Niti Gyan: मानव सेवा ही सबसे बड़ी तपस्या है

punjabkesari.in Wednesday, Oct 05, 2022 - 10:32 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें जानें धर्म के साथ
सत्यनगर के राजा सत्यप्रताप सिंह न्याय प्रिय शासक थे। एक बार उन्हें पता चला कि सौम्यदेव नामक एक ऋषि अनेक वर्षों से लोहे का एक डंडा जमीन में गाड़ कर तपस्या कर रहे हैं और उनके तप के प्रभाव से डंडे में कुछ अंकुर फूट कर फूल-पत्ती निकल रहे हैं। जब वह अपनी तपस्या में पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेंगे तो उनका डंडा फूल-पत्तों से भर जाएगा।

सत्यप्रताप ने सोचा कि यदि उनके तप में इतना बल है कि लोहे के डंडे में अंकुर फूट कर फूल-पत्ते निकल सकते हैं तो फिर मैं भी क्यों न तपस्या करके अपना जीवन सार्थक बनाऊं? यह सोचकर वह भी ऋषि के समीप लोहे का डंडा गाड़ कर तपस्या करने लगे। संयोगवश उसी रात जोर का तूफान आया। मूसलाधार बारिश होने लगी। राजा और ऋषि दोनों ही मौसम की परवाह न करके तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद एक व्यक्ति बुरी तरह भीगा हुआ, ठंड से कांपता हुआ वहां पर आया। उसने ऋषि से कहीं ठहरने की जगह के बारे में पूछा। ऋषि ने आंख खोलकर भी नहीं देखा। निराश होकर वह राजा सत्यप्रकाश के पास पहुंचा और गिर पड़ा।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं । अपनी जन्म तिथि अपने नाम , जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर वाट्स ऐप करें
PunjabKesari

राजा ने उसकी इतनी बुरी हालत देखकर उसे गोद में उठाया। उन्हें नजदीक ही एक कुटिया नजर आई। उन्होंने उस व्यक्ति को उसमें लिटाया और उसके समीप आग जलाकर गर्माहट पैदा की। गर्माहट मिलने से वह व्यक्ति होश में आ गया। इसके बाद राजा ने उसे कुछ जड़ी-बूटी पीसकर पिलाई। कुछ देर बाद वह व्यक्ति ठीक हो गया।

सुबह होने पर जब राजा उस व्यक्ति के साथ कुटिया से बाहर आए तो यह देखकर हैरान रह गए कि लोहे का डंडा जो उन्होंने गाड़ा था, वह ताजे फूल-पत्तों से भरकर झुक गया था। इसके बाद राजा ने ऋषि के डंडे की तरफ देखा। ऋषि के थोड़े बहुत निकले फूल-पत्ते भी मुरझा गए थे। राजा समझ गए कि मानव सेवा से बड़ी तपस्या और कोई नहीं।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Jyoti

Recommended News

Related News