Mauna Panchami 2020: आज केवल मौन रहकर पाया जा सकता है भगवान शिव का दुलार

punjabkesari.in Friday, Jul 10, 2020 - 06:29 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Mauna Panchami 2020: वैसे तो सावन के महीने के हर दिन भगवान शिव का पूजन किया जाता है। नाग भगवान शंकर के आभूषण हैं तथा उनके गले में लिपटे रहते हैं। शिव का निराकार रूप शिवलिंग भी सर्पों के साथ ही सजता है इसीलिए पंचमी के दिन नागों का पूजन करने का विधान है। श्रावण महीने में कृष्ण पक्ष के पांचवें दिन मौना पंचमी का पर्व मनाए जाने का विधान है। आज 10 जुलाई, 2020 को नाग देवता की पूजा और व्रत करके इस त्यौहार को मनाया जाएगा। मौना पंचमी पर विशेष रुप से सर्प देवता को खीर, सूखी सब्जियां और फल जैसे आम और कटहल अर्पित करने का विधान है। सनातन धर्म में ये व्रत विवाहि‍त मह‍िलाएं 15 दिन तक करती हैं। कहा जाता है कि मौना पंचमी पर जो महिला विधि-विधान से व्रत और पूजा करती है, उनके घर-परिवार पर आने वाली सभी विध्न-बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। 

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किंवदंती के अनुसार जो जातक ऊपर बताई गई विधि के अनुसार व्रत अथवा पूजा नहीं कर सकता, वे केवल मौन रहकर भगवान शिव का दुलार प्राप्त कर सकते हैं। मौना पंचमी के दिन 'मौन' रहने का बहुत महत्व है। मौन रहने से मानसिक, वैचारिक और शारीरिक हिंसा पर कंट्रोल किया जा सकता है। मौन शब्द मन से ही निकला है।

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मन यानी अंत:करण की ओर उन्मुख होने की राह। लंबे समय तक मौन होकर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समुचित निरूपण कर सकता है। मात्र एक दिन के लिए मौनव्रत रखकर हम इसकी महत्ता से परिचित हो सकते हैं। 

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शास्त्रों के अनुसार हमारी पृथ्वी का भार भी शेषनाग के फन पर टिका है, भगवान विष्णु तो नागराज की शैय्या पर क्षीर सागर में शयन करते हैं।

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मान्यता है कि जब-जब भगवान ने धरती पर अवतार लिया शेषनाग भी किसी न किसी रुप में धरती पर अवतरित होकर उनके साथ रहे हैं।

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रामावतार में वह भाई लक्ष्मण बनकर और कृष्णावतार में भाई बलराम बनकर साए की तरह प्रभु के साथ ही रहे हैं। वासुदेव जी जब नन्हें कृष्ण को लेकर गोकुल जाने के लिए यमुना पार कर रहे थे तो कृष्ण के सिर पर नागफनों की छाया करके नागदेवता ने ही उन्हें भारी वर्षा से भी बचाया था।

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विभूति योग का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं अर्जुन से कहा था कि सांपों में मैं वासुकि एवं नागों में शेषनाग हूं। इससे स्पष्ट है कि नाग विभूति योग सम्पन्न हैं तथा हमारी संस्कृति में उन्हें देवत्व प्राप्त है।

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अथर्ववेद में श्वित्र, स्वज, पृदाक, कल्माष व ग्रीव आदि पांच प्रकार के सर्पों का उल्लेख मिलता है जो दिशाओं के आधार पर वायु मण्डल के रक्षक हैं।

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Niyati Bhandari

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