Nataraja Temple Chidambaram: शिव तांडव का स्थल नटराज मंदिर
punjabkesari.in Wednesday, Dec 06, 2023 - 08:14 AM (IST)

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Nataraja Temple Chidambaram: चिदंबरम, अधिकांश उत्तर भारतीयों के लिए यह केवल एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ का नाम है। अधिक से अधिक यह उस गांव का नाम होगा जहां के वह निवासी हैं। चिदंबरम का महत्व आप तभी जान पाएंगे जब आप दक्षिण भारत एवं वहां के मंदिरों को जानने का प्रयास करेंगे। तभी आप जानेंगे कि सुप्रसिद्ध नटराज मंदिर चिदंबरम में ही है। उसे चिदंबरम मंदिर भी कहते हैं। चेन्नई से दक्षिण की ओर लगभग 240 किलोमीटर तथा पुड्डुचेरी से लगभग 60 किलोमीटर दूर स्थित इस नगर में अनेक बड़े-छोटे अप्रतिम मंदिर हैं।यहां मंदिर की स्थापना से कई वर्ष पूर्व यह भूभाग एक विशाल वनीय प्रदेश था। तिल्लई मैंग्रोव के नाम पर इस वन का नाम तिल्लई वन पड़ा। इस वन में ऋषियों का वास था जो सदा विभिन्न अनुष्ठानों का आयोजन करते रहते थे। समयोपरांत उन्हें ऐसा भ्रम होने लगा था कि शक्तिशाली मंत्रों द्वारा वे भगवान शिव को भी नियंत्रित कर सकते हैं। फलत: भगवान शिव ने उन्हें यथार्थ से अवगत कराने का निश्चय किया। शिवजी तांडव नृत्य करने लगे तथा अपना वास्तविक रूप ऋषियों के समक्ष प्रकट किया। ऋषियों को अपनी अज्ञानता का पूर्ण आभास हुआ तथा वे भगवान शिव के समक्ष नतमस्तक हो गए। तभी से भगवान शिव यहां नटराज के रूप में पूजे जाने लगे।
एक अन्य किंवदंती के अनुसार भगवान शिव के आनंद तांडव का दर्शन करने के लिए भगवान विष्णु आदिशेष के रूप में यहां आए थे। वह अब भी इस मंदिर में गोविन्दराज के रूप में विराजमान हैं। तिल्लई नटराज मंदिर से संबंधित सभी ऐतिहासिक संदर्भ यह दर्शाते हैं कि कम से कम 6वीं सदी से यह मंदिर व्यवहार में है। संगम साहित्य से प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर के पुनरुद्धार में प्रमुख वास्तुविद के रूप में विडुवेलविडुगु पेरुंटक्कन का योगदान है, जो पारंपरिक विश्वकर्मा समुदाय के वंशज हैं।
अप्पर एवं संबंद की कविताओं में भी चिदम्बरम के नृत्य मुद्रा में विराजमान भगवान का उल्लेख है। 10वीं सदी के आसपास चिदम्बरम चोल वंश की राजधानी थी तथा नटराज उनके कुलदेवता थे। कालांतर में उन्होंने अपनी राजधानी तंजावुर में स्थानांतरित कर दी थी, किन्तु इस मंदिर के अस्तित्व के विषय में तात्विक साक्ष्य 12वीं सदी से आगे के ही है।
दक्षिण भारत के पल्लव, पंड्या, चोल, चेर एवं विजयनगर जैसे अनेक राजवंशों ने अपनी कालावधि में इस मंदिर के रख-रखाव एवं विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आप प्रत्येक राजवंश की शैली के चिन्ह मंदिर के विभिन्न भागों में देख सकते हैं।
नटराज मंदिर के विभिन्न शिव स्वरूप
मंदिर में पूजे जाने वाला भगवान शिव का प्राथमिक स्वरूप नृत्य देव एवं लौकिक नर्तक नटराज का है। मंदिर के पूर्वी गोपुरम पर आप उनकी नृत्य की विभिन्न मुद्राएं देख सकते हैं। वास्तव में ये केवल नृत्य मुद्राएं नहीं हैं, अपितु 108 कारण अथवा गतियां हैं, जिनका शास्त्रीय नृत्य में प्रयोग किया जाता है।
मंदिर की वास्तुकला
नटराज मंदिर का परिसर 40 एकड़ के क्षेत्र में पसरा हुआ है। मंदिर परिसर प्राकारों अथवा प्रांगणों की 5 परतों से घिरा है, जिनमें सबसे भीतरी प्राकार में गर्भगृह है। कुल मंदिर एक ठेठ द्रविड़ वास्तुकला का पालन करता है, किन्तु इसका गर्भगृह ठेठ स्पष्टत: केरल अथवा मलाबारी शैली का है।
गोपुरम
मंदिर को घेरे हुए कुल नौ गोपुरम हैं। उनमें से चार विशालतम गोपुरम बाहरी प्रकार में चार दिशाओं में स्थित हैं। ये गोपुरम मंदिर से अपेक्षाकृत कहीं अधिक ऊंचे हैं। फिर भी, अपने शुद्ध स्वर्ण के शीर्ष के कारण साधारण ऊंचाई का यह मुख्य मंदिर उठकर दिखाई पड़ता है। मुख्य प्रवेश द्वार पूर्वी गोपुरम के नीचे है जहां तक पहुंचने के लिए एक संकरे मार्ग से जाना पड़ता है।
संकरे मार्ग के दोनों ओर पूजा सामग्री बिक्री करते अनेक विक्रेता तथा जूते-चप्पल के रखवाले इसे और अधिक संकरा बना देते हैं। गोपुरम के निचले प्रवेश द्वार का भाग रंगा हुआ नहीं है, किन्तु इसकी ऊपरी विशाल अधिरचना को नीली पृष्ठभूमि में अनेक रंगों में रंगा हुआ है। उस पर अनेक देवी-देवताओं के शिल्प हैं, जो पुराणों की विभिन्न कथाओं को प्रदर्शित करते हैं।
गोपुरम के अंत भाग में पत्थर के छोटे-छोटे चौकोर खंडों पर भरतनाट्यम की विभिन्न मुद्राओं को उत्कीर्णित किया गया है। गोपुरम के अग्र एवं पृष्ठ भाग पर लघु प्रतिमाएं हैं। उनमें से कुछ को ताले में बंद कर रखा है।
स्वर्णिम छत
नटराज मंदिर के गर्भगृह को चेतना कक्ष के नाम से जाना जाता है। यह ग्रेनाइट के आधार पर स्थापित चौकोर काष्ठी संरचना है जिसकी छत पर सोने की परत चढ़ी है। इसकी असामान्य रूप से तिरछी छत इसकी वास्तुशिल्प को अत्यंत विशेष बनाती है। गर्भगृह में नटराज की मूर्ति स्थापित है। गर्भगृह के भीतर अग्रभाग से नहीं जा सकते, अपितु एक ओर से प्रवेश किया जाता है।