उसी तरह प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति के लिए इससे जुड़ी कथा का श्रवण करना या उसे पढ़ना अनिवार्य होता है। तो आइए ज्येष्ठ मास के प्रदोष व्रत पर जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा।  

PunjabKesari Pardosh Varat, Pardosh Vrat Jyestha Maas

प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथाएं-
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय की बात है एक बार चंद्रमां को क्षय रोग हो गया, जिसके कारण उन पर मृत्यु की स्थिति आ गई। जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो शिव जी ने चंद्र देव को क्षय रोग से मुक्ति दिलाने लिए उन्हें त्रयोदशी के दिन उन्हें पुनः जीवन प्रदान कर दिया। जिस कारण इस दिन प्रदोष के नाम से जाना जाने लगा।

इसके अलावा अन्य कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है किसी नगर में एक विधवा गरीब ब्रह्माणी रहती थी, जो प्रत्येक दिन भिक्षा मांगकर अपना और बेटे का पेट पालती था। काफी समय पूर्व उसके पति का स्वर्गवास हो चुका था। रोज प्रातः होते ही वह अपने बेटे के साथ भिक्षा मांगने नगर में निकल जाती। एक दिन वह भिक्षा मांग कर घर जा रही थी, तभी रास्ते में एक लड़का उसे घायल अवस्था में दिखा। जिसे वह अपने घर ले आई। परंतु बाद में उसे राजकुमार द्वारा बताए जाने पता चला कि वह विदर्भ का राजकुमार है। उसने बताया कि उसके राज्य पर शत्रुओं का हमला हुआ था, जिसमें वह घायल हो गया और उसके पिता को बंदी बना लिया गया।

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राजकुमार अब ब्राह्मणी के घर में ही रहने लगा। एक दिन राजकुमार ब्राह्मणी  के घर में था कि एक गंधर्व कन्या अंशुमति ने उसे देखा, जिसके बाद वह उस पर मोहित हो गई। उसने उस राजकुमार से विवाह करने इच्छा अपने पिता से बताई, तो राजा और रानी उस राजकुमार से मिलने पहुंचे, राजकुमार से मिलने के बाद राजा और रानी बहुत प्रसन्न हुए।  जिसके बाद भगवान शिव ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए और अपनी बेटी का विवाह राजकुमार से करने का आदेश दिया। शिव जी की आज्ञानुसार, राजा ने बेटी अंशुमति का विवाह राजकुमार से कर दिया।

धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार वह विधवा ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। जिसके पुण्य प्रताप से तथा राजा की सेना की मदद से उस राजकुमार ने अपने विदर्भ राज्य पर फिर से न केवल नियंत्रण प्राप्त किया बल्कि विदर्भ राज्य का राजा बना और उसने ब्राह्मणी के बेटे को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। इस प्रकार से प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव से ब्राह्मणी का बेटा राजा का प्रधानमंत्री बन गया और उनकी गरीबी दूर हो गई तथा सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

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Content Writer

Jyoti

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