मिसाल: अंग्रेज के इस जज्बे को हर भारतीय का सलाम

punjabkesari.in Monday, Oct 21, 2019 - 10:39 AM (IST)

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आजादी से पहले की बात है। तब सर विलियम जोंस कलकत्ता हाईकोर्ट के जज थे। भारत आने के साथ ही उन्होंने संस्कृत सीखने की सोची, पर दिक्कत यह थी कि बिरादरी में अपनी बदनामी के डर से संस्कृत का कोई भी पंडित उन्हें पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। जो मिल रहा था उसका संस्कृत ज्ञान संदिग्ध था। अंत में एक वैद्य उन्हें संस्कृत पढ़ाने को तैयार हुए, पर उन्होंने साथ में कई शर्तें रखीं।
PunjabKesari, विलियम जोंस
उन्होंने कहा कि वह कक्षा में बैठकर ही पढ़ाएंगे और कक्षा में एक मेज और 2 कुर्सियों के अलावा कुछ भी नहीं होगा। सफाई केवल हिन्दू कर्मचारी ही करेगा और सफाई करने के बाद मेज-कुर्सियों पर गंगाजल अवश्य छिड़केगा। विलियम जोंस को मांस-मदिरा छोडऩे पड़ेंगे। जोंस को पढ़ाने से पूर्व व पढ़ाने के बाद पंडित जी के कपड़े बदलने के लिए अलग कमरा होगा। मासिक दक्षिणा चांदी के 100 सिक्के होगी। उन्हें घर से लाने व वापस पहुंचाने के लिए पालकी की व्यवस्था करनी होगी। वैद्य जी ने सोचा था कि इतनी कड़ी शर्तें सुनकर यह अंग्रेज उनसे पढऩे का विचार त्याग देगा और सिर से बला टलेगी लेकिन विलियम जोंस संस्कृत सीखने का दृढ़ निश्चय कर चुके थे और उन्होंने सारी शर्तें स्वीकार कर लीं।

संस्कृत का पाठ शुरू हुआ। वैद्य जी विलियम जोंस को संस्कृत पढ़ाने लगे। जोंस बड़ी विनम्रता से एक आज्ञाकारी छात्र की भांति संस्कृत सीखने लगे। आखिरकार उन्होंने अपने व्यवहार, सेवा, परिश्रम व लगन से गुरु (वैद्य जी) को प्रसन्न कर उनका दिल जीत ही लिया। वैद्य जी से मिले ज्ञान के बल पर धीरे-धीरे विलियम जोंस संस्कृत के प्रकांड विद्वान हो गए। उन्होंने संस्कृत में लिखे 'अभिज्ञान शाकुंतलम नाटक का अंग्रेजी में अनुवाद किया। अंत में वैद्य जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, ''आपने मिसाल कायम की है। लगनशील व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं।


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