Shardiya Navratri 9th Day: आज दुर्भाग्य का होगा सफाया, सौभाग्य का समय आया

punjabkesari.in Monday, Oct 23, 2023 - 08:50 AM (IST)

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श्लोक: या देवी सर्वभू‍तेषु सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

Description of Maa Siddhidatri's incarnation मां सिद्धिदात्री का अवतार वर्णन: आदिशक्ति नवदुर्गा के रूपों में देवी सिद्धिदात्री नौवीं शक्ति हैं, शास्त्रानुसार नवरात्र पूजन की नवमी पर देवी सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। आदिशक्ति ने जगत उधार के लिए नौ रूप धारण किए और इन रूपों में नवम रूप है देवी सिद्धिदात्री। देवी सिद्धिदात्री प्रसन्न होने पर सम्पूर्ण जगत की रिद्धि-सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं। अतः नवरात्र की नवमी पर शास्त्रों के अनुसार तथा संपूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। नवरात्र पूजन की नवमी पर देवी सिद्धिदात्री के पूजन से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

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Description of Maa Siddhidatri's form मां सिद्धिदात्री का स्वरूप वर्णन: देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप परम सौम्य है, शास्त्रों में देवी का स्वरुप चतुर्भुजी देवी (चार बाहों वाली देवी) के रूप में वर्णित किया गया है। देवी सिद्धिदात्री की ऊपरी दाईं भुजा में इन्होंने चक्र धारण किया हुआ है। जिससे ये सम्पूर्ण जगत का जीवनचक्र चला रही हैं। नीचे वाली दाईं भुजा में इन्होंने गदा धारण की हुई है जिससे ये दुष्टों का दलन करती हैं। देवी सिद्धिदात्री ने ऊपरी बांईं भुजा में शंख धारण किया हुआ है, जिसकी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत में धर्म का अस्तित्व व्याप्त है। इन्होंने नीचे वाली बांईं भुजा में कमल का फूल धारण किया है। जिससे ये सम्पूर्ण जगत का पालन करती हैं।

शास्त्रों में देवी सिद्धिदात्री को कमल आसन पर विराजमान बताया गया है, देवी सिद्धिदात्री के वाहन का वर्णन सिंह रूप में किया गया है। इन्होंने रक्त वर्ण (लाल) रंग के वस्त्र पहने हुए हैं। इनके शरीर और मस्तक नाना प्रकार के स्वर्ण आभूषण सुसज्जित हैं। इनकी छवि परम कल्याणकारी है, जो सम्पूर्ण जगत को सौभाग्य की प्राप्ति करवाती हैं। सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया गया है। देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी देवी सिद्धिदात्री के भक्त हैं।

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Sadhana description of Maa Siddhidatri मां सिद्धिदात्री का साधना वर्णन: जो भी साधक सम्पूर्ण समर्पण के साथ देवी सिद्धिदात्री की भक्ति करता है, देवी उसी पर अपना स्नेह लुटाती हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। ये सिद्धियां हैं अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्‌सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना, सिद्धि।

शास्त्रानुसार भगवान शंकर ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था तथा इन्हीं के द्वारा भगवान शंकर को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ। यह देवी इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को ये सिद्धियां प्राप्त होती हैं। देवी सिद्धिदात्री की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इनकी पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय हैं ब्रह्म मुहूर्त बेला अर्थात प्रातः 4 बजे से 6 बजे के बीच करना श्रेष्ठ है। इनकी पूजा सफ़ेद रंग के फूलों और विशेषकर तुलसी मंजीरी से करनी चाहिए। इन्हें केले का भोग लगाना चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें केसर अर्पित करना शुभ होता है। इनकी साधना से सिद्दियों की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री अमोघ फलदायिनी हैं। इनका ध्यान इस प्रकार है-

Meditation Mantra of Maa Siddhidatri मां सिद्धिदात्री का ध्यान मंत्र: स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्। शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥

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Yogic perspective of Maa Siddhidatri मां सिद्धिदात्री का योगिक दृष्टिकोण: सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से जो साधक देवी सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं, वे नवमी के दिन निर्वाण चक्र का भेदन करते हैं। नवरात्र पूजन की नवमी पर विशिष्ट हवन किया जाता है। हवन से पूर्व सभी देवी-देवाताओं एवं देवी पूजन करने का विधान है। हवन करते वक्त सभी देवी-देवताओं के नाम से अहुति देने का विधान शास्त्रों में कहा गया है तत्पश्चात देवी के नाम से अहुति देनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं। अत: सप्तशती के सभी श्लोकों के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे:” से आहुतियां देना श्रेष्ठ बताया गया है।

Astrological perspective of Maa Siddhidatri मां सिद्धिदात्री का ज्योतिष दृष्टिकोण: देवी सिद्धिदात्री की साधना का संबंध छाया ग्रह केतु से है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में छाया ग्रह केतु का संबंध द्वादश, लग्न और द्वतीय भाव से होता है हालांकि छाया ग्रह केतु की किसी भी भाव और राशि पर आधिपत्य नहीं रखता परंतु केतु परम सिद्दिदायक और मोक्षदायक ग्रह है। अतः देवी सिद्धिदात्री की साधना का संबंध व्यक्ति के मन, मानसिकता, सौभाग्य, हानि, व्यय, सिद्धि, धन, सुख और परम मोक्ष से है। जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में केतु ग्रह नीच अथवा केतु की चंद्रमा से युति हो अथवा केतु मिथुन या कन्या राशि में हो षष्ट भाव में आकर नीच एवं पीड़ित हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है देवी सिद्धिदात्री की साधना। जिन व्यक्तियों की आजीविका का संबंध धर्म से है जैसे संन्यासी, पंडित अथवा अध्ययन (शिक्षक-आचार्य), दुग्ध उत्पादन, ज्योतिष, अंकशास्त्री, धर्मशास्त्री हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है देवी सिद्धिदात्री की साधना।

Vastu perspective of Maa Siddhidatri मां सिद्धिदात्री का वास्तु दृष्टिकोण: देवी सिद्धिदात्री कि साधना का संबंध वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार केतु ग्रह से है, इनका तत्व है आकाश इनकी दिशा उर्वर्ध, निवास में बने वो स्थान जहां पर छत, उपासना घर या उपवन हो। जिन व्यक्तियों का घर तिराहे, चौराहे, डेड एंड पर बना हो अथवा जिनके घर में तहखाना बना हो अथवा जिनके घर में छत से पानी टपकता हो उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है देवी सिद्धिदात्री की आराधना ।

Maa Siddhidatri remedy मां सिद्धिदात्री का उपाय: सिद्धियों की प्राप्ति के लिए देवी सिद्धिदात्री पर ध्वजा चढ़ाएं। 

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Content Writer

Niyati Bhandari

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