जीवन में कभी न दें अंधविश्वास को प्राथमिकता

punjabkesari.in Wednesday, Feb 05, 2020 - 10:09 AM (IST)

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सकडाल भगवान महावीर को बहुत मानता था और अक्सर विनती करता रहता था कि भगवान एक बार उसके यहां भी पधारें। सकडाल का पुत्र कुम्हार का काम करता था लेकिन उसके साथ दिक्कत यह थी कि वह बड़ा भाग्यवादी था। पुरुषार्थ उसकी नजर में कोई खास महत्व नहीं रखता था। सकडाल की प्रार्थना सुनकर एक बार भगवान महावीर उसके घर पर रुके। बात ही बात में भगवान महावीर को सकडाल के पुत्र और भाग्य में उसके अंधविश्वास के बारे में पता चला। भगवान को उसकी यह भाग्यवादिता अच्छी नहीं लगी।
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इस पर महावीर ने सकडाल के पुत्र से पूछा, ''तुम्हारे यहां चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं? ये कैसे बनते हैं? भगवान के प्रश्न का उत्तर देते हुए सकडाल के पुत्र ने बताया, ''भाग्य के चलते मुझे इन बर्तनों को बनाने की प्रेरणा मिलती है। यह सुनकर एक पल के लिए तो महावीर मुस्कुराए, फिर उन्होंने पूछा, ''तुम्हारे इन पके-पकाए बर्तनों को तोड़ दें तो तुम क्या समझोगे? ''अगर मेरे भाग्य में यही लिखा होगा तो ऐसा ही होगा। सकडाल के पुत्र ने उत्तर दिया। ''और कोई तुम्हारे घर वालों से बदतमीजी करे तो? महावीर पूछने लगे।
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यह सुनते ही कुम्हार गुस्से से भरकर बोला, ''किसकी हिम्मत है जो ऐसा कर सके? अगर कोई मेरे घरवालों की ओर आंख उठाकर देखेगा तो मैं उसकी अच्छी तरह से खबर लूंगा। महावीर ने पूछा, ''लेकिन यह भी तो नियतिवश ही होगा? इसमें क्रोध करने की क्या बात है? महावीर के इतना कहते ही सकडाल के पुत्र की आंखें खुल गईं और भाग्यवाद पर उसका अंधविश्वास पल भर में दूर हो गया। विनम्र भाव से वह महावीर से बोला, ''आप ठीक कहते हैं भगवन। भाग्य पर अंधविश्वास रखना मूर्खता है। जीवन में पुरुषार्थ ही प्रमुख है। वही भाग्य का निर्माता है।


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